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June 1, 2017
शायद ही किसी का ध्यान गया हो कि जुमे के दिन नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल पूरे हुए और ठीक उसी दिन भारत सरकार से यह अधिसूचना जारी हुई कि गौवंश की खरीद-फरोख्त की फलां-फलां पाबंदियां हैं। फरमान पशुधन के प्रति क्रूरता न होने देने के नाम पर आया। तब अपना सवाल है कि बेचारे बकरे-बकरियों, मुर्गों को क्यों छोड़ा गया? क्रूरता याकि जीव हत्या के प्रति यदि मोदी सरकार संवेदनशील हो ही गई है तो ऊंट, बंदर या मुर्गों में क्यों फर्क किया जाए? अब तर्क और लोजिक का इन दिनों क्योंकि कोई मतलब नहीं है इसलिए गौवंश ( बैल, गाय, भैंस, पाड़ा, ऊंट) के मामले को पशु क्रूरता के बहाने पर्यावरण मंत्रालय ने पाबंदियों की अधिसूचना जारी की है वहीं बाकि को छोड़ दिया। वक्त मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने का चुना गया। सोचें, जब तीन साल की उपलब्धियों की बड़ी-बड़ी बातें हैं तब भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को हिंदू को दिखाने के लिए गाय, भैंस को लाने की जरूरत हुई। क्यों?
इसलिए कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह समझे हुए हैं, जान चुके हैं कि यूपी में दलित बनाम राजपूत की लड़ाई का बवंडर बने या नौजवान बाद में बेरोजगारी से बिलबिलाए लेकिन मुसलमान के आगे यदि हिंदू अपनी गाय के साथ भैंस लिए खड़ा रहा तो सबकुछ सुरक्षित है। गाय को आगे रखें तो हिंदू सेना आगे बढ़ती जाएगी। बाहुबली जीतते जाएंगे।
इसलिए गौवंश पर तीसरी सालगिरह के दिन दया उमड़ी और पर्यावरण विभाग ने पूरे देश पर लागू होने वाली अधिसूचना चुपचाप जारी कर दी। यह फरमान उत्तर पूर्व के प्रदेशों और केरल में भी लागू होगा। मामूली बात नहीं कि नागालैंड और केरल में इसके बाद क्रूरता रुकाने वाले सरकारी रक्षक ड्यूटी कर रहे होंगे।
जाहिर है गाय, सांड, भैंस, बछड़े की आजादी, पशु मेलों में खरीद फरोख्त में इस पूछताछ का, शक का अब सीधे औचित्यपूर्ण सवाल बनेगा कि सौदा कहीं कसाईखाने के लिए तो नहीं हो रहा है? भैंस का इसमें कवर होना बड़ी बात है। पशुपालन और उससे जुड़े कारोबार की दिक्कत का पहलू अपनी जगह है मगर उससे ज्यादा यह हथियार बनना है कि ये भैंसे क्रूरता के लिए तो नहीं ले जाई जा रही हैं।
सो गौरक्षकों के पास अब बछड़ा, पाड़ा, भैंस रक्षा की जिम्मेवारी इस कानूनी अधिकार के साथ है कि पशु क्रूरता का ख्याल रखना राष्ट्रधर्म है।
अपन गाय के प्रति हिंदू की आस्था के ख्याल के पक्षधर हैं। इसलिए कि आस्था का मामला वह कोर है जो इहलोक में जीवन जीने की पद्धति बनाती है। यदि कोई नास्तिक भी है तो वह भी अपनी एक आस्था लिए हुए होता है। फिर हिंदू की आस्था पर इतिहास में दो ही प्रतीकों से वार होता रहा है। मंदिरों-शिवालयों के ध्वंस से या गौहत्या से। इसलिए यदि हिंदू बहुसंख्यक आज बावला है और वह यदि नरेंद्र मोदी –अमित शाह से अपने धर्म की रक्षा मान रहा है, धर्म राज प्रतिस्थापित होता देख रहा है तो गौहत्या के मामले में सरकार का भावनाओं का ध्यान रखना गलत नहीं है।
पर तब क्यों नहीं नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में विधेयक बना कर गौहत्या पर प्रतिबंध का अखिल भारतीय कानून बना लिया? इधर-उधर की बातों से विधर्मी कारोबारियों, मुसलमानों को निशाना बनाए रखने की क्या जरूरत है? कभी राज्यों से कानून बनवा कर हिंदुओं में अपना सियासी पुरषार्थ दिखाया जाता है तो कभी गौवंश संवर्द्धन की घोषणाओं से खुश किया जाता है और अब क्रूरता के नाम पर पर्यावरण मंत्रालय से यह अधिसूचना?
इस अधिसूचना से पशु बाजार या मेलों में तमाम नए तरह के पचड़े बनेंगे। कैसे पशुओं को ढोया जाए, मेला कहा लगे इन सब बातों की प्रशासनिक निगरानी हुआ करेगी। राज्य की सीमाओं के 25 किलोमीटर के दायरे में या बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमा के 50 किलोमीटर दायरे में मेलों पर प्रतिबंध कुल मिलाकर उस हकीकत को खत्म करना है जो भैंस, पाड़े के बीफ उत्पादन के कारोबार में मुस्लिम आबादी की रोजगार का, उसकी कमाई का जरिया है।
अब यदि ऐसा चाहते ही हैं तो सीधा यह कानून क्यों न बने की पूरे गौवंश की हत्या, उसके मांस पर आज से प्रतिबंध? सरकार अध्यादेश से कानून ला दे। उसे संसद में रखे और जिन पार्टियों को विरोध करना हो करती रहे। जब जीएसटी बिल पास कराया जा सकता है तो गौहत्या प्रतिबंध कानून पास कराने में सरकार को क्या मुश्किल है? कानून में साफ बता दिया जाए कि भैंस, पाड़ा, ऊंट के फलां-फलां जीव इसमें शामिल हैं। मगर ऐसा नहीं हो रहा है और उसकी जगह यह नौटंकी है कि जीव, पशु के प्रति क्रूरता से हमने यह रोक लगाई है। तब बेचारे दूसरे जीव, पशुओं याकि बकरे-बकरी, मुर्गे आदि को क्यों नहीं जीव माना जा रहा है? वह तो नरेंद्र मोदी, अमित शाह का इतिहास गौरव होगा यदि वे जीव हत्या पर भारत में पूरी पाबंदी लगवा दें। भारत को पूरी तरह शाकाहारी बना डालें!
मगर मकसद ले दे कर मुद्दे को, मसले को जिंदा रखना है। पर्यावरण मंत्रालय की घोषणा के बाद भी यह इंसानी लालच रहेगा कि कसाईखानों ने, मुसलमानों ने भैंसों के बीफ की पिंक क्रांति का जो अरबों रुपए के निर्यात का धंधा बनाया हुआ है उसमें वे परेशानियों के बावजूद लगे रहेंगे। नई व्यवस्था में इन्हें फार्म से जानवर मंगाने होंगे! पर गौवंश की आवाजाही पर तो हल्ला होगा। हल्ले और झगड़े को यह कहते हुए न्यायोचित ठहराया जा सकेगा कि क्रूरता शक था। गाय- भैंस के सींग पर रंग-रोगन किया हुआ था।
सो मामला यह है कि सरकार गौरक्षा को गौवंश रक्षा की और ले गई है और गौरक्षकों को पूरे देश में पशु क्रूरता रोकने का कवच मिल गया है। हम हिंदुओं ने भैंस और पाड़ों की नई टोपी पहन ली है। इससे तमाम तरह के विधर्मी कारोबारी शक के दायरे में आ गए हैं। गौरक्षकों की चेतना और उसकी सुरक्षा का बंदोबस्त कराते हुए मोदी सरकार ने तीसरी सालगिरह पर जो नई अधिसूचना जारी की है वह कई मायनों में सचमुच बहुत शातिर फैसला है।
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