Post Views 11
January 21, 2021
दुश्मनी में तो दिन ख़राब हुए,
दोस्ती के भी कब हिसाब हुए।
नींद तो थी ज़मीन जैसी ही,
आसमानी हमारे ख़्वाब हुए।
दर्द ख़ुशबू में ढल गए आख़िर,
ज़ख़्म अपने सभी गुलाब हुए।
हमको जब रट लिया अंधरों ने,
हम उजालों भरी क़िताब हुए।
बिन पिए जो ख़ुमार देती थी,
हम भी आख़िर वही शराब हुए।
जैसा सोचा था हमने वो पाया,
सामने जब वो बेनक़ाब हुए।
ढूंढने यूँ गईं वो खुशियाँ भी,
दर्द ग़ज़लों के दस्तेयाब हुए।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved