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January 18, 2021
अजमेर काँग्रेस की क़ब्र खोद रहे हैं स्वार्थी नेता!! सही कहा प्रताप यादव तुमने
ललित भाटी और जयपाल जैसे नेताओं के सिमटने से शुरू हुआ काँग्रेस की बर्बादी का दौर
ललित भाटी के बाद यदि जयपाल अजमेर क्लब से बाहर आ जाएं तो शुरू हो सकता है नया अध्याय
राजेश टण्डन जैसे निष्ठावान काँग्रेसी कुंठित नहीं संगठित हो जाएँ तो बदल सकता है चेहरा
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
अजमेर शहर में कांग्रेस डायलिसिस पर है। कुप्रबंधन और जिद्दी नेतृत्व के वायरस से पूरी कांग्रेस का रक्त संक्रमित हो चुका है ।आंतरिक कलह ने अराजकता की शक्ल इख्तियार कर ली है।
प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा और गहलोत ऊंची हवा में पतंग उड़ा रहे हैं जबकि अजमेर में पतंग लूटने में लगे नेताओं ने पतंगे ही फाड़नी शुरू कर दी हैं।
निकाय चुनाव के दौरान जो कुछ घटा और घट रहा है वह बेशर्मी ही कहा जाएगा।
बहुत पीछे न भी जाएँ तो डॉक्टर राजकुमार जयपाल और ललित भाटी जब विधायक थे तब अजमेर में सिर्फ़ दो ही नेतृत्व हुआ करते थे। पूरी अजमेर कांग्रेस ललित भाटी और राजकुमार जयपाल के नेतृत्व में दो गुटों में विभाजित थी और कार्यकर्ता अपने अपने नेताओं के साथ पूरी निष्ठा से जुड़े हुए थे। दूर से ही देखकर लोग बता देते थे कि यह किस गुट के कार्यकर्ता हैं।
डॉक्टर राजकुमार जयपाल के साथ उत्साही युवा कार्यकर्ताओं की लंबी फौज़ थी। उन को लेकर कहा जाता था कि डॉक्टर राजकुमार जयपाल अपने कार्यकर्ताओं के लिए रात के 12 बजे भी उठ कर चल देते हैं। कई बार ऐसे भी मौके आते थे जब पुलिस थानों में उनका कोई कार्यकर्ता किसी केस में फंस जाता था और जयपाल तुरंत थाने पहुंच जाते थे।
उसी समय ललित भाटी भी निष्ठावान कांग्रेसियों की पहली पसंद हुआ करते थे। अपने जागरूक पिता की तरह वे भी अपने इलाके में जानदार असर रखते थे। कई बार दोनों नेताओं के बीच सिर फुटव्वल की नौबत भी आई मगर ऐसा कभी नहीं हुआ जब जयपाल और भाटी के बीच सीधा टकराव हुआ हो।
बीच में एक बार तो ऐसा भी समय आया जब दोनों नेता सुनियोजित समझौते के साथ एक मंच पर खड़े नज़र आए। यह बात अलग है कि यह समझौता दोनों ही नेताओं के आस- पास वाले सलाहकारों ने क़ामयाब नहीं होने दिया ।
सच कहूं तो कांग्रेस की लोकप्रियता के शहर में वे आख़री दिन थे। दोनों ही शानदार नेताओं के नेतृत्व में यदि कांग्रेस रहती तो मेरा दावा है कि यह हालत नहीं होती जो आज हो गई है ।
ललित भाटी और जयपाल अपने-अपने कारणों से अपने अपने दायरों में क़ैद हो गए ।कार्यकर्ताओं ने दोनों ही नेताओं का लंबे समय तक तो इंतज़ार किया मगर फिर फिर धीरे-धीरे सब बिखरते चले गए ।ललित भाटी श्रीनगर रोड की दुकान तक सिमट कर रह गए और राजकुमार जयपाल अजमेर क्लब तक।
कोरोना काल में ललित भाटी तन्हाई का दर्द भोगते हुए इस लोक से चले गए ।उनके जाने पर कांग्रेस ने घड़ियाली आंसू भी बहाए ।उन्हें जानदार नेता सिद्ध करने की कोशिश भी की गई मगर सच यही है कि एक योग्य कांग्रेसी नेता की जीते जी किसी ने सुनी होती तो कांग्रेस को इतने बुरे दिन देखने को नहीं मिलते।
यहां मैं बेबाक़ होकर कहना चाहूंगा कि यदि जयपाल के सर पर हत्याकांड बेताल नहीं बनता तो अजमेर कांग्रेस की आज ये हालत न होती। जयपाल और भाटी के अपने-अपने दायरे में सिमट जाने के बाद से शहर में इतने नेता इतने गुटबाज़ पैदा हो गए कि पूछो मत! हाल ही के सालों में कांग्रेस में रलावता गुट, हेमंत भाटी गुट, श्रीगोपाल बाहेती गुट, विजय जैन गुट के अलावा भी कई गुट विकसित हो गए । शीर्ष नेताओं के कारण इस गुटबाज़ी में सचिन पायलट और गहलोत की लड़ाई का वायरस भी अजमेर तक पहुंच गया ।रलावता,हेमंत भाटी, विजय जैन तो सचिन गुट में शामिल हो गए ।इधर रघु शर्मा के समर्थक भी मैदान में एक तरह से अलग मानसिकता के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए ।इस तरह कांग्रेस के अंदर गुटबाज़ों की फ़ौज इकठ्ठी हो गयी। हालात और परिणाम सबके सामने हैं।
निष्ठावान कांग्रेसियों की शहर में कढ़ी ख़राब हो चुकी है । पुराने निष्ठावान राजेश टंडन , महेश ओझा, प्रताप यादव ,सुरेश गर्ग ,सत्यनारायण पट्टी वाला, कुलदीप कपूर,रमेश सेनानी, ललित भटनागर,ललित जड़वाल, कैलाश झालीवाल,शैलेन्द्र अग्रवाल सहित सैकड़ों समर्पित कांग्रेसी नेता निष्ठाओं की तगारियाँ सर पर लेकर भटक रहे हैं ।अजमेर शहर की जड़ों को खून से सींचने वाले नेता कुंठित होकर साइड लाइन हो रहे हैं ।सत्ता के भूखे लोग ही कांग्रेस की डुगडुगी बज़ा रहे हैं ।
निकाय चुनाव में टिकट के बंटवारे में जो कुप्रबंधन हुआ वह कांग्रेस की बर्बादी का अंतिम दृश्य है।
निष्ठावान नेता प्रताप यादव ने जो ताज़ा बयान दिया है मैं उसे उनका ही नहीं पूरी कांग्रेस का दर्द मानता हूँ। कांग्रेस की कब्र खोदी जा रही है। स्वार्थी नेता इसके जिम्मेदार हैं ।प्रताप यादव की यह बात आज शहर का हर कांग्रेसी कार्यकर्ता महसूस कर रहा है।
निष्ठावान राजेश टंडन कह रहे हैँ कि निष्ठावान कांग्रेसियों को चाहिए कि वे अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए कुंठित ना हो बल्कि संगठित हों।चुनाव के परिणामों से वे बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं मगर वे चाहते हैं कि पुराने नेताओं को एक साथ आकर इन स्वार्थी नेताओं के मुखोटे उतार फेंकने चाहिए।
यहां मैं डॉक्टर राजकुमार जयपाल से भी कहना चाहूंगा कि ललित भाटी के बाद अब उनके सामने पूरा शहर है। वे अजमेर क्लब से बाहर आकर चाहें तो काँग्रेस को फिर से नई ऊर्जा दे सकते हैं। फिर शहर के बिखरते हुए निष्ठावानों को एकजुट कर सकते हैं।आज भी कार्यकर्ताओं में उनके प्रति लगाव है। वे चाहे तो शहर की राजनीति को नया रूप दे सकते हैं। नई ताकत दे सकते हैं। मुझे यकीन है कि यदि वे आगे आए तो ये चार-पांच गुटबाज़ नेता उनके आगे टिक नहीं पाएंगे ।बाकी तो कांग्रेस बर्बाद होनी ही है।
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