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January 15, 2021
ज़िले के निकाय चुनावों में निर्दलीय बिगाड़ेंगे काँग्रेस और भाजपा का खेल
किशनगढ़ में विधायक सुरेश टांक के अश्वमेघ यज्ञ में उतरे 45 ईमानदार प्रजाति के स्वेत अश्व
केकडी और बिजयनगर में भी विद्रोह का दहक रहा है लावा
अजमेर में भाजपा संगठन के पदाधिकारी या उनके परिवार वाले लड़ रहे हैं चुनाव: विद्रोही बग़ावत के मूड में
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
जिले के निकाय चुनावों में इस बार निर्दलीय लोगों की बड़ी जमात , पार्टी के अधिकृत दुकानदारों की दुकानें मंगल करने के मूड में हैं। पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी होने की उम्मीद में बैठे प्रत्याशी समझ नहीं पा रहे कि उनकी किस मोड़ पर फ़ज़ीती होगी
किशनगढ़ में जहां निर्दलीय विधायक सुरेश टांक ने अपने ईमानदार छवि वाले 45 पहलवान मैदान में उतार दिए हैं, वहीं बिजयनगर में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों में टिकट वितरण को लेकर भारी असंतोष व्याप्त है।
केकड़ी में भी भूचाल आया हुआ है ।यहां भाजपा और काँग्रेस के सामने उतरे लोग आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं।
अजमेर की युद्ध स्थली का संजय बन कर जिक्र करूं इससे पहले हे ध्रतराष्ट्र ! आपको औद्योगिक नगरी किशनगढ़ लिए चलता हूँ जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के पलीता लगाकर विधायक सुरेश टांक ने युद्ध की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी है। वे पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों के पलीता लगाने का बेहतरीन अनुभव प्राप्त कर चुके हैं ।भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया और कांग्रेस के प्रति वे अपने समर्पण को यकीन में तब्दील नहीं करा पाए। कांग्रेस के कुछ स्वार्थी और भ्रष्ट नेताओं ने उनकी विश्वसनीयता पर इतने सवाल उठाए कि उन्हें निकाय चुनाव में फिर एक बार अपनी चाल ढाल और चरित्र को दांव पर लगाना पड़ रहा है।
सांसद भागीरथ चौधरी और बी पी सारस्वत के साथ-साथ विकास चौधरी ने जहां भाजपा की रणनीति को अपने अपने हिसाब से तय किया है वहीं कांग्रेस के पके हुए चावल अपने-अपने हिसाब से टांक से दूरियां बनाकर चल रहे हैं। ऐसे में उन्होंने अपने बेदाग अश्वों को अश्वमेध यज्ञ में उतार दिया है। परिवारवाद, वंशवाद की राजनीति से दूर उन्होंने जो खेल खेला है वह भले ही अपना बोर्ड बनाने तक न पहुंच पाए (वैसे पहुंच भी सकता है) मगर भाजपा के मांजने उतारने और कांग्रेस की गलतफहमियां दूर करने के लिए काफ़ी होगा।
सुरेश टांक किशनगढ़ की राजनीति के ऐसे चमत्कारी नेता हैं जो कई बार, कई मोर्चों पर अपना लोहा मनवा चुके हैं
इधर केकड़ी में भाजपा नगरपालिका के पूर्व सभापति अनिल मित्तल और दिग्गज नेता राजेंद्र विनायका के बीच चल रही खींचतान आखिरकार भाजपा को चौराहे पर ला चुकी है ।टिकट के बंटवारे को लेकर कार्यकर्ताओं में भयंकर असंतोष है। निष्ठावान भाजपाइयों की अनदेखी का आलम यह है कि लगभग सभी वार्डों में बागी कार्यकर्ता निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं।यहाँ कांग्रेसियों में भी कुछ इसी तरह का लावा फूट रहा है।दिग्गज नेताओं का हस्तक्षेप इतना अधिक है कि इस बार लोग बगावत की मुद्रा में खड़े हुए हैं।
बिजयनगर और केकड़ी के हालात एक जैसे हैं। यहां भी दोनों ही पार्टियों के विरुद्ध निर्दलीय नेता ताल ठोक कर मैदान में आ रहे हैं।ये तो अच्छा है कि बाहुबली नेता और ज़िले भर में अपनी ताक़त का प्रदर्शन कर चुके भंवर सिंह पलाड़ा ने निकाय चुनावों से दूरी बना ली है वरना सभी जगह के निकाय चुनाव पार्टियों को भारी पड़ जाते। फिर भी बिजयनगर में भंवर सिंह पलाड़ा के कुछ समर्थक अपने वर्चस्व को सिद्ध करने के लिए तड़प रहे हैं। इनका खेल यदि चल गया तो भाजपा के लिए चुनाव परिणाम घातक होंगे ।
अजमेर नगर निगम के चुनाव में इस बार भाजपा ने अपने अनुशासन के सभी लिबास उतार दिए हैं। जिन चेहरों के टिकट फाइनल हुए हैं उन्हें देखकर लग रहा है कि भाजपा का संगठन ही चुनाव लड़ रहा है।
विधायक भाई बहनों ने जैसे सोच लिया है कि इस बार चुनाव उनके गुर्गे, संगठन के पदाधिकारी, धनाढ्य वर्ग के सिफारिशी या पदाधिकारियों के चाहने वाले या उनके परिवार वाले ही लड़ेंगे। आम कार्यकर्ता तो बिल्कुल नही।
जैसा कि मैंने कल के ब्लॉग में लिखा था वह सच साबित हो गया। पूर्व जिला प्रमुख वंदना नोगिया जो मेयर बनने का सपना देख रही थीं राजनीतिक रूप से भ्रूण हत्या का शिकार हो गईं। (वैसे वो अंत समय तक हार मानने वाली लग नही रही हैं अभी भी प्रयासरत हैं)। पर अभी तक तो पार्षद तक की टिकट पाने में कामयाब नहीं हो सकीं, या कहिए उन्हें टिकट पाने में कामयाब नहीं होने दिया गया है। ना होने दिया जाएगा। सम्पत साँखला को भी पार्टी ने प्रथम दृष्टया दोषी मान ही लिया वरना उन्हें तो कम से कम टिकट मिल ही सकती थी। वंदना और सम्पत को उनके आका लखावत जी लाख चाहकर भी इस बार मैदान में सुरक्षित नहीं रख पाए।
भाजपा के जो लोग मैदान में उतर रहे हैं वे या तो संगठन के किसी ना किसी पद पर काबिज हैं या उनके परिवार के सदस्यों को टिकट दिया गया है।
शहर भाजपा अध्यक्ष डॉ प्रिय सिंह हाडा की पत्नी को मैदान में उतारा जा रहा है। महामंत्री रमेश सोनी को टिकट दे दिया गया है। महामंत्री राधेश्याम दाधीच को भी टिकट देकर किशनगढ़ से चुनाव मैदान में उतारा गया हैं । एकमात्र अन्य महामंत्री संपत सांखला को विवादों में घिरे होने के कारण पार्टी ने स्वयं चुनाव से दूर कर दिया है। मंडल अध्यक्ष दीपेद्र लालवानी, मंडल अध्यक्ष महेंद्र जादम, मंडल अध्यक्ष मोहन लालवानी की पत्नी, मंडल अध्यक्ष अरुण शर्मा, जिला मंत्री राजेश शर्मा की पत्नी, जिला मंत्री भारतीय श्रीवास्तव सहित कई संगठन के पदाधिकारी चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना वाजिब है कि चुनाव लड़वायेगा कौन क्योंकि चुनाव लड़वाने का दायित्व तो संगठन का ही होता है।
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार माली समाज के घीसू गढ़वाल का पत्ता साफ कर दिया है यह आत्मघाती हो सकता है। बीना टांक का टिकट काटना भी माली समाज को रास नही आ रहा है।
कांग्रेस में यधपि इस बार इतनी जागृति नहीं फिर भी टिकटों के लिए मारामारी बराबर की है। दागी और बाग़ी इस पार्टी में भी टिकट हथियाने में कामयाब हो गए हैं ।इनमें एक तो बैंक लूटने के मामले में आरोपी रहे व्यक्ति की पत्नी तक को टिकट दे दिया गया है। जीतने वाले चेहरों को टिकट नहीं मिल सके हैं और चुनाव लड़ने का कीड़ा उनमें भयंकर कुल बुला रहा है। ज़ाहिर है कि कांग्रेस में भी विद्रोही नेता निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस में निष्ठावान कांग्रेसियों की लंबी फेहरिस्त है जो अपना लहू पार्टी के लिए वक्त ज़रूरत पड़ने पर बहाते रहे मगर उन्हें इस बार टिकट देते समय चुनाव मैदान से दूर कर दिया गया ।अब ये अपनी ताक़त तो दिखाएंगे ही।
दोनों ही पार्टियों में घमासान मचा हुआ है। निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों का भविष्य मुझे तो ज्यादा प्रकाश वान लग रहा है ।आज तय हो जाएगा कि कौन-कौन तलवारे घुमाने के लिए मैदान में टिक पाएंगे।
फिलहाल रोज़ की तरह मेरी एक बार फिर आपसे करबद्ध प्रार्थना कि इस बार वोट किसी भी पार्टी को दें मगर ईमानदार और बेदाग व्यक्ति को ही दें ।सोच समझ कर दें ।पार्टी पसंद की हो तो ठीक ना पसंद की हो तो भी ठीक ।व्यक्ति पसंद का होना चाहिए। ईमानदार होना चाहिए जो अगले 5 साल तक आप पर हुकुमत करने का हक़ हासिल कर सके।
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