For News (24x7) : 9829070307
RNI NO : RAJBIL/2013/50688
Visitors - 112166246
Horizon Hind facebook Horizon Hind Twitter Horizon Hind Youtube Horizon Hind Instagram Horizon Hind Linkedin
Breaking News
Ajmer Breaking News: अजमेर दरगाह में अजीत पवार को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की मन्नत, |  Ajmer Breaking News: अजमेर के आजाद पार्क में छठ पूजा की तैयारी को लेकर की जा रही है साफ सफाई, |  Ajmer Breaking News: अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट प्रशासन के नेतृत्व में पुलिस अधिकारी और जवानों ने हाई सिक्योरिटी जेल का किया सघन निरीक्षण, |  Ajmer Breaking News: दिल का दुखड़ा सुनाने अजमेर दरगाह पहुंचे आज़म खान, ख्वाजा गरीब नवाज की मज़ार पर शुकराना चादर पेश कर जीवन मे खुशियो की मांगी दुआ |  Ajmer Breaking News: संदिग्ध परिस्थितियों में युवक की मौतः पिता ने आत्महत्या मानने से किया इंकार ! परिजनों ने आरएलपी के साथ मिलकर निकाला कैंडल मार्च प्रशासन से निष्पक्ष जांच की कि मांग |  Ajmer Breaking News: ब्रह्मकुमारीज परिवार ने दीप जलाकर और केक काटकर मनाया दीपावली का पर्व, भाईदूज की भी दी शुभकामनाएं  |  Ajmer Breaking News: संदिग्ध परिस्थितियों में युवक की मौतः पिता ने आत्महत्या मानने से किया इंकार ! |  Ajmer Breaking News: हरिभाऊ उपाध्याय नगर थाना अंतर्गत प्रॉपर्टी डीलर मनोज नानकानी पर जानलेवा हमला करने के आरोप में फरार चल रहा 11वां आरोपी भी गिरफ्तार, |  Ajmer Breaking News: अजमेर जिले के पुष्कर में विश्व प्रसिद्ध पशु मेला 22 अक्टूबर से औपचारिक रूप से शुरू हो गया है। |  Ajmer Breaking News: गुर्जर समाज का ऐतिहासिक व भव्य जिला स्तरीय गुर्जर प्रतिभा सम्मान समारोह एवं शैक्षिक सम्मेलन 26 अक्टूबर को आयोजित किया जाएगा। | 

विशेष: दिवाली की कथा ,महत्व एवं पूजन विधि

Post Views 11

October 30, 2020

 कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल होने पर दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) मनाने का विधान है

दिवाली

 दिवाली या दीपावली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। हिंदू धर्म में दिवाली का विशेष महत्व है। धनतेरस से भाई दूज तक करीब 5 दिनों तक चलने वाला दिवाली का त्यौहार भारत और नेपाल समेत दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। दीपावली को दीप उत्सव भी कहा जाता है। क्योंकि दीपावली का मतलब होता है दीपों की अवली यानि पंक्ति। दिवाली का त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।

हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध, जैन और सिख धर्म के अनुयायी भी दिवाली मनाते हैं। जैन धर्म में दिवाली को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं सिख समुदाय में इसे बंदी छोड़ दिवस के तौर पर मनाते हैं।

दिवाली कब मनाई जाती है


1.  कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल होने पर दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) मनाने का विधान है। यदि दो दिन तक अमावस्या तिथि प्रदोष काल का स्पर्श न करे तो दूसरे दिन दिवाली मनाने का विधान है। यह मत सबसे ज्यादा प्रचलित और मान्य है।

2.  वहीं, एक अन्य मत के अनुसार, अगर दो दिन तक अमावस्या तिथि, प्रदोष काल में नहीं आती है, तो ऐसी स्थिति में पहले दिन दिवाली मनाई जानी चाहिए।

3.  इसके अलावा यदि अमावस्या तिथि का विलोपन हो जाए, यानी कि अगर अमावस्या तिथि ही न पड़े और चतुर्दशी के बाद सीधे प्रतिपदा आरम्भ हो जाए, तो ऐसे में पहले दिन चतुर्दशी तिथि को ही दिवाली मनाने का विधान है।

1.  देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।

2.  महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।

दिवाली पर लक्ष्मी पूजा की विधि


दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1.  दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं।

2.  पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।

3.  माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।

4.  इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें।

5.  महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए।

6.  महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।

7.  पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।

दिवाली पर क्या करें


1.  कार्तिक अमावस्या यानि दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है।

2.  दिवाली के दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़कर् अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें।

3.  दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

4.  दिवाली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।

दिवाली की पौराणिक कथा


हिंदू धर्म में हर त्यौहार से कई धार्मिक मान्यता और कहानियां जुड़ी हुई हैं। दिवाली को लेकर भी दो अहम पौराणिक कथाएं प्रचलित है।

1.  कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्री राम चंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर और लंकापति रावण का नाश करके अयोध्या लौटे थे। इस दिन भगवान श्री राम चंद्र जी के अयोध्या आगमन की खुशी पर लोगों ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था। तभी से दिवाली की शुरुआत हुई।

2.  एक अन्य कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी असुर शक्तियों से देवता और साधु-संतों को परेशान कर दिया था। इस राक्षस ने साधु-संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के बढ़ते अत्याचारों से परेशान देवता और साधु-संतों ने भगवान श्री कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई, साथ ही 16 हजार स्त्रियों को कैद से मुक्त कराया। इसी खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

इसके अलावा दिवाली को लेकर और भी पौरणिक कथाएं सुनने को मिलती है।

1.  धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित पाकर खुशी से दीपावली मनाई थी।

2.  इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को पति के रूप में स्वीकार किया था।

दिवाली का ज्योतिष महत्व


हिंदू धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिष महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं। हिंदू समाज में दिवाली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है। दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।

दीपावली का आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों रूप से विशेष महत्व है। हिंदू दर्शन शास्त्र में दिवाली को आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव कहा गया है।


© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved