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क़लमकार: चंपत भय्या! चंपत भय्या! मान जाओ!

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February 7, 2021

छोड़ो ना ये चालें सारी ,अब तो पटरी पे आ जाओ

चंपत भय्या! चंपत भय्या! मान जाओ!



छोड़ो ना ये चालें सारी ,अब तो पटरी पे आ जाओ




चंपत बाबा चालीस चोर फ़िल्म के कुछ दृश्यों का फिल्माकंन




सुरेन्द्र चतुर्वेदी




चंपत भैया अपनी टीम को लेकर खाटूश्याम जी हो आये। और आज महापौर पद के लिए वोट डलवाने अपनी टीम लेकर अजमेर पहुंचने वाले हैं।और मैं यहां अलीबाबा चालीस चोर वाली फिल्म देख कर चंपत बाबा चालीस साहूकार फ़िल्म की पटकथा लिख रहा हूँ।





पटकथा के पहले एपीसोड में चंपत भैया फुल मूड में नज़र आ रहे हैं।साला मैं तो साहब बन गया वाले अंदाज़ में। उनकी गतिविधियों से तो ऐसा लग रहा है जैसे कि वे पार्टी के शहर अध्यक्ष बनने की तैयारी में लगे हुए हैं। उनके तांत्रिक गुरु (जिनको लोग हेड मास्टर जी के नाम से जानते हैं ), ने उन्हें आश्वस्त कर दिया है कि मुन्ना भाई एम बी बी एस बनने में ही फायदा है ।वैसे भी चंपत भय्या आलरेडी फर्जी मार्क शीट मामले में विशेष योग्यता प्राप्त कर चुके हैं। उनके हैड मास्टर जी ने चंपत भय्या को यह बात अच्छी तरह समझा दी है कि उनके होते उनका कोई बाल बांका नहीं हो सकता। चंपत भैया ने भी डॉ हाड़ा पर कब्जा करके अपने आकाओं को ये यकीन दिला दिया है कि वे ही पार्टी की प्राणवायु हैं। पार्टी के वेंटिलेटर हैं।





पार्टी ने भले ही उनकी एन वक़्त पर टिकट काट दी हो लेकिन वे अपने निकटतम नेता भाऊ बली और बहन जी पर पूरे चुनावी काल में बहुत भारी रहे। इतने भारी कि उनके नेतृत्व में बेईमान तो बेईमान ईमानदार पार्षद भी नतमस्तक हैं। वे भी उनके नेतृत्व में धार्मिक यात्रा पर गए हुए थे





कहानी के दूसरे एपिसोड में करामाती हेडमास्टर के खुराफाती चेले ने पूरी पार्टी को ही सिर पर उठा रखा है। उसने शहर के दिग्गज नेता हाड़ा जी को तो नतमस्तक करवा ही रखा है साथ ही वरिष्ठ नेता हेड़ा जी, धर्मेश जी, आनंद सिंह जी जैसे पार्टी के जमीन से जुड़े वफादारों को भी दरकिनार कर रखा है।





पता नहीं उन्हें हेड मास्टर जी ने कौनसा जलजीरा दे रखा है कि जिसके छिड़कने से सलाद का मज़ा ही कई गुना बढ़ जाता है ।





चंपत भैया ने ज़मीनों के धंधे में रेल बना कर रख दी ।लाखों नहीं करोड़ों की सरकारी गैर सरकारी ज़मीन की खरीद-फरोख्त में उन्होंने नामी भू माफियाओं को भी पीछे छोड़ दिया ।अब तो आए रोज़ ही उनके कई कांड कार सेवकों द्वारा इकट्ठे किए जा रहे हैं । कल एक छुट भैया बता रहा था कि चंपत भैया को कुछ समय पूर्व किसी निजी मामले में इतना ठोका गया कि उनको अस्पताल तक में भर्ती होना पड़ा। मैंने उसे लाख समझाया कि वो तो चंपत भैया का एक्सीडेंट हो गया था मगर वह माना ही नहीं ।बोला पता करो कि मामला किस त्रिया से जुड़ा हुआ था। वो तो अच्छा हुआ कि मैं कान का कच्चा नही इसलिए मैंने उसे डांट कर भगा दिया।






मेरी कहानी में अब नया मोड़। इन दिनों चम्पत भय्या मेयर बनाने के लिए कई गेयर बदलते रहे हैं । भगवान का दिया हुआ उनके पास बहुत काला धन है । बहुत पैसा है ।वे उसे ठिकाने लगाने की जगह निशाने लगाने में लगे हुए हैं ।






भाऊ बली और बहन जी समझ नहीं पा रहे कि जयपुर वाले हैड मास्टर जी आखिर कौन सा खेल चम्पत भय्या से खिलवा रहे हैं। कहानी के अहम क़िरदार अरुण भैया जो भी हेडमास्टर जी के चरण छूने वाले चेले हैं ,इन दिनों चम्पत भैया के गुरु भाई बने हुए हैं। एक और शीर्षस्थ नेता भी हेड मास्टर जी के ही चेले कहे जाते हैं। यही वजह है कि चंपत भैया दागी होने के बावजूद भी शहर में पार्टी के बेताज़ बादशाह बने हुए हैं। भैया को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा सरकारी जमीन की खरीद फरोख्त में प्रथम दृष्टया दोषी मान लेने के बावजूद भी शीर्षस्थ नेता द्वारा इस चुनावी संग्राम में सह संयोजक जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई।






कहानी के तीसरे एपिसोड में भाभी जी को राज सिंहासन मिल ही चुका है और अब एक परिवार एक पोस्ट की अड़ी लगाकर भाई साहब के लंगी लगाने की तैयारी है। उनको अपनी सल्तनत से हाथ धोना पड़ेगा यह तय किया जा रहा है।






अब चम्पत भय्या उनकी गद्दी संभालने के लिए उतावले हो रहे हैं। हेड मास्टर जी ने उन्हें अच्छी तरह समझा दिया है कि उनके होते हुए भाऊबली और बहन जी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएँगे। पार्टी में जब तक वे क़ाबिज़ हैं, राजधानी में बैठकर भी वे तांत्रिक क्रियाएं करते रहेंगे ।राजनीतिक मूठ चलाने की दिशा में यूँ भी उनका कोई मुकाबला नहीं।






पृथ्वीराज के शहर में तो वैसे भी चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण होते हैं ।






शहर में शीघ्र ही नई जनता सरकार बननी है। कहानी के आख़री एपिसोड में चम्पत भय्या फिर कोई नया खेल खेलेंगे । लंगी बाज़ी वाला खेल।भाऊ बलि ने हेड मास्टर जी का तो ताबीज़ बना दिया था मगर उनके चेले का ताबीज़ वे अभी तक नहीं बना पाए हैं।..... मगर मेरा मानना है कि भाऊ भी कोई कम राजनीतिक तांत्रिक नहीं । बड़े ही प्रजातांत्रिक तरीके से तंत्र विद्याओं को आज़माते हैं ।अभी तो वे चंपत भैया को उछलने कूदने दे रहे हैं। जैसे वे जानबूझकर पतंग को ढील दे रहे हों। जिस दिन उन्होंने मांझे का रग्गा मारा उसी दिन चंपत भैया की पतंग कट कर ख़जूर पर अटक जाएगी।






फिलहाल खाटू श्याम जी की जय!


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