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January 19, 2025
हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़(र•अ•) की साहिबज़ादी सैयदा बीबी हाफ़िज़ा जमाल(र•अ•) का उर्स परम्परानुसार हर्षोल्लास से मनाया गया।
असर की नमाज़ के बाद दरगाह के मुख्य द्वार निज़ाम गेट से चादर का जुलूस रवाना हुआ। जिसमें खुद्दाम हज़रात चादर अपने सर पर लेकर चले व ज़ायरीनो ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। जुलूस धूमधाम से गाजे बाजे एवं क़व्वाली के साथ बुलंद दरवाज़ा, सहनचिराग, औलिया मस्जिद, शरकी गेट होते हुए पाईंती दरवाज़े पर पहुँचा। वहाँ साहिबज़ादी साहेबा के मज़ार पर मखमली चादर एवं अकिदत के फूल पेश किए गए और देश व दुनिया में अमन व शांति के लिए दुआ की गई।
रात को आस्ताना शरीफ़ मामूल होने के बाद गद्दीनशीन सैयद फख़र काज़मी चिश्ती साहब की सदारत में महफ़िल-ए-समा हुई। दरगाह के क़व्वाल पहली चोकी और दूसरी चोकी व अन्यों ने फ़ारसी, उर्दू, एवं ब्रज भाषा में कलाम गाकर अपनी अपनी अकिदतों का इज़हार किया, अंत में फ़ातहा ख़्वानी पढ़कर नियाज़ हुई जिसके बाद निज़ाम गेट पर से मौरूसी अमले ने शादियाने बजाए।
आज(20 जनवरी 2025) सुबह 11 बजे महफ़िल ए समाँ का आग़ाज़ होगा, जिसमें फ़ारसी उर्दू ब्रज भाषा में कलाम गाकर, अंत में “आज रंग है री माँ बीबी हाफ़िज़ा जमाल(र अ) घर रंग है री” गाकर क़व्वाल अपनी अकिदत का इज़हार करेंगे। दोपहर 1 बजे कुल की रस्म होगी जिसमें दस्तरख़्वान पढ़ा जाएगा एवं फ़ातेहा ख़्वानी व नियाज़ होने के बाद बढ़े पीर की पहाढ़ से ग़दरशाह तोप चलाएँगे दरगाह के मौरूसी अमले शादियाने बजाएँगे इसी के साथ उर्स का समापन होगा।
सैयद राग़िब चिश्ती(अधिवक्ता) ने बताया कि बीबी हाफ़िज़ा(र अ), ख़्वाजा ग़रीब नवाज़(र अ) की चहिती बेटी थीं। वे जब पैदा हुईं तो ग़रीब नवाज़(र अ) ने अपना लु’आब(थूक) उन्हें चखा दिया इसलिए उनको क़ुरान हिफ़्ज़ हो गया और बचपन में ही क़ुरान पढ़ कर सुना दिया इसी वजह से आप को पैदाइशी हाफ़िज़ा-ए-क़ुरान कहा जाता है। उनका निकाह शेख़ रज़्ज़ी से हुआ। उनकी दुआओं से बे औलाद को औलाद मिलती है। उन्होंने तारागढ़ की तलहटी के नीचे जो झरना बहता है उसकी एक गुफा में चालीस दिन बैठकर चिल्ला किया था जिसे नूर चश्मा व हैपी वैली कहा जाता है। उन्होंने औरतों में दीन की बहुत ख़िदमत अंजाम दीं, वे घरों में जा कर औरतों को दिनी तालीम दिया करती थीं।
हुज़ूर ग़रीब नवाज़(र•अ•) अपने पीर-ओ-मुर्शीद के उर्स के बाद अपनी बेटी को उर्साने के रूप में तोहफ़े दिया करते थे उसी रिवायत को निभाते हुए तमाम खुद्दाम-ए-ख़्वाजा व चिश्तिया सिलसिले से जुढ़े तरीक़त वाले लोग भी अपनी अपनी बहन बेटियों का हिस्सा उर्साने के रूप में निकालते हैं। बीबी हाफ़िज़ा जमाल के नाम की नियाज़ विशेष हलवा एवं लुच्ची(विशेष प्रकार की पीले रंग की बढ़ी पूरीयाँ) पर होती है व कई लोग दूध एवं दलिया पर भी नियाज़ दिलवाते है।
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