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October 9, 2024
नई दिल्ली: श्री नगर किश्तवाड़ इलेक्शन रिजल्ट 2024. किश्तवाड़ से भाजपा की शगुन परिहार जीतीं, 521 वोटों से एनसी प्रत्याशी को हराया
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की एकमात्र महिला उम्मीदवार शगुन परिहार जीत गई हैं। मंगलवार को घोषित नतीजों के मुताबिक उन्होंने किश्तवाड़ सीट से जीत दर्ज की है। उन्होंने जीत के बाद क्षेत्र में सुरक्षा के लिए लड़ने का संकल्प जताया। शगुन के पिता और चाचा करीब 5 पहले एक आतंकवादी हमले में मारे गए थे। उन्होंने इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के अनुभवी नेता और पूर्व मंत्री सज्जाद अहमद किचलू को हराया है। शगुन उन 28 भाजपा उम्मीदवारों में से एक हैं जिन्होंने मंगलवार को चुनाव में जीत हासिल की। वह जम्मू-कश्मीर में चुनाव जीतने वाली तीन महिलाओं में भी शामिल हैं।
चुनाव में शगुन परिहार को 29,053 वोट मिले और उन्होंने किचलू को 521 वोटों के मामूली अंतर से हराया। पूरी मतगणना प्रक्रिया के दौरान उन्होंने बढ़त बनाए रखी। एनसी उम्मीदवार किचलू ने 2002 और 2008 में इस सीट से जीत दर्ज की थी। उनके पिता ने भी इस सीट का तीन बार प्रतिनिधित्व किया था। उन्हें कुल 28,532 मत मिले। पीडीपी के फिरदौस अहमद टाक को केवल 997 मतों से संतोष करना पड़ा और उनकी जमानत जब्त हो गई।
शगुन ने नतीजे घोषित होने के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘मैं किश्तवाड़ के लोगों को नमन करती हूं:
जिन्होंने मुझमें और मेरी पार्टी में विश्वास व्यक्त किया। उनके समर्थन की मैं तहे दिल से सराहना करती हूं। मैं उनके समर्थन से अभिभूत हूं।’ निर्वाचित भाजपा उम्मीदवार ने कहा कि उनकी जीत सिर्फ उनकी नहीं है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर के राष्ट्रवादी लोगों की भी जीत है। उन्होंने कहा कि यह उनका आशीर्वाद है। शगुन ने कहा कि किश्तवाड़ के सामने मौजूद ऐतिहासिक चुनौतियों को देखते हुए सुरक्षा सुनिश्चित करना उनकी शीर्ष प्राथमिकता होगी। उन्होंने कहा, ‘लोगों के लिए मेरा संदेश है कि वे क्षेत्र में शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए प्रयास करें। मैं क्षेत्र की सुरक्षा के लिए काम करूंगी।’ किश्तवाड़ में सैकड़ों भाजपा कार्यकर्ता एकत्रित हुए और उन्होंने पारंपरिक ढोल-नगाड़ों और पार्टी के झंडों के साथ शगुन की जीत का जश्न मनाया। उन्होंने पद्दार नागसेने निर्वाचन क्षेत्र में सुनील शर्मा की जीत का भी जश्न मनाया और भारत माता की जय के नारे लगाए। जपा ने 29 वर्षीय शगुन को आतंकवादी हमले में अपने पिता और चाचा को खोने के 5साल बाद मैदान में उतारा था। छात्र जीवन में जमीनी स्तर पर काम करने के बावजूद, वह पहले राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल नहीं थीं।
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