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अजमेर न्यूज़: श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट, शाखा पुष्कर द्वारा 20 से 24 जुलाई 2025 तक त्रयोदशी पुष्कर अरण्य तीर्थ 24 कोसी प्रदक्षिणा का आयोजन किया जा रहा है।

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July 15, 2025

इस परिक्रमा को केवल साधना न मानकर तीर्थ संरक्षण, आध्यात्मिक चेतना और पर्यावरणीय उत्थान से जोड़ने का प्रयास किया गया है।

पुष्कर एक बार फिर अध्यात्म, तीर्थ और जनजागरण की त्रिवेणी यात्रा की साक्षी बनने जा रहा है। श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट, शाखा पुष्कर द्वारा 20 से 24 जुलाई 2025 तक त्रयोदशी पुष्कर अरण्य तीर्थ 24 कोसी प्रदक्षिणा का आयोजन किया जा रहा है। इस परिक्रमा को केवल साधना न मानकर तीर्थ संरक्षण, आध्यात्मिक चेतना और पर्यावरणीय उत्थान से जोड़ने का प्रयास किया गया है।

गायत्री परिवार के समन्वयक घनश्याम पालीवाल ने बताया कि शांतिकुंज, हरिद्वार के तत्वावधान में आयोजित इस यात्रा का उद्देश्य सुप्त तीर्थों का पुनर्जीवन, तीर्थ सौंदर्यकरण, सफाई अभियान, वृक्षारोपण, जप-तप और जन-जन को पुण्य लाभ से जोड़ना है। यात्रा मार्ग में जांद नाव, कडेल, बूढ़ा पुष्कर और अजय पाल जैसे स्थानों पर अभी भी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। विशेष रूप से अजगंधेश्वर महादेव स्थल पर बीते दो वर्षों से रात्रि विश्राम संभव नहीं रहा क्योंकि बिजली और पानी जैसी आवश्यक व्यवस्थाएं नहीं हैं। अब वहां विकास कार्य की योजना बनाई गई है। लोमर्ष आश्रम से माकडोल माता तक का मार्ग भी यात्रियों के लिए जोखिमभरा है जिसे केवल डेढ़ किलोमीटर कच्चा रास्ता बनाकर सुगम बनाया जा सकता है। पुष्कर में स्थित दो सिद्ध शक्तिपीठ – सावित्री और राजराजेश्वरी (गायत्री) इस यात्रा को विशेष आध्यात्मिक महत्व देते हैं। जिनसे 24 कोसी परिक्रमा संभव नहीं, वे पर्वतों की छोटी परिक्रमा करके भी पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री परिवार इस वर्ष राजराजेश्वरी माता की तीन किलोमीटर की परिक्रमा शुरू करना चाहता है। इसके लिए केवल डेढ़ किलोमीटर मार्ग निर्माण की आवश्यकता है। पुष्कर के आदि तीर्थों की मान्यता अत्यंत प्राचीन है। पौराणिक मान्यता अनुसार महाविष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा प्रकट हुए और त्रिपुष्कर तीर्थ की स्थापना की। ब्रह्माजी द्वारा किए गए यज्ञों के कारण यहां सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि, तीर्थ, ग्रह-नक्षत्र, और लोक समाहित माने जाते हैं। यह स्थान सदियों से अध्यात्म का केन्द्र रहा है। उन्होंने बताया कि यह परिक्रमा इस भूमण्डल की सर्वश्रेष्ठ फलदायी परिक्रमा मानी गई है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सभी 52 भैरवों के मंदिर, सिद्ध शक्तिपीठों, 49 मरूत, 12 आदित्य, 8 वसु और पंच सरस्वती आदि का स्मरण इस यात्रा में सम्मिलित है। यह परिक्रमा न केवल पुण्यप्रद है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण भी है। गायत्री परिवार ने 12 वर्ष पूर्व इस तीर्थ यात्रा की शुरुआत की थी। तब से अब तक 5000 से अधिक वृक्षारोपण, ग्राम-तीर्थ स्थापना, घर-घर यज्ञ और जनजागरण अभियान किए जा चुके हैं। यात्रा के माध्यम से तीर्थों के विकास, सौंदर्यकरण और आध्यात्मिक ऊर्जा के पुनर्जागरण का क्रम सतत जारी है। शासन-प्रशासन को भी इस ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है और डीपीआर तैयार कर प्रेषित की गई है। पालीवाल ने बताया कि इस वर्ष की त्रयोदशी प्रदक्षिणा विशेष महत्व रखती है। त्रयोदशी तिथि भगवान शिव की मानी गई है और इसी दिन मास शिवरात्रि, प्रदोष व्रत और तांत्रिक मान्यताओं के अनुसार देवी ऊर्जा सशक्त रूप में प्रभावी होती है। 13 का अंक सूर्य और बृहस्पति से जुड़ा है, जो सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। इस यात्रा में त्रयोदश जलस्रोतों की सफाई, त्रयोदश जन्मशताब्दी उपवनों की स्थापना, राजराजेश्वरी शक्तिपीठ की विशेष परिक्रमा और 84 कोसी रथयात्रा के मार्ग के गांवों में दीपयज्ञ और कथा के आयोजन होंगे। यात्रा मार्ग में रात्रि विश्राम, शिवालयों पर रुद्राभिषेक, यज्ञ, दीपयज्ञ, तर्पण, हरि स्मरण, जप आदि कार्यक्रम होंगे।उन्होंने बताया कि यात्रा कार्यक्रम इस प्रकार रहेगा ।19 जुलाई को संध्या 5 बजे वाराह घाट पर संकल्प और ब्रह्म पुष्कर परिक्रमा।20 जुलाई को गायत्री शक्तिपीठ से यात्रा शुभारंभ। पहले दिन ब्रह्मा मंदिर, सावित्री पर्वत, ककड़ेश्वर, मोतीसर, नांद तक यात्रा व रात्रि विश्राम। 21 जुलाई को रामपुरा, लाखीना, थांवला होते हुए यात्रा का पड़ाव। 22 जुलाई को भर्तृहरि तपस्थली, कडेल, मझेवला।23 जुलाई को मार्कण्डेय आश्रम, माकड़ोल माता, बूढ़ा पुष्कर। 24 जुलाई को समापन यात्रा, सुधाबाय, पंचकुण्ड, विश्वामित्र गुफा, ब्रह्मघाट तक समर्पित होगी।रथ यात्रा अतिरिक्त मार्गों में भगवानपुरा, पिचोलिया, पीसांगन, देवनगर, सलेमाबाद, अरड़का, नरवर, मांगलियावास आदि गांव शामिल होंगे।

गायत्री परिवार और संयोजक समिति ने राज्य सरकार से मांग की है कि आगामी समय में प्रस्तावित ब्रह्म लोक कॉरिडोर योजना में इस 24 कोसी प्रदक्षिणा यात्रा मार्ग को भी शामिल किया जाए। इससे न केवल आध्यात्मिक पर्यटन को बल मिलेगा बल्कि पुष्कर के भूले-बिसरे तीर्थ स्थानों का पुनः उत्थान और विस्तार भी सुनिश्चित हो सकेगा। कॉरिडोर में इस ऐतिहासिक परिक्रमा मार्ग को जोड़ने से विश्वस्तरीय तीर्थ पर्यटन को नई दिशा और पहचान मिलेगी।


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