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April 27, 2021
आँखों के साहिल पर दर्द डुबोते हुए,
तुझमें रह कर उम्र कट गई रोते हुए।
तुझको भी अहसास कभी तो होगा ही,
कश्ती डूब गई थी तेरे होते हुए।
उँगली छूट गई मेले में कब जाने,
बदहवास थे इक दूजे को खोते हुए।
ख़्वाबों की उम्मीदें इतनी ज़ख़्मी थीं,
जगना ही महसूस हुआ था सोते हुए।
टूटी तस्बीहों के दाने चुनने थे,
साँसों के धागों में उन्हें पिरोते हुए।
कितनी दूर चले आए हम देखो तो,
ग़म की गठरी सर पे अपने ढोते हुए।
खाते रहे ठोकरें पल पल मौसम की,
बंजर हुए खेत मे ख़ुद को बोते हुए।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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