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January 10, 2021
वक़्त को फिर से जान रहा हूँ,
फिर से मुठ्ठी तान रहा हूँ।
चारों जानिब शोर है फिर भी,
आवाज़ें पहचान रहा हूँ।
यादों के इस शीश महल में,
बरसों तक दरबान रहा हूँ।
मुझसे होकर गुज़र गए तुम,
सदियों से सुनसान रहा हूँ।
सिर्फ़ रहे हो तुम तो वीरां,
मैं तो क़ब्रिस्तान रहा हूँ।
तुमको अपना समझा मैंने,
अपनी ग़लती मान रहा हूँ।
क़र्ज़दार जो कहते मुझको,
उन पर भी अहसान रहा हूँ।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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