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December 28, 2020
पाँव की पायल,हमीं न थे,
आँख का काजल,हमीं न थे।
कैसे कहीं बरस जाते,
काले बादल,हमीं न थे।
पूज लिए जाते शायद,
लेकिन पीपल, हमीं न थे।
कैसे मिल जाती ख़ुशबू,
जबकि सन्दल ,हमीं न थे।
अपने यक़ीनन थे वो तो,
लेकिन बेकल,हमीं न थे।
जिसमें तपस्या हो पाती,
ऐसे जंगल,हमीं न थे।
हो जाएं ख़ुद से भी दूर,
इतने पागल ,हमीं न थे।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
Satyam Diagnostic Centre
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