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January 3, 2021
आती हुई सदा है अब भी,
याद मुझे करता है अब भी।
घर की घुटन से घबरा कर वो,
दरवाज़े पर खड़ा है अब भी।
बाक़ी जिस्म का पता नहीं पर,
दिल शायद ज़िन्दा है अब भी।
जितना भी पागल हो चाहे,
रोता और हंसता है अब भी।
दम चराग़ का घुटने लगा पर,
हवा से कब डरता है अब भी।
जल कर राख हो गया लेकिन,
मुझमें कुछ जलता है अब भी।
मेरी रेत से गुज़र के देखो,
अंदर कुछ बहता है अब भी।
चाहे इबादत टूट चुकी हो,
इश्क़ मेरा सजदा है अब भी।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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