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February 13, 2021
किशनगढ़ चुनावों में भाजपा के बड़े नेताओं ने ही अधिकृत उम्मीदवारों को हरवाया
वेद प्रकाश दाधीच को प्रदीप अग्रवाल ने नहीं भाजपा के ही सुरेश दगड़ा और संपत सांखला ने हरवाया ।
दोनो के बीच हुई बातचीत के वायरल हुए ऑडियो से हुआ खुलासा।
शहर महामंत्री दाधीच को दूसरे महामंत्री संपत साँखला ने ही हरवाने की रची थी साजिश।
वेद प्रकाश और सारस्वत करेंगे आला कमान से शिक़ायत
क्या अब भी हथेली लगाएंगे हैड मास्टर जी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
किशनगढ़ नगर पालिका के चुनाव में हालांकि भाजपा ने जैसे तैसे अपना बोर्ड बना लिया है मगर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने इस बार अपने ही उम्मीदवारों को हराने के लिए एडी तक का ज़ोर लगा दिया।
वार्ड 38 के भाजपाई उम्मीदवार वेद प्रकाश दाधीच को कांग्रेस के प्रदीप अग्रवाल ने नहीं बल्कि भाजपा के ही वरिष्ठ पदाधिकारियों ने अभिमन्यु की तरह सुनियोजित षडयंत्र के तहत घेर कर हराया।
यहां आपको बता दूं कि वेद प्रकाश दाधीच भी भाजपा के जिला महामंत्री हैं।शर्मनाक बात यह रही कि एक महामंत्री को हराने के लिए दूसरे महामंत्री संपत सांखला ने किशनगढ़ के स्थानीय पदाधिकारियों का इस्तेमाल किया।
कहते हैं जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है ।जब चींटी की मौत नज़दीक आती है तो उसके पंख निकलने लगते हैं ।महाभारत में तो यह भी कहा गया है कि जब आदमी का साया उसके क़द से बड़ा होने लगे तो समझ लो कि सूर्यास्त का समय है।
वेद प्रकाश की जीती बाज़ी को हराने के लिए क्या-क्या किया गया यह बात मुझे महामंत्री संपत सांखला और सभापति के उम्मीदवार सुरेश दगड़ा के बीच टेलीफोन पर हुई बात से पता चला।
चुनाव परिणामों के बाद चुनाव संभाल रहे एक जिम्मेदार पदाधिकारी ने सुरेश दगडा को फोन किया। पास में ही भाजपा के महामंत्री संपत सांखला भी बैठे हुए थे ।संपत सांखला से जब दगड़ा की बात करवाई गई तो वे ठहाका लगाते हुए सुरेश दगड़ा से बोले कि निपटा दिया ना वेद प्रकाश को इस बार। दगडा ने जवाब दिया जैसा आपने कहा हमने कर दिया फिर संपत सांखला ठहाका लगाते हुए सुनाई दिए। उनकी बातें तो बहुत सी हुईं मगर सभी बातों का सार यही था कि भाजपा के कुछ नेताओं ने जानबूझकर वेद प्रकाश की बलि ली।
संपत सांखला ने अपनी बातचीत के दौरान किशनगढ़ चुनाव प्रभारी डॉक्टर बी पी सारस्वत के लिए भी अपशब्दों का इस्तेमाल किया ।उन्हें बेरोज़गार तक बता दिया।
साँखला और दगड़ा की घटिया राजनीति को लेकर जब मैंने सारस्वत जी से बातचीत की तो उन्होंने स्वीकार किया कि यह घटिया काम चुनावों में हुआ। उन्होंने फोन पर हुई बातचीत को पार्टी के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया ।
जब उनसे मैंने पूछा कि क्या आप संपत सांखला के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने के लिए हाईकमान को कह रहे हैं तो उन्होंने बताया कि हाईकमान को सभी ओछे लोगों द्वारा की गई घटिया कार्रवाई की जानकारी है ।डॉक्टर सतीश पूनिया को यह पूरी बात अच्छी तरह पता है ।
जब मैंने इस षड्यंत्र के बारे में पार्टी के दूसरे महामंत्री वेद प्रकाश दाधीच से बात की तो उन्होंने खुले शब्दों में स्वीकार किया कि उन्हें हराने के लिए कुछ भाजपाई नेताओं ने कांग्रेस के गले लग कर काम किया। उन्हें हराने के लिए संपत सांखला सहित कई स्थानीय नेताओं ने साज़िशें कीं (जो अब उजागर हो चुकी हैं)।पार्टी के अध्यक्ष डॉ पुनिया और संगठन मंत्री चंद्रशेखर को वे लिखित में शिक़ायत कर रहे हैं। फ़ोन पर हुई बात को लेकर यदि ज़रूरी हुआ तो वे केंद्रीय नेतृत्व तक जाएंगे।
मुझे विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि बाड़े बंदी के दौरान संपत सांखला ने वेद प्रकाश दाधीच के पास जाकर उनसे जब चिकनी चुपड़ी बात करनी चाही तो दाधीच ने उन्हें भद्दी गालियां बकते हुए अपने आगे से भगा दिया ।
सूत्रों ने ये भी बताया कि जिस तरह दाधीच ने संपत को भगाया वैसे तो कोई जानवर को भी नहीं भगाता।
मगर.........
पार्टी में गॉडफादर का क्या और कितना रोल होता है वो भी ज़रा जान लीजिए। पार्टी ने सोम रत्न आर्य जैसे क़द्दावर नेता के चर्चित मामले में उनको अपने कोई मजबूत आका नहीं होने के कारण पार्टी से बाहर का रस्ता दिखा दिया। तत्कालीन शहर अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा ने अपने स्तर पर ही तुरंत आलाकमान को पार्टी की छवि खराब होने का हवाला देते हुए पार्टी से निष्काषित कर दिया।
दूसरी तरफ संपत सांखला अपने गॉडफादर की वजह से ही दसवीं पास के झूठे शपथपत्र देने वाले दर्ज़ मुक़दमे में न्यायालय द्वारा आरोपित मान लेने के बाद भी पार्टी में क़ायम हैं।गॉड फादर की वजह से ही वे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा करोड़ों की सरकारी ज़मीन की खरीद फ़रोख़्त में प्रथम दृष्टया आरोपी मान लेने जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद अपना बाल बांका नहीं होने पर पार्टी में सम्मानित हैं। गॉड फादर की वजह से ही वे संगठनात्मक रूप से निगम चुनाव में सह संयोजक बनाकर और मजबूत कर दिए गए है। और संघ संगठन के ना चाहते हुए भी डॉ हाड़ा को मजबूरीवश एक आरोपी को पूरे चुनाव में अपने साथ साथ लिए घूमना पड़ा।
यहाँ आपको बता दूँ कि संपत साँखला के गॉडफादर ही अनुशासन समिति के कर्ता धर्ता हैं और प्रदेश नेतृत्व भी उनके सामने नतमस्तक है। इसलिए अपने चहेते के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही होना असंभव ही लगता है। यदि संपत की जगह और कोई होता तो हैडमास्टर साहब उसका ऐसा इलाज़ करते कि वो भाजपा पार्टी का नाम तक भूल जाता।
जिस स्तर पर सारस्वत और वेद प्रकाश की ऑडियो में मट्टी ख़राब की गई है , उसे देखते हुए लगता नहीं कि वे अपनी किरकिरी बर्दास्त कर के ख़ामोश बैठ जाएंगे।उनकी बातों से लग रहा है कि वे संयुक्त रूप से प्रदेश नेतृत्व को फ़ोन का ऑडियो सुनाकर कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही करवाने के लिए अड़ जाएंगे।
संपत जिसे कि पार्टी द्वारा अजमेर के निगम चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी ,इस सम्मान के बाद भी जब वो किशनगढ़ में ऐसी हरक़त कर सकते हैं तो उन्होंने अजमेर में क्या गुल खिलाये होंगे वो भी आने वाले समय मे सार्वजनिक हो सकते हैं।
फ़िलहाल संपत तो संपत हैं भाई..बाक़ी सब चम्पत हैं।
छिछोर पंथी तेरा ही आसरा।
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