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April 26, 2021
मनमानी का ज़िक्र हुआ मैं रो बैठा,
सुल्तानी का ज़िक्र हुआ मैं रो बैठा।
जिसकी प्यास में हुईं नमाज़ें नेज़ों पर,
उस पानी का ज़िक्र हुआ मैं रो बैठा।
तारीख़ों के जब भी सूखे होंठों पर,
क़ुरबानी का ज़िक्र हुआ में रो बैठा।
अपनी माँ के जाने पर जब भी मेरी,
शैतानी का ज़िक्र हुआ मैं रो बैठा।
नए दौर में भूखे बच्चों के आगे,
गुड़धानी का ज़िक्र हुआ मैं रो बैठा।
तेज़ हवा के चलने पर कुछ दीयों की,
निगरानी का ज़िक्र हुआ मैं रो बैठा।
सूने घर की तन्हाई में यादों की,
मेहमानी का ज़िक्र हुआ मैं रो बैठा।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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