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June 16, 2017
अजमेर। योग ही वह महत्वपूर्ण शक्ति है जो किसी भी रोग को दूर भगाकर मनुष्य के स्वास्थ्य में वृद्धि करती है। योग आध्यात्मिक अनुशासन एवं अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित ज्ञान है। यह मन और तन के मध्य समन्वय स्थापित कर स्वस्थ जीवन की कला सिखाता है। योग अभ्यास से व्यक्ति जीवन में पूर्ण स्वतंत्राता, स्वास्थ्य, प्रसन्नता एवं सामजस्य का अनुभव करता है।
योग से जुड़े इन मूल मंत्रांे के ज्ञान के साथ आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष योग शिविरों के तीसरे दिन की शुरूआत अजमेर उत्तर विधान सभा क्षेत्रा में 30 स्थानों पर हुई। आयोजक एवं शिक्षा एवं पंचायतीराज राज्य मंत्राी श्री वासुदेव देवनानी ने बताया कि क्षेत्रावासियों में योग को लेकर भारी उत्साह का वातावरण है। सभी शिविर स्थल पर प्रातः 5.30 बजे से क्षेत्रावासियों का आना प्रारम्भ हो जाता है जिनमें सभी आयु वर्ग के महिला, पुरूष व युवा शामिल होते है तथा 7 बजे तक योग शिक्षक के मार्गदर्शन में योग के विभिन्न आसन व क्रियाओं को ध्यान से सीखने का अभ्यास कर रहे है।
उन्होंने बताया कि वैदिक श्रुति परम्परा के अनुसार शिव को आदि योगी कहा गया है। योग का ज्ञान इन्होंने सप्त ऋषियों को प्रदान किया। इनके द्वारा योग अखिल विश्व में प्रसारित हुआ। भारत में योग की विद्या अपने चरमोत्कर्ष के साथ आगे बढ़ी। महर्षि पतंजलि ने प्राचीनकाल से चले आ रहे समस्त योग अभ्यासों एवं क्रियाओं को व्यवस्थित और वर्गीकृत किया। इनका ग्रंथ पतंजलयोगसूत्रा आज भी जिज्ञाषु साधकों एवं अभ्यासियों का मार्गदर्शन करता है। वर्तमान में योग अभ्यास से रोग मुक्ति, स्वास्थ्य लाभ लिया जा रहा है। इस कारण योग निरंतर विकसित और समृद्ध हुआ है। योग से व्यक्ति की शारीरिक क्षमता एवं ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है। योग के 4 वर्ग निर्धारित किए गए है। कर्म योग में शरीर, ज्ञान योग मे मन, भक्ति योग में भावना एवं क्रिया योग में ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। ये वर्ग आपस में एक दूसरे से संबंधित एवं अध्यारोपित होती है। योग से संबंधित कई परम्पराओं ने इसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
शिविर के तहत पतंजलि योग समिति एवं महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के योग शिक्षकों द्वारा यौगिक अभ्यास में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि जैसे अष्टांग योग सहित बंध, मुद्रा, षट्कर्म, युक्ताहार, मंत्राजप एवं युक्तकर्म आदि की जानकारी दी जा रही है। योग शिक्षकों ने बताया कि प्राणायाम श्वसन प्रक्रिया को नियमित एवं व्यवस्थित करता है। इससे मन पर नियंत्राण करना आसान हो जाता है। प्राणायाम से नासिका, मुख सहित शरीर के समस्त रंद्रो एवं मार्गों तक संवेदनशीलता बढ़ जाती है। प्राणायाम में पूरक, कुम्भक एवं रेचक पद होते है। प्रत्याहार के अन्तर्गत अभयासी अपनी इन्द्रियों के माध्यम से सांसारिक विषयों का त्याग कर मन को चेतना केन्द्र के साथ एकाकार करने का प्रयास करता है। धारणा का अभ्यास मनोयोग के व्यापक आधार क्षेत्रा के एकीकरण का प्रयास करता है। यह एकीकरण बाद में ध्यान में परिवर्तित हो जाता है। ध्यान योग साधना पद्धति का सार माना गया है। इसी ध्यान में चिंतन एवं एकीकरण से समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। बंध एवं मुद्रा प्राणायाम से संबंधित योग अभ्यास है। ये उच्च कोटि की योगिक क्रियाए मानी जाती है। षट्कर्म शरीर एवं मन के शोधन का अभ्यास है। इससे शरीर में एकत्रा हुए विषैले एवं अपशिष्ट पदार्थों को हटाने में सहायता मिलती है। युक्ताहार स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त सुव्यस्थित एवं नियमित भोजन का समर्थन करता है। मंत्राजाप सकारात्मक मानसिक ऊर्जा का सृजन करते है। युक्तकर्म स्वास्थ्य जीवन के लिए उचित कर्म की प्रेरणा देते है।
योग शिक्षकांे ने बताया कि योगाभ्यास करने के संबंध में योगाचार्यों द्वारा विभिन्न निर्देश एवं सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए है। इनका पालन करने से योगाभ्यास का परिणाम सार्थक एवं बहुआयामी होता है।
अभ्यास से पूर्व वातावरण, शरीर एवं मन की शुद्धि आवश्यक है। अभ्यास शान्त वातावरण में शनै-शनै शरीर एवं मन को श्थििल करके करना चाहिए। खाली पेट अभ्यास करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। कमजोरी की स्थिति में गुनगुने पानी के साथ शहद का सेवन किया जा सकता है। योगाभ्यास के समय मल एवं मूत्र से निर्वत होना चाहिए। योगाभ्यास किसी बिछावन पर तथा सूती, हल्के एवं आरामदायक वस्त्रों के साथ करना चाहिए। थकावट, बीमारी, जल्दबाजी एवं तनाव की स्थिति में योग को विराम दे देना चाहिए।
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