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June 2, 2017
नई दिल्ली - इंडियन एसोसिएशन ऑफ एम्यूजमेंट पार्क एंड इंडस्ट्रीज का मानना है कि जीएसटी के तहत इस उद्योग पर 28 फीसद की भारी-भरकम कर दर थोपे जाने से इसका अस्तित्व संकट में आ जाएगा। सरकार के इस कदम से यह पार्क आर्थिक तौर पर अलाभकारी हो जाएंगे। नतीजतन उन्हें बंद करने पर विवश होना पड़ सकता है। एसोसिएशन ने इस बात पर आपत्ति जतायी है कि उनके उद्योग को केसिनो, बैटिंग एवं रेसकोर्स के समकक्ष रखा गया है। जबकि इसकी सामाजिक संरचना एवं पर्यटन को आकर्षित करने वाली भूमिका को नजरंदाज किया गया है। ऐसे में जीएसटी की ऊंची दर बच्चों की पिकनिक में खलल का कारण बन सकती है। एसोसिएशन की राय में इस प्रकार के करों से उद्योग पर भारी बोझ पड़ेगा जो कि पहले से ही मनोरंजन कर के साथ ही 15 फीसदी के सेवा कर के बोझ से जूझ रहा है। इस उद्योग पर लक्जरी कर थोपा जाना भी गलत है क्योंकि मनोरंजन पार्क (एम्यूजमेंट पार्क) परिवारों के आमोद-प्रमोद का स्थान होते हैं। भारत में उद्योग को अभी तक शैशवकाल की श्रेणी में माना जाता है। इसके लिए विशाल निवेश की आवश्यकता होती है और काफी लंबे समय बाद इससे आय की संभावना रहती है। मेगा पाकोर्ं में कम से कम 700 करोड़ रुपए का निवेश भूमि और राइड्स विकसित करने में करना पड़ता है। वहीं मध्यम आकार के पार्क पर यह निवेश न्यूनतम 100 करोड़ के आसपास बैठती है। यह पूर्ण रूप से मौसमी कारोबार होता है और इसे ऑफ सीजन में भी उसी प्रकार से परिचालित करने की जरूरत होती है। यह उद्योग किसी प्रकार के प्रमुख कच्चे माल का उपयोग नहीं करता और इसका इनपुट क्रेडिट भी दो-तीन फीसद से ज्यादा नहीं होता इसलिए इस मनोरंजन उद्योग इस प्रकार की उच्च जीएसटी दर लगाना न्यायोचित नहीं है।छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान देने वाली और उन्हें विभिन्न शुरुआती गतिविधियों का अवसर मुहैया करवाने वाली किताबों को जीएसटी के दायरे में लाये जाने का प्रकाशकों ने विरोध किया है। सामान्य पुस्तकों को तो जीएसटी से बाहर रखा गया है, लेकिन छोटे बच्चों की वर्क बुक, पिक्चर बुक, ड्राइंग और कलरिंग बुक और एक्टिविटी बुक को इसमें शामिल कर लिया गया है। एसोसिएशन ऑफ स्कूल बुक पब्लिशर्स (एएसबीपी) के सचिव नवीन जोशी का कहना है कि भारत के संविधान के मुताबिक ज्ञान और शिक्षा की सहज उपलब्धि भारतीय नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इसी तरह भारत ने यूनेस्को की संधि पर भी दस्तखत किया है जिसके तहत ज्ञान पर किसी तरह का कर नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार से मुलाकात कर कहा है कि दूसरी किताबों की तरह इन्हें भी जीएसटी से बाहर रखा जाए। साथ ही इनका कहना है कि स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य करने से भारत का प्रकाशन व्यवसाय चौपट हो जाएगा। पुस्तक प्रकाशन में भारत आज दुनिया में सातवें स्थान पर है। भारतीय प्रकाशन का 70 फीसदी हिस्सा सिर्फ स्कूली किताबों का ही है
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