Post Views 31
March 31, 2021
पत्थर से जब सर बचता है,
थोड़ा और सफ़र बचता है।
मरने लगूँ तो हँसता है हर ग़म,
जीने लगूँ तो डर बचता है।
कैसे बताऊँ हर बारिश में,
मैं बचता हूँ, घर बचता है।
ख़ंजर से बचती हैं नज़रें,
नज़र से कब खंज़र बचता है।
सब तक़सीम तो कर देता हूँ,
क्या मेरे अंदर बचता है।
जुड़ जाता हूँ टूट के फिर से,
मुझमें यही हुनर बचता है।
तुझे घटा दूँ गर ख़ुद में से मैं,
मेरे पास सिफ़र बचता है।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
Satyam Diagnostic Centre
© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved