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क़लमकार: अनाथ हो चुका है आनासागर बाटा तिराहे को बचाने में लगे हैं लोग और आना सागर तैयार है आत्महत्या को

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March 12, 2021

नगर निगम की ख़ामोशी समझौते की टेबल पर लेटी है और भूमाफियाओं की साज़िशें हो रही हैं साकार


अनाथ हो चुका है आनासागर
बाटा तिराहे को बचाने में लगे हैं लोग और आना सागर तैयार है आत्महत्या को_
नगर निगम की ख़ामोशी समझौते की टेबल पर लेटी है और भूमाफियाओं की साज़िशें हो रही हैं साकार_
वीना प्रधान और प्रकाश राजपुरोहित जी अगर चूके तो हाथ से निकल जायेगा आनासागर_
                           सुरेन्द्र चतुर्वेदी
                    सुबह के 3 बजे हैं। लगभग सारा अजमेर सो रहा है ।मैं आना सागर के किनारे चौपाटी के उस हिस्से पर बैठा हूँ जहाँ से आना सागर के रोने की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है।
                      पता नहीं आना सागर से मेरा किस जन्म का रिश्ता है कि जब भी उसकी आंखों में आंसू छलकते हैं मेरी क़लम ख़ून के आंसू रोने लगती है।
           दोस्तों !!जाग जाओ!!  आना सागर रो रहा है!!  आना सागर के सीने पर मिट्टी डालकर कृत्रिम ज़मीन बनाकर उसके सीने को पाटकर पहले से ही भूर दिया गया है। अब खातेदारी के काग़ज़ात दिखाकर उसके किनारों को भी भूरा जा रहा है ।
                  मैंने कई कई बार आना सागर के मूल स्वरूप को बदले जाने के लिए ब्लॉग लिखे ।सैकड़ों बार शहरवासियों से आग्रह किया कि अजमेर की आन, बान ,शान और जान कहे जाने वाले इस आनासागर को निगलने के लिए कई अजगर संगठित हो चुके हैं। रह रह कर करवटें बदल कर ,आना सागर के पानी को, मिट्टी डालकर खत्म किया जा रहा है ,ताकि कृत्रिम ज़मीन को बेचकर वारे न्यारे किए जा सकें।
                     मुझे ताज्जुब होता है कि शहर के लोग ख़ामोश होकर आना सागर का द्रोपदी की तरह होता चीरहरण देख रहे हैं ।
                 बाटा तिराहे को लेकर पूरी मुस्तैदी से सड़क पर आने वाले व्यापारी तक आनासागर के वजूद को ख़त्म होते देखने के बाद भी कुछ नहीं कर रहे ।ये किशन गुप्ता! ये विकास अग्रवाल!ये कमल गंगवाल! ये काली चरण खण्डेलवाल! ये धर्मेश जैन! कहाँ सो रहे हैं कहाँ सो रहे हैं छोटी छोटी बातों पर जनहित याचिका लगाने वाले महान वकील एस के सिंह
                      लोगों का ज़मीर जगाते जगाते मुझे लग रहा है कि कहीं आनासागर आत्महत्या ना कर ले!
                      नगर निगम की निवर्तमान आयुक्त चिन्मई गोपाल जिसका अजमेर से कोई लेना-देना नहीं था उन्होंने पूरी मुस्तैदी और बहादुरी से आनासागर पर हमला करने वालों के हौसलों को पस्त कर दिया था ।ज़ी माल के पास , देवनारायण मंदिर के पीछे ,आना सागर के किनारों पर खातेदारी के नाम पर क़ब्ज़ा किए जाने का जो खेल वापस शुरू हो गया है उसे रोकने की कार्रवाई नगर निगम नहीं कर रहा।
                      ....फिर से लोग रात दिन डंपरों से आना सागर के किनारे पर मिट्टी डाल कर नक़ली ज़मीन का निर्माण कर रहे हैं ।
               मैंने कुछ ही दिन पहले नगर निगम की महापौर हाड़ी रानी ब्रज लता हाड़ा से आग्रह किया था कि वे तत्काल इस ओर ध्यान दें, मगर मुझे लगता है कि या तो वे आते ही भू माफियाओं के चंगुल में फंस चुकी हैं या उन्हें अपनी नैतिकता अभी याद नहीं आ रहीं।
                 अब मेयर ब्रज लता हाड़ा भी चुप बैठी हैं ।आनासागर दहाड़े मार-मार कर रो रहा है और उसकी दर्दनाक पुकार श्रीमती हाड़ा के कानों को नहीं छू पा रही।
                 वे शायद भूल गई हैं उनके ही निगम ने पिछले साल भू माफियाओं की इस कार्यवाही को तब नाकाम कर दिया था जब तत्कालीन मेयर तक भी आनासागर के दुश्मनों से हाथ मिला चुके थे।क्या अब वे भी पूर्व मेयर की मंशा पर ख़ामोश बैठी हैं
                      कल मेरे पास आना सागर के एक दुश्मन का फोन आया ।बोला मुझसे मिलो।काग़ज़ात देखो। खातेदारी के सारे  सबूत मेरे पास हैं। कोर्ट के फैसले भी मेरे हक में हैं।
                          मैंने कहा मुझे कुछ नहीं देखना।मुझे नहीं मिलना ।मुझे जो दिखाई दे रहा है मैं लिख रहा हूँ। आज़ादी के बाद जहाँ आना सागर का पानी क्रिश्चियन गंज और रीजनल कॉलेज़ तक हिलोरे मारता था आज दहाड़े मार रहा है।
                    आना सागर के बीचों बीच और चारों तरफ , आज लोगों न मिट्टी डालकर कॉलोनियां बना ली हैं। आसपास के किनारों पर बराबर कब्जे किए जा रहे हैं।
                    यदि खातेदारी की बात को सही भी मान लिया जाए तो सूखे हुए आनासागर पर जो पूरी ज़मीन है वो तो खातेदारों की  ही है ।इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि पूरे आनासागर को मिट्टी डालकर सुखा दिया जाए। पूरे आना सागर को मिट्टी से भरकर अपना खातेदारी हक जताते हुए बेच दिया जाए।
                       जिस तरह आनासागर के बीच में खुदाई के नाम पर मिट्टी डालकर टापू बनाया गया उसी प्रकार पूरे आनासागर को टापू की शक्ल दी जाने की कोशिश की जा रही है। उसे बेचने की साज़िश चल रही है।
                         मुझे पहले भी आना सागर पर ब्लॉग लिखने के लिए धमकी दी गई थी। मुझे लिखने से रोकने के लिए डराया गया था। लालच दिया गया था। ...मगर मैं मरने को तैयार हूँ दोस्तों, मेरा आना सागर से जो रिश्ता है वह मुझे जान से मारने पर भी टूटने वाला नहीं।
                    निष्ठावान ज़िला  कलेक्टर श्री प्रकाश राजपुरोहित  और संवेदनशील, ईमानदार संभागीय आयुक्त वीना प्रधान को चाहिए कि ऐसी स्थिति में जब निगम नाकारा हो चुका है,तो वे अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करें।
                    नगर निगम के आयुक्त तो अब कोई कार्रवाई करेंगे नहीं। लगता है उन्हें उसी तरह समझा दिया गया है जिस तरह मुझे समझाने की नाकामयाब कोशिश की जा रही है।
               जिला प्रशासन ने यदि शीघ्र ही इस ओर ध्यान नहीं दिया और अपने कर्तव्यों का निर्वाह नही किया तो आनासागर अजमेर के हाथ से निकल जाएगा ।" आई लव अजमेर "के आगे सेल्फी खिंचवाने वाले लोग जल्द ही देखेंगे कि उनका "आई लव अजमेर" कहना कितना दोगला हो चुका है।
                   यदि शहर के लोग वास्तव में अजमेर को प्यार करते हैं तो उन्हें इस दिशा में संगठित हो जाना चाहिए। बाटा तिराहे की तर्ज पर "आना सागर  बचाओ समिति" का गठन भी किया जाना चाहिए ।जहाँ तक मुझे याद है धर्मेश जैन के नेतृत्व में इस समिति का गठन हो रखा है परंतु वो समिति क्या कर रही है ये धर्मेश जैन ही बता सकते हैं।
                        मैं शहर वासियों से आग्रह करता हूं कि आप एक बार पूरा अजमेर गौरव पथ पर, एक बार देवनारायण मंदिर जी माल के पास आए और देखे!  वहां क्या खेल चल रहा है  किस तरह डंपर और ट्रैक्टर से मिट्टी डालकर केचमेंट एरिया को भरा जा रहा है  नो कंस्ट्रक्शन जोन पर किस तरह बुलडोजर चलाए जा रहे हैं कृत्रिम ज़मीन बनाने वालों के हौसले कितने बुलंद हैं   
                   आनासागर मारे डर के अलावा रोने के कुछ नहीं कर पा रहा। देखना यही है कि क्या आनासागर को हम ऐसे ही बेगैरत होकर अलविदा कह देंगे। उसे आत्महत्या करने के लिए अकेला छोड़ देंगे

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