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May 4, 2025
राजस्थान में विधायक रिश्वत लेते पकड़े गए: कब तक चलेगा यह नंगा नाच?
क्या है राजनीतिज्ञों के रातों-रात अरबपति बन जाने का ओपन सीक्रेट ?
वेद माथुर
हाल ही में राजस्थान में एक चौंकाने वाली घटना ने सुर्खियां बटोरीं, जब बागीदौरा से भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के विधायक जयकृष्ण पटेल को एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) ने 20 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया। बताया जा रहा है कि यह रिश्वत ढाई करोड़ रुपये की डील का हिस्सा थी, और विधायक के गनमैन ने रिश्वत की राशि लेकर फरार होने की कोशिश की। यह पहली बार है जब राजस्थान में कोई विधायक रिश्वत लेते हुए ट्रैप हुआ है। यह घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि आखिर कब तक हमारे नेता जनता का खून चूसकर अरबपति बनते रहेंगे?
जयकृष्ण पटेल उन गरीब आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनके हितों की रक्षा का वादा करके वे सत्ता में आए। लेकिन उनका यह आचरण दर्शाता है कि सत्ता की कुर्सी पर बैठते ही नेताओं की नीयत बदल जाती है। यह कोई नई बात नहीं है। राजस्थान में विधायकों की संपत्ति का आंकड़ा देखें, तो कई विधायक करोड़पति और कुछ तो अरबपति हैं। सवाल यह है कि बिना किसी बड़े बिजनेस के ये नेता इतनी दौलत कैसे कमा लेते हैं?
राजनीति करोड़पति बनने का शॉर्टकट बन गई है।
राजनीति में प्रवेश करने के बाद न केवल विधायक या मंत्री, बल्कि एक मामूली सरपंच भी रातोंरात करोड़पति बन जाता है। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मायावती, मुलायम सिंह यादव जैसे बड़े नेताओं की संपत्ति में अचानक हुई वृद्धि किसी से छिपी नहीं है। ये नेता कोई बड़ा बिजनेस नहीं करते, फिर भी चार्टर्ड प्लेन में घूमते हैं और आलीशान जिंदगी जीते हैं। आखिर यह पैसा कहां से आता है? क्या यह जनता की गाढ़ी कमाई का नतीजा नहीं, जो रिश्वत और भ्रष्टाचार के जरिए इनके पास पहुंचता है?
न्यायपालिका की नरमी: एक बड़ा सवाल :
जब एक पटवारी या दरोगा 5000 रुपये की रिश्वत लेते पकड़ा जाता है, तो उसे सजा मिलती है, लेकिन करोड़ों की रिश्वत लेने वाले नेता अक्सर बच निकलते हैं। मुलायम सिंह यादव और मायावती के आय से अधिक संपत्ति के मामले इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। दोनों के खिलाफ सीबीआई ने जांच शुरू की, लेकिन 2013 में मुलायम और अखिलेश के मामले में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी, और सुप्रीम कोर्ट ने भी आगे सुनवाई से इनकार कर दिया। मायावती के मामले में भी जांच ठंडे बस्ते में चली गई। आखिर क्यों न्यायपालिका इन बड़े नेताओं के खिलाफ नरम रवैया अपनाती है? क्या यह सिस्टम की मिलीभगत का नतीजा तो नहीं?
यह स्थिति केवल एक दल तक सीमित नहीं है। सभी राजनीतिक दलों के नेता कमोबेश एक ही राह पर चलते हैं। जनता की मेहनत की कमाई को लूटकर ये नेता अपनी तिजोरियां भरते हैं, और सिस्टम उनकी रक्षा करता है। हमें यह सोचने की जरूरत है कि आखिर कब तक हम ऐसे भ्रष्ट नेताओं को सत्ता सौंपते रहेंगे? क्या अब समय नहीं आ गया कि हम पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करें? जनता को जागरूक होकर ऐसे नेताओं को सबक सिखाना होगा, ताकि भ्रष्टाचार का यह सिलसिला थम सके।
वेद माथुर
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