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June 19, 2017
जयपुर - शिक्षा एवं पंचायतीराज राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि प्राकृति ने हमारी स्वास्थ्य रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण अवयवों से नवाजा है। प्राकृतिक फलों, सब्जियों एवं पौधों से मिलने वाले रस हमारे शरीर को ना सिर्फ पुष्ट करते हैं बल्कि यह नाड़ी व रक्त की शुद्धता के लिए भी रामबाण औषधि हैं साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि करते है। इन प्राकृतिक रसों का सेवन योग के साथ करने से हमें दुगुना फायदा मिलता है।
शिक्षा राज्यमंत्री ने आज अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर आयोजित योग शिविरों में यह बात कही। शिविरों में आज योग साधकों को एलोवेरा, आंवला, तिर््फला आदि फलों व पौधों के रस का वितरण कर इनका महत्व समझाया गया। देवनानी ने कहा कि यह प्राकृतिक रस हमारे स्वास्थ्य रक्षक हैं। योग के साथ इनका नियमित सेवन करना चाहिए। इससे शरीर पुष्ट होने के साथ ही आंतरिक रूप से भी निरोग रहेगा। देवनानी ने बताया कि योग शिविरों पर प्रतिदिन क्षेत्रवासियों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट है कि मानसिक व शारीरिक स्वस्थता के प्रति हमारी सोच स्मार्ट हो रही है जो कि अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने में निश्चित रूप से सहायक साबित होगी। उन्होंने कहा कि योग से हमारा शरीर तो स्वस्थ रहता ही है, साथ ही योग से हमारी एकाग्रता, क्रियाशीलता, सजगता में भी बढ़ोतरी होती है तथा हम अपनी दिनचर्या को सुव्यवस्थित बना पाते है जिससे हम चाहे जिस भी क्षेत्र में काम करते है उसमें निश्चित ही सुधार होता है शिविर संयोजक धर्मेन्द्र गहलोत ने बताया कि वार्ड 51 के शिविर संयोजक व पार्षद अनीश मोयल के पुतर्् का सड़क दुर्घटना में आकस्मिक निधन होने से यहां का शिविर आज व कल 19 जून को स्थगित रहेगा। शेष स्थानों पर कल छठें दिन योग शिविर निर्धारित समयानुसार आयोजित होंगे। कल योग के पश्चात् शिविरार्थियों को अंकुरित अनाज का वितरण किया जाएगा।
सह संयोजक सुभाष काबरा ने बताया कि शिविर स्थलों पर आज योग साधकों को विभिन्न आसनों के जरिए व्यायाम करवाया गया। प्रशिक्षकों ने साधकों को ताड़ासन का प्रशिक्षण देते हुए बताया कि ताड़ का सामान्य अर्थ खजूर का पेड़ होता है। इसे करने के लिए पैरो में 2 इंच की दूरी रखकर खड़ा होना होता है। यह खड़े होकर किए जाने वाले समस्त आसनों का आधार माना गया है। हाथों की अंगुलियों को आपस में एक दूसरे से मिलाकर हथेलियों को बाहर की ओर रखते हुए श्वास को अन्दर ग्रहण करें। भुजाओं को ऊपर की ओर करके कंधों को एक सीध में ले आएं। पैर की एड़ियों को ऊपर उठाकर अंगुलियों पर संतुलन साधने का प्रयास करें। इस स्थिति में सामथ्र्य के अनुसार रुकने का प्रयास करें। श्वास को बाहर छोड़ते हुए प्रारम्भिक स्थिति में आ जाएं। इस आसन को करने से स्थायित्व एवं शारीरिक सुदृढता प्राप्त होती है। इससे मैरूदण्ड से संबंधित अवयवों में रक्त संचार सुचारू हो जाता है। बालकों में दाढ़ी मूंछ आने तक एवं बालिकाओं में मासिक धर्म शुरू होने तक इस आसन के द्वारा लम्बाई में पर्याप्त वृद्धि की जा सकती है।
यह आसन हृदय एवं नसों से संबंधित मरीजों को नहीं करना चाहिए। कई बार चक्कर आने की स्थिति बने तो अंगुलियों पर खड़े होने के अलावा अन्य पद किए जा सकते है।
उन्होंने वृक्षासन की जानकारी देते हुए कहा कि यह आसन दोनों पैराें के मध्य दो इंच की दूरी रखकर खड़ी स्थिति में किया जाता है। श्वास को बाहर छोड़ते हुए दायें पैर को मोड़कर उसके पंजे को बायें पैर की जांघ के मूल पर रखा जाता है। एडी मूलाधार को स्पर्श करते हुए होनी चाहिए। श्वास को अन्दर लेते हुए हाथ ऊपर खिंचकर हथेलियों को जोड़ लें। इस स्थिति में सामथ्र्य के अनुसार रूकते हुए सामान्य श्वास लें। श्वास को बाहर छोड़ते हुए हाथो एवं पैरों को सामान्य स्थिति में ले आए। शरीर को कुछ क्षण आरम देकर बांये पैर से यही क्रिया दोहराएं।
वृक्षासन का अभ्यास करने से शरीर में संतुलन एवं सहनशीलता में वृद्धि होती है। अभ्यासी की जागरूकता में बढ़ोतरी होती है। तंत्रिका तंत्र के स्नायुओं में आपसी समन्वय बेहतर हो जाता है। पैरों की मांसपेशियां गठिली होने के साथ ही लिगामेंट्स भी सुदृढ़ हो जाते है। इस आसन से आर्थराइटिस, मोटापा एवं चक्कर आने की स्थिति में बचना चाहिए।
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