Post Views 851
March 30, 2021
करके देखा है भरोसा यार लोगों का,
खेल देखा जिस तरह ग़द्दार लोगों का।
साथ लोगों के रहे हम फूल की मानिंद,
बन नहीं पाए कभी हथियार लोगों का।
हम नहीं बिछड़े कभी अपने क़बीले से,
साथ हम देते रहे सरदार लोगों का।
हमने तलवारें बनाईं, जंग भी छेड़े,
सर नहीं काटा मगर ख़ुद्दार लोगों का।
सल्तनत पर कोई भी क़ाबिज़ रहे लेकिन,
है सियासत खेल बस दो चार लोगों का।
कौड़ियों में बेचने ईमान आए हैं
सज रहा है देखिये बाज़ार लोगों का।
इससे बेहतर है तिज़ारत ढूँढ लो कोई,
शाइरी तो काम है बेकार लोगों का।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved