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January 24, 2021
भूल गया है वादा करके,
कितना ख़ुश है धोका करके।
जान के मैं अब तक हैरां हूँ,
हाँ कर बैठा ना ना करके।
यादें जैसे नाजायज़ हों,
भूल गया है पैदा करके।
सागर बन बैठा है दरिया
मीठा पानी खारा करके।
छोड़ गया है मुझको तन्हा ,
कितनी बार तमाशा करके।
ख़ून में डूबे ख़ून के रिश्ते,
कच्चे घर का हिस्सा करके ।
सच्चाई कितना पछताई,
ऊंचे घर से रिश्ता करके।
लौट गया है फिर से सावन ,
सूखे ज़ख़्म को ताज़ा कर के ।
कुछ ना किया और जीत गया वो,
हार गया मैं क्या क्या करके।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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