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March 5, 2021
किसी को यह अहसास नहीं था,
बदन में उनके हाथ नहीं था.
दरियाओं पर बरस गया वो,
इसीलिये बरसात नहीं था.
चेहरा ही तो उसका था बस,
वो भी उसके पास नहीं था.
हाथों में तो हाथ थे सबके,
कोई किसी के साथ नहीं था.
शहर में आवाज़ें रहती थीं,
कोई आदमज़ात नहीं था.
क़त्ल हो गया मेरा कैसे,
मैं घर में उस रात नहीं था.
झोली में था मैं फ़क़ीर की,
लेकिन मैं खैरात नहीं था.
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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