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January 17, 2021
कोरोना के विरुद्ध मेरे युद्ध को समर्पित मेरा आज का ब्लॉग
ज़िला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित को बधाई, ज़िले के चिकित्सा प्रबंधन को बधाई,ज़िला वासियों को बधाई
फटे हाल चौराहे पर खड़ी भाजपा के भाग्य का छींका टूटा: कांग्रेस का मुर्दा नेतृत्व और मूर्ख स्थानीय नेताओं की वज़ह से भाजपा को मिला वाक ओवर
लिफ़ाफ़ों में बंटती रही सियासत, शेर और बकरी मिल कर करते रहे शिकार,पीते रहे एक घाट पर पानी: अब याद आएगी नानी, जीतेंगे भदेल और देवनानी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ अजमेर जिले को जागरूक करने के लिए मैंने जितने भी ब्लॉग्स लिखें उन्हें मैं आज के अपने ब्लॉग को श्रद्धा पूर्वक समर्पित करता हूँ।
जिन लोगों को हमने कोरोना काल में खो दिया , उन्हें भुलाया नहीं जा सकता! ईश्वर उन्हें अपनी शरण में ले कर शांति प्रदान करे!
कोरोना के बुरे समय में आप सभी ने अपने आप को संभाल कर रखा इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं! कोरोना के विरुद्ध लड़ा हुआ युद्ध अब वैक्सीन तक पहुंच गया है। प्रदेश के 11 जिलों में शनिवार को कोरोना का एक भी मरीज़ नहीं मिला ।अजमेर में मात्र 13 मरीज़ सामने आए।
जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित के कुशल प्रबंधन और जान जोख़िम में डालकर संवेदना पूर्ण ज़िम्मेदारी निभाने के लिए मैं जिले वासियों की तरफ से उनका आभार व्यक्त करता हूँ। उनकी जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक निभाने की वजह से ही प्रदेश में पहला टीका अजमेर में लगाया गया ।कल ठीक 11:08 पर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ बी बी सिंह को राज्य का पहला टीका लगवाने का सर्फ हासिल हुआ। रिकॉर्ड यह बना कि लक्ष्य के मुकाबले 100% टीकाकरण अजमेर जिले में हुआ।
इसके लिए मैं ज़िला प्रशासन और चिकित्सा प्रबंधन के साथ-साथ जिले वासियों को भी बधाई देता हूँ।
जागरूकता की जिस लड़ाई को मैं पूरे साल लड़ता रहा उसे मुकाम तक पहुंचता देखते हुए मुझे भी सुखद अनुभव हो रहा है।
वैक्सीन तैयार करने में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने जो तत्परता ,कुशाग्रता दिखाई उसके लिए सभी को बधाई ! सभी का आभार !
मेरी अजमेर ज़िला वासियों से प्रार्थना है कि वे वैक्सीन पर शक़ ना करें ! याद रखें कि वैक्सीन को किसी राजनीतिक दल ने नहीं, वैज्ञानिकों ने बनाया है ! उनकी तपस्या पर राजनीति न की जाए ! जब जिसका नंबर आए , अवसर का पूरा लाभ उठाएं।
अब आइए ब्लॉग का विषय ज़रा बदल दें ।निकाय चुनाव के इतिहास में अजमेर के लिए कल का दिन दुखद और ऐतिहासिक रहा। कांग्रेस ने फटे जूते में खीर बांटी। सांप की भाँभी में हाथ दिया ।मधुमक्खी के छत्ते में ज़िला कांग्रेस पहले से ही हाथ देकर जहरीले असर में थी।
कांग्रेस का इतना गलीच प्रबंधन और दिशाहीन नेतृत्व पहले कभी नहीं देखा गया ! उच्च स्तर के नेताओं की शर्मनाक स्थिति और स्थानीय नेताओं की लज्जा जनक मानसिकता के चलते यह तय हो गया है कि चुनाव अब सिर्फ़ औपचारिक ही होंगे ! भाजपा का बोर्ड बनना तय है !
मैंने कल भी अपने ब्लॉग में भाजपा शहर अध्यक्ष डॉक्टर प्रियशील हाड़ा की पत्नी को आगामी मेयर के पद पर आसीन होने की भविष्यवाणी करते हुए बधाई दी थी, आज फिर से दे रहा हूँ। जबकि अंदरखाने दोनो भाई बहन क्या करने वाले हैं ये वे ही जानते हैं।
यहां आपको बता दूं कि अजमेर की भाजपा इससे पहले इतनी कमज़ोर कभी नहीं रही थी। ज़िले में भाजपा की फजीहत जितनी इस बार हुई , पहले कभी नहीं हुई थी।
भाजपा के निर्बल और निरीह होने का अध्याय तब ही शुरू हो गया था जब ज़िला प्रमुख पद के लिए भाजपा के मूर्ख प्रबंधन ने शक्ति पुंज भंवर सिंह पलाड़ा की पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा को टिकट देने से इनकार कर दिया था । पद के मद में डूबे देहात अध्यक्ष देवीशंकर भूतड़ा के सिर पर चढ़ा भूत , श्रीमती पलाड़ा ने एक ही झटके में बिना मंत्र के उतार दिया था। प्रदेश अध्यक्ष पूनिया, अपने आपको सम्राट समझने वाले चंद्रशेखर , हेड मास्टर ओंकार सिंह लखावत , सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक अनिता भदेल और भाहुबली देवनानी सबकी फीत ज़मीन से जुड़े पलाड़ा ने एक ही मिनट में उतार दी थी। भाजपा को धूल चटाते हुए उन्होंने जिला प्रमुख पद पर अपनी पत्नी को आसीन करवा दिया। चीन की दीवार समझी जाने वाली भाजपा की दीवार मिट्टी की साबित हुई ।
निकाय चुनावों में भी अजमेर में जिस तरह की सियासत की गई और पार्टी से ज्यादा अपने भविष्य को सर्वोपरि समझा गया। जिस तरह दागी और बागियों को टिकट दी गईं ,उससे भाजपा को हराना बहुत ही आसान नहीं, बच्चों का खेल था मगर कांग्रेस का घटिया नेतृत्व इतना आसान काम भी नहीं कर पाया ।
रलावता, भाटी , जयपाल , बाहेती और विजय जैन के बीच खिलौना बनी कांग्रेस अब उस मोड़ पर आ खड़ी हुई है कि यदि 80 में से 20 -25 वार्ड भी उसके पास आ जाएं तो महान काम होगा। भाजपा के कमजोर से कमजोर नेता भी जीतने की स्थिति में आ गए हैं।
कांग्रेस का पप्पू प्रबंधन यदि सिर्फ़ भाजपा के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ही मैदान में उतर जाता तो इस बार उसका बोर्ड बनना तय ही था, मगर आत्मसमर्पण की राजनीति ने कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा। वे हलवा बांटते रहें ये जूतों में परोसे हलवे को चाटते रहे। शहर का विकास मासिक लिफ़ाफ़ों में हर माह बंटता रहा । भाजपा और कांग्रेसी एक घाट पर पानी पीते रहे ।शिकार भी मिलकर करते रहे।
हालात आज ये हैं कि कांग्रेस पूरे 80 वार्डों में चुनाव तक लड़ने के काबिल नहीं रही ।परंपरागत मुस्लिम वोटों के साथ जो सलूक कांग्रेस के नेताओं ने इस बार किया, उसका खामियाज़ा गहलोत व डोटासरा को आने वाले कई सालों तक भुगतना पड़ेगा ।
अजमेर में मुस्लिम इलाकों के साथ जो हुआ उसका असर किशनगढ़ , केकड़ी और बिजयनगर सभी चुनावों में देखा जाएगा ।
स्थान अभाव के कारण आज इतना ही ।कल फिर आऊंगा नये सवालों के साथ। नए जवाबों के साथ।
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