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March 6, 2021
मुद्दत से जो बंद पड़ा था,
मैं उस घर को खोल रहा था.
ख़ाली घर में सैकड़ों कमरे,
हर कमरे में तू रहता था.
ख़ाली घर में सैकड़ों कमरे,
हर कमरा कुछ बोल रहा था.
ख़ाली घर में सैकड़ों कमरे,
हर कमरा मेरे जैसा था.
ख़ाली घर की दीवारों पर,
हर सू तेरा नाम लिखा था.
ख़ाली घर की छत पर जाकर,
कहूँ मैं क्या कितना रोया था.
सोच रहा हूँ आज भी मैं ये,
ख़ाली घर कितना अच्छा था
(सुरेन्द्र चतुर्वेदी)
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