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राष्ट्रीय न्यूज़: किसान आंदोलन में चेहरा नहीं, सोशल मीडिया के जरिए दी गई हवा

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June 9, 2017

भोपाल रिपोर्ट । आठ दिनों से मप्र में धधक रहा किसान आंदोलन बिना किसी नेतृत्व के धधकता रहा। कई किसान संगठन इसका नेतृत्व करने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन हिंसक गतिविधियों में शामिल होने से इनकार कर रहे हैं। हिंसा कौन कर रहा है, इससे संगठन अनभिज्ञता जता रहे हैं। साफ है कि मैदान में आंदोलनकारियों का कोई भी नेता मौजूद नहीं था, इस वजह से भीड़ अनियंत्रित होती गई और हिंसक घटनाएं बढ़ती गईं। इस आग में घी का काम सोशल मीडिया पर चल रहे संदेशों ने भी किया। कई आंदोलनकारी वॉट्सएप और फेसबुक के जरिए लोगों को भड़काने में लगे रहे।भारतीय किसान संघ द्वारा आंदोलन वापस लेने के बावजूद राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ और भारतीय किसान यूनियन अभी भी क्षेत्र में सक्रिय हंै। नीमच, मंदसौर, उज्जैन, रतलाम सहित अन्य इलाकों में छोटे-छोटे नेतृत्व में यह आंदोलन चल रहा है, जो प्रदेश के कई अन्य क्षेत्रों तक पहुंच गया है। इस नेतृत्व के बारे में सरकार के पास भी कोई जानकारी नहीं है। भारतीय किसान मजदूर संघ के नेता शिवकुमार शर्मा से सरकार बात नहीं करना चाहती थी और इसके अलावा कोई अन्य नेतृत्व सरकार के सामने नहीं आया। इस वजह से सरकार किसी से बातचीत नहीं कर पाई।

आंदोलन हमारा पर हिंसा में हम नहीं: कक्काजी

भारतीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा का कहना है कि आंदोलन का नेतृत्व उनके ही संघ ने किया है। सरकार ने फायरिंग करने के लिए खुद ही वाहनों में आग लगाई है। सरकार असामाजिक तत्वों के कब्जे में है। उनका कहना है कि आंदोलन उनके नेतृत्व में चल रहा है, लेकिन हिंसा में उनके लोग शामिल नहीं हैं। माना जा रहा है कि मंदसौर और नीमच में अफीम की खेती करने वाले कुछ माफिया भी इसमें शामिल हो सकते हैं। वहीं संघ ने भी कांग्रेस की भूमिका को नकार दिया है। शर्मा ने कहा कि 500 लोगों में 25 किसान यदि कांग्रेस समर्थक होंगे तो इससे यह बात सिद्ध नहीं होती कि आंदोलन कांग्रेस कर रही थी। गौरतलब है कि भाजपा और सरकार पहले दिन से आंदोलन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रही है।

कांग्रेस की भूमिका नहीं: दीक्षित 

किसान आंदोलन में शामिल विभिन्न् संगठनों ने भाजपा के इस दावे को नकार दिया है कि आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशांगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने कहा कि किसान आंदोलन में कांग्रेस के कार्यकर्ता सक्रिय नहीं थे। संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री शिवकांत दीक्षित ने साफ किया कि संघ 1 से 4 जून तक आंदोलन में सक्रिय था। मुख्यमंत्री से बातचीत के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया।

आंदोलन में क्या थी भाकिसं की भूमिका

क्षेत्रीय संगठन मंत्री दीक्षित के मुताबिक भारतीय किसान संघ ने दो महीने पहले ही खंडवा, धार, राजगढ़ और इंदौर में आंदोलन का कार्यक्रम घोषित किया था। 2 जून को हम अन्य संगठनों द्वारा घोषित ग्राम बंद मंे शामिल हुए, लेकिन सब्जियां फेंकने और हिंसक गतिविधि से दूर रहे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने खुद मुझे फोन कर उज्जैन बातचीत के लिए बुलाया था। सीएम द्वारा घोषणा के बाद हमने आंदोलन स्थगित कर दिया। अब हम हिंसा खत्म करने के लिए आंदोलनकारियों से अपील कर रहे हैं।

आंदोलन रोकने के लिए उठाए कदम भी नाकाफी

किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन में भारतीय किसान संघ से बातचीत करने के बाद तुअर और मूंग को समर्थन मूल्य पर खरीदने की घोषणा की। वहीं करीब 2 हजार करोड़ के ब्याज की माफी की तैयारी सरकार ने शुरू की, लेकिन यह कदम आंदोलन को रोक नहीं पाए।

आंदोलन शांत करने बढ़ाते गए मुआवजा

किसानों की मौत के बाद राज्य सरकार ने मुआवजे की राशि दो बार बढ़ाई। पहले पांच लाख और फिर दस लाख स्र्पए मुआवजे की घोषणा की गई। देर रात मुख्यमंत्री निवास पर शिवराज ने अधिकारियों और कुछ प्रमुख भाजपा नेताओं के साथ चर्चा कर मुआवजा राशि एक करोड़ स्र्पए और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की। यह कदम किसी भी तरह आंदोलन को खत्म करने के लिए उठाया गया था।

असामाजिक तत्व भी सक्रिय 

मंदसौर नीमच अफीम उत्पादक जिले होने के कारण इस क्षेत्र में कई माफिया और तस्कर भी सक्रिय हैं। प्रशासनिक सूत्रों का यह भी मानना है कि आंदोलन की आड़ में ये लोग भी हिंसा और आगजनी फैला सकते हैं। गोलीबारी के बाद पुलिस द्वारा कार्रवाई न किए जाने के कारण भी आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है।

चेक लेने से इनकार 

सूत्रों का दावा है कि दो दिन पहले जिन किसानों की मौत पुलिस की गोली से हुई थी, उनके परिजनों ने मुआवजे का चेक लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने मुआवजा लेने के बजाय कहा कि आप हमसे कोरा चेक ले जाओ, जो मर्जी आए उतनी रकम भर लेना।

जींस वाले किसान कर रहे आंदोलन 

पिछले कुछ दिनों से जो किसान आंदोलन कर रहे हैं उनमें से ज्यादातर युवा हैं। जींस, टी-शर्ट पहनने वाले ये युवा ही आंदोलन का नेतृत्व भी कर रहे हैं। इनका नेतृत्व करने वाला कोई नामचीन नेता नहीं है।

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