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February 22, 2021
रेनू जयपाल मैडम आप कमाल हो
कुछ कमाल और दिखाओ कि प्राधिकरण की आर्थिक सेहत दुरुस्त हो जाए
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
अजमेर विकास प्राधिकरण इन दिनों बहुत परेशान है।ईमानदार अधिकारी के शहर के हित में लिए जा रहे फ़ैसलों से प्राधिकरण के उन लोगों की मासिक ऊपर की आमदनी पर ब्रेक लग गया है।जितनी जगह से भ्र्ष्टाचारी चूहे प्राधिकरण को कुतर रहे थे ,एक एक करके उनको मजबूत सीमेंट कंकरीट लगा कर बन्द किया जा रहा है।मास्टर प्लान में सहन्दर बदलाव के बाद अब लेडी सिंघम रेणु जयपाल उन ज़मीनों को ढूंढ रही हैं जिनका मालिकाना हक़ प्राधिकरण का है और जो भू माफ़ियाओं की ज़द में हैं या आने वाली हैं।
रिक्त भूखण्डों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण आयुक्त रेणु जयपाल ने एक भारी भरकम कमेटी का गठन किया है जिसमें विधि अधिकारी, लेखा अधिकारी, ए टी पी, भूमि अवाप्ति अधिकारी सहित तकनीकी अधिकारियों को शामिल किया गया है।
बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि इतने बड़े प्रशासनिक और तकनीकी अमले के बावजूद भी प्राधिकरण को किस योजना क्षेत्र में कौन कौन से भूखण्ड खाली पड़े हुए हैं, जिन्हें बेचकर प्राधिकरण का ख़ज़ाना भरा जा सकता है ये ही पता नहीं है।
बहन रेनू को मैं बता दूँ कि हकीकत में ऐसा संभव ही नही है कि आपके अभियंताओ को ये पता ना हो कि कौन कौन से भूखण्ड नीलाम किये जाने योग्य हैं।
लैंड फ़ॉर लैंड कमेटी की हुई बैठकों में ऐसा होता आया है कि समर्पण कर्ता को व्यवस्था के अंतर्गत उसकी इच्छानुसार प्लाट देने की लिए ही तकनीकी अधिकारियों द्वारा ऐसी रचना रची जाती है। मुख्य लोकेशन के प्लॉटों को नीलामी से छुपा कर रखा जाता है और जब भूखण्ड के बदले भूखण्ड देने होते हैं तो उनसे व्यवस्था शुल्क प्राप्त कर इन भूखण्डों को अलॉट कर दिया जाता है।
खैर.. मैं आपको बताना चाहूंगा कि अभी हाल ही में कोटड़ा आवासीय योजना के करोडों की क़ीमत के सरकारी भूखण्ड को चम्पत करने का (खरीदने बेचने) जो प्रकरण भर्ष्टाचार निरोधक ब्यूरो में चल रहा है और अब तक कि गई जांच में ब्यूरो और आपके ही विभाग द्वारा ये मान लिया गया है कि ये बेशकीमती ज़मीन प्राधिकरण की ही है। -------और अबतक इसका ग़लत खरीद बेचान हुआ है।
मैं आपसे यह भी कहना चाहूंगा कि जब ये प्रामाणिक हो चुका है कि ये ज़मीन प्राधिकरण की है तो अबतक भी उस बेशकीमती जमीन को प्राधिकरण द्वारा तुरंत अपने कब्जे में लेने की कार्यवाही क्यों नहीं चल रही उसपर प्राधिकरण की संपत्ति होने का बोर्ड लगवाकर तुरंत नीलामी क्यों नहीं की जा रही क्या ये ज़मीन प्राधिकरण की प्रामाणिक हो जाने के बाद भी सरकारी खजाने को भरने की जगह लोगों की व्यक्तिगत जेब आगे भी भरती रहेगी
ऐसे एक नही कई प्रकरण होंगे क्योंकि आए रोज़ अख़बारों में पढ़ने को मिलता है कि आज इतने करोड़ों की ज़मीन अतिक्रमियों से मुक्त करवाई गई और आज इतने की.... परंतु ऐसी ज़मीनों की तुरंत कब्जे में लेकर नीलामी की कोई पुख्ता व्यवस्था नही है।
*ऐसा भी देखने में आया है कि कब्जामुक्त ज़मीने प्राधिकरण के स्वामित्व की होने के बावजूद भी प्रशासनिक तंत्र द्वारा जानबूझकर उन्ही कब्जेधारियों को उकसा के जबरदस्ती कोर्ट में वाद दायर करवाकर उलझा दिया जाता है। तुरंत रिलीफ के चक्कर में कोर्ट में झूठे सच्चे दस्तावेज पेश कर तुरंत स्टे भी ले लिया जाता है । बाद में इन झूठे सच्चे दस्तावेजों की पुष्टि होती रहती है। परंतु तबतक ये बेशकीमती ज़मीने उलझी ही रहती हैं।
अजमेर विकास प्राधिकरण के विरुद्ध कोर्ट में दायर कई दावों में भी विभाग की तरफ से भारी शिथिलता बरती जाती है।सालों तक इन दावो का निस्तारण ही नही होता। ऐसे कई प्रकरण चंद्रवरदाई नगर योजना, पंचशील नगर योजना, हरिभाऊ उपाध्याय योजना व वैशाली नगर योजना में कोर्ट में सालों से विचाराधीन हैं। जिनका यदि न्यायिक निस्तारण हो जाए तो प्राधिकरण में अरबों रूपये आ सकते हैं।
एक अकेले वैशाली नगर में सरिता पान हाउस के सामने पड़ी ज़मीन से ही वाद निस्तारण कर अरबों रुपए कमाए जा सकते हैं।
यदि ज़मीन के कब्जामुक्त होते ही उसकी नीलामी कर दी जाए तो निश्चित रूप से प्राधिकरण का खजाना तो भरेगा ही और खुद की ही ज़मीन को ढूंढने जैसी लाचारी को भी नही झेलना पड़ेगा।
मेरा ऐसा मानना है कि बहुत लंबे अंतराल में भी लैंड फ़ॉर लैंड अलॉटमेंट कमेटी, लैंड यूज़ चेंज कमेटी, ले आउट प्लान पास कमेटी की बैठकें नही होना भी अनियमितताओं का एक बड़ा कारण है। जिससे भ्रष्टाचार तो फैलता ही है और प्राधिकरण में आर्थिक तंगी भी ।
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