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December 24, 2020
जाने कैसी जान हूँ मैं,
काग़ज़ का सामान हूँ मैं।
दिखने में गुलदान हूँ मैं,
लेकिन आतिशदान हूँ मैं।
पढ़ने में कितना मुश्किल,
लिखने में आसान हूँ मैं।
बाहर सिर्फ़ हवा जैसा,
अंदर इक तूफ़ान हूँ मैं।
दरवाज़े तुम खिड़की हो,
और इक रौशनदान हूँ मैं।
मुझको ख़बर कहाँ मेरी,
किस फ़क़ीर का ध्यान हूँ मैं।
आंखों में खुशियां भरकर,
सदियों से वीरान हूँ मैं।
अश्क़ भी अब तो कहने लगे,
पत्थर दिल इंसान हूँ मैं।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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