Post Views 51
January 18, 2021
रात में कल हाँ,यही हुआ था,
सपने में सपना टूटा था।
इश्क़ जिसे तू कहता रहा वो,
मेरी आँखों का धोका था।
कौन था नीचे पता नहीं पर,
क़ब्र के ऊपर मैं लेटा था।
चौराहे पर चार थे रस्ते,
चारों पर मैं दौड़ रहा था।
थी तो कलाई और किसी की,
नाम मगर मेरा लिक्खा था।
सायों की थी भीड़ वहाँ पर,
हर साया मेरा साया था।
ख़र्च हो गया होता मैं भी,
किसी ने मुझको बचा लिया था।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved