Post Views 291
April 19, 2021
उसकी गली में जाना मेरा,
वो ही शौक़ पुराना मेरा।
कुछ दिन रह कर चले गए तो,
लौट आया वीराना मेरा।
जिसके लिए आते हैं पँछी,
वही है आबोदाना मेरा।
हवा की उंगली है दाँतों में,
देख रही जल जाना मेरा।
जब जब पेड़ कटे जंगल के,
बदला किया ठिकाना मेरा।
भर के सब्र ये सोच रहा हूँ,
छलके न पैमाना मेरा।
पृथ्वीराज नहीं चूकेगा,
अबकी बार निशाना मेरा।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved