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क़लमकार: ज़िले में भाजपा की कटी हुई नाक की सर्ज़री कर रहे हैं गुलाब चंद कटारिया

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January 22, 2021

लखावत जी के आख़री चेले भूतड़ा का चुनाव प्रबंधन पार्टी की नज़र में अब दो कौड़ी का

ज़िले में भाजपा की कटी हुई नाक की सर्ज़री कर रहे हैं गुलाब चंद कटारिया




पलाड़ा ने भूतड़ा व अन्य दिग्गजों को जिस तरह धूल चटाई इस बार बिजयनगर और केकड़ी में इज़्ज़त बच जाए इसके लिए कटारिया कूदे चुनाव मैदान में




लखावत जी के आख़री चेले भूतड़ा का चुनाव प्रबंधन पार्टी की नज़र में अब दो कौड़ी का




सुरेन्द्र चतुर्वेदी




बिजयनगर और केकड़ी के निकाय चुनावों में भाजपा ने ज़िला देहात अध्यक्ष देवीशंकर भूतड़ा पर से अपना विश्वास खो दिया है। ज़िला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा ने जिस शानदार तरीके से पार्टी को धोबी पटक दांव चलाकर धूल चटाई, उसके बाद से पार्टी भूतड़ा पर बुरी तरह नाराज़ है। उसने पलाड़ा की जीत को भूतड़ा की अयोग्यता और कुप्रबंधन माना है। पार्टी का मानना है कि यदि भूतड़ा ने समय रहते सार्थक प्रयास किए होते तो भाजपा के हाथ में आया ज़िला प्रमुख का पद कांग्रेस को थाली में रख कर नहीं परोसा जाता।





भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व मंत्री गुलाबचंद कटारिया को पार्टी ने अब केकड़ी व बिजयनगर का चुनाव प्रबंधन सौंप दिया है। कटारिया आक्रामक और समझदार नेता माने जाते हैं और बिजयनगर व केकडी में दौरा कर पार्टी के नेताओं का विश्वास जीत रहे हैं।वे उन सब बातों का ऐतिहात बरत रहे हैं जो भूतड़ा ने नहीं रखे।





किशनगढ़ में पिछले दिनों पार्टी के एक आला नेता ने सांसद भागीरथ चौधरी व अन्य बड़े नेताओं के सामने देवीशंकर भूतड़ा को ज़िला प्रमुख चुनाव में लापरवाही बरतने पर बड़े ही स्पष्ट शब्दों में फटकार लगाई थी। भूतड़ा से पूछे गए सवालों पर उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा गया था कि जब उनको पता था कि भाजपा के मतदाता पलाड़ा के पाले में हैं और उनके बगावती तेवर पर वे काबू नहीं पा पा रहे। जब पलाडा की जीत की आशंका प्रबल हो उठी थी तो उन्होंने हाईकमान को भाजपा की टिकट अंत समय में भी पलाड़ा को देने की सिफारिश क्यों नहीं की थी। पार्टी अंत समय में भी टिकट पलाड़ा को देकर अपनी इज़्ज़त बचा सकती थी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सतीश पूनिया ने भी इस बात के लिए भूतड़ा और उनकी पूरी टीम को कुप्रबंधन और दूरदर्शिता को दोषी ठहराया था।





यहां आपको बता दूं कि भूतड़ा को शुरू से ही अंदाज़ा था कि पलाड़ा कोई बच्चे नहीं जिन्हें चुनाव से दूर रखा जा सके। सच बात तो यह थी कि भूतड़ा को अच्छी तरह पता था कि यदि पार्टी ने उनकी पत्नी को टिकट नहीं दिया तो वे किसी भी स्तर पर जाकर कोई भी चमत्कार कर देंगे।





भाजपा नेता ओंकार सिंह लखावत के राजनीतिक शागिर्द देवीशंकर भूतड़ा ने समय के सच को नहीं पहचाना ।उनके गुरु लखावत की चाल में वे आ गए ।उन्होंने श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा को किसी भी स्थिति में टिकट नहीं मिले, इसके लिए पार्टी की प्रतिष्ठा तक को दांव पर लगा दिया।




सांसद भागीरथ चौधरी जिसे पलाड़ा अपने बड़े भाई की तरह समझा करते थे, सम्मान देते थे जिन्हें लेकर हर बैठक में अपने से पहले माला पहनवाया करते थे ,उन्होंने भी अपना बड़प्पन खो दिया ।अजमेर के दोनों विधायक अनिता भदेल और वासुदेव देवनानी ने भी भूतड़ा का ही साथ दिया। टिकट काटने का मामला जब पार्टी के संगठन मंत्री चंद्रशेखर तक पहुंचा तो उन्होंने भी भूतड़ा टीम की गलती पर ही मोहर लगा दी।





बताया तो यहाँ तक जाता है कि पलाड़ा ने टिकट के लिए चंद्रशेखर से भी बात की थी मगर उनके रवैए को देखकर उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया था कि वे पार्टी के सच्चे सिपाही की तरह टिकट मांग रहे हैं, यदि पार्टी सोचती है कि उनकी टिकट काटकर कोई बड़ा तीर मार लेगी तो वह करके दिखा दे। पलाड़ा ने तभी ठान ली थी कि भूतड़ा के अध्यक्ष पद का भूत उतार कर ही दम लेंगे। उन्होंने ऐसा करके भी दिखा दिया। अध्यक्ष पद की गरिमा और भूतड़ा की साख मिट्टी में मिल गई।





ज़िला प्रमुख पद खोने के बाद जब भूतड़ा से आला नेताओं ने कहा कि जब उन्हें पता था कि उनके मतदाताओं को पलाडा अपने बाड़े में ले जा सकते हैं या ले जा रहे हैं तो उन्होंने समय रहते मतदाताओं को अपने नियंत्रण में क्यों नहीं लिया  इस पर उन्होंने बड़ा ही बचकाना जवाब दिया और कहा कि बाड़े बंदी पर बहुत पैसा खर्च हो जाता ।




हाथों-हाथ आपको बता दूं कि अजमेर मूल के दिग्गज भाजपा नेता ओंकार सिंह लखावत एक समय पर अजमेर के बेताज़ बादशाह हुआ करते थे ।पार्टी की सियासत उनसे शुरू होकर उन पर ही खत्म होती थी। उनकी सियासत को ठिकाने लगाया बेहद चतुर नेता वासुदेव देवनानी ने। एक-एक करके उन्होंने उनके सारे चेले ठिकाने लगा दिए। अनिता भदेल भी कभी लखावत जी की कृपा पात्र मानी जाती थीं, बल्कि यूँ कहिए कि वे ही उनके राजनीतिक जनक थे । बाद में वे भी सोच समझ कर उनसे छिटक गईं।





उनका दूसरा चेला सम्पत साँखला है जो पिछले दिनों अपने ही कर्मों से अपना वजूद खो बैठा।





अब लखवात जी का एक और शागिर्द जिले में उनकी राजनीतिक विरासत चला रहा है।बिजयनगर और केकड़ी के चुनाव प्रबंधन में भी पार्टी को शक है कि कहीं वे जीती हुई बाज़ी हार न जाएँ।कहीं फिर कोई भाजपा नेता पलाड़ा की तरह निर्दलीय होकर तख्ता पलट ना कर दे । भूतड़ा के प्रबंधन से पार्टी का भरोसा उठ चुका है ।





अब कटारिया बिजयनगर और केकड़ी का और अरुण चतुर्वेदी अजमेर का चुनाव प्रबंधन संभाल रहे हैं।





उम्मीद की जा रही है कि अजमेर केकड़ी और बिजयनगर में भाजपा का ही बोर्ड बनेगा। रही बात किशनगढ़ की तो वहां माना जा रहा है कि वहाँ ना कांग्रेस ना भाजपा दोनों ही अपने बलबूते पर बोर्ड नहीं बना पाएंगे। अगर बोर्ड बना तो विधायक सुरेश टांक के समर्थन में लड़ रहे किशनगढ़ प्रगति मंच के जीते हुए निर्दलीय लोगों से ही बनेगा।वे ही बोर्ड के भाग्य विधाता होंगे।अब यह भविष्य पर निर्भर करता है कि वे भाजपा के साथ जाते हैं या कांग्रेस के!! मुझे लगता है कि ऐसा अगर हुआ तो सभापति सुरेश टांक की सहमति से ही तय होगा।


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