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December 24, 2020
कुछ कमीशन खोर डॉक्टर्स राज्य में चला रहे हैं आत्मा को बेच कर चाँदी काटने का कारोबार
एक ईमानदार अधिकारी ने टोका और झकज़ोरा तो लग गई आत्म सम्मान को ठेस....!!
कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी ज़ारी रखो अपना अभियान, करते रहो आम जनता का कल्याण
भ्रष्टाचारी डॉक्टर्स के विरुध्द अभियान में पूरा राजस्थान और ईमानदार डॉक्टर्स भी साथ हैं।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सूली पर भी चढ़कर यारों सच्ची बात कहेंगे हम
झूठ बोलकर जान बचाना अपने वश की बात नहीं।
यह शेर यूं तो मैंने अपने लिए ही लिखा था मगर ये उन सब लोगों पर भी लागू होता है जो अपनी नेक नीयत और सच्चाई पसंद तबीयत के लिए सच बोलते हैं। खतरे मोल लेते हैं। अब वे राजनेता हों, समाज सेवी हों, पत्रकार हों या किसी भी क्षेत्र में कार्यरत अधिकारी ..!!
अब आप जयपुर के संभागीय आयुक्त डॉ समीत शर्मा को ही लें! सच बोलने के जज्बे , व्यवस्थाओं में सुधार लाने और जनता को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ पहुंचाने के लिए वे प्रशासनिक सेवाओं में आए और इसके लिए निरंतर प्रयासरत हैं। वे चाहते तो चिकित्सक होने की भूमिका भी निभा सकते थे मगर उन्हें लगा कि देश प्रेम की भावना एवं मानवीय संवेदनाओँ का उपयोग हमारे आसपास की बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने में हो इसलिए संभवतः वे भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में आए ।
आप भी कहेंगे कि चतुर्वेदी जी! आज यह क्या व्यक्ति पूजा वाले ब्लॉग लिखने पर आ गए हो ! दोस्तों!! यह व्यक्ति पूजा का मुद्दा नहीं!! प्रत्येक उस कर्मठ अधिकारी या कर्मचारी की अस्मिता का मुद्दा है जो ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहा है। राजकीय कार्य को मेहनत और लगन से कराने वाले अधिकारियों को जब अपने सच की खातिर , सच के दुश्मनों द्वारा घेरा जा रहा हो तो सच्चे लोगों द्वारा उनका साथ देना नैतिक दायित्व हो जाता है। गौंडावन पक्षी की तरह दुर्लभ इन सच्चे अधिकारियों के पक्ष में यदि समाज खड़ा नहीं होगा तो कौन होगा
भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध हम सब मिलकर आवाज़ उठाएं यह बहुत जरूरी है, क्योंकि कुछ संगठित लोग बदमाश और भ्रष्ट अधिकारियों के पक्ष में खड़े नज़र आ रहे हैं।
मरीजों के शोषण की वर्षो पुरानी परिपाटी को समाप्त करने हेतु जेनेरिक दवाओं की व्यवस्था को लागू कराने के लिए भारत के प्रधानमंत्री से सम्मानित डॉ शर्मा ईमानदार और कर्त्तव्य परायण अधिकारी हैं, इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं इस बारे में भरी विधानसभा में वक्तव्य दे चुके हैं।
उनके जैसे अधिकारियों का संभवत प्रयास यह है कि सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार की दीमक पर कीटनाशक डाल कर उसे समाप्त किया जाए और सरकारी सुविधाओं का लाभ आम जनता तक पहुंचे । जोधपुर में बतौर संभागीय आयुक्त उन्होंने एक स्कूल का निरीक्षण किया, जिसमें 16 में से 11 अध्यापक अनुपस्थित मिले और जो थे वे भी गप्प मार रहे थे । तो उन्होंने ऐसे अध्यापकों पर सवाल उठाए। उनकी कार्यप्रणाली को कर्तव्य निष्ठा का पाठ पढ़ाया तो कुछ शिक्षक संघ उनसे नाराज़ हो गए। ग़लत लोगों के साथ पता नहीं कैसे अच्छे लोग मैनेज्ड हो जाते हैं
अभी हाल में ही दौसा के एक सरकारी अस्पताल में भी ऐसा ही हुआ। शिकायतें प्राप्त होने पर वे वहाँ जब निरीक्षण करने गए तो उन्होंने पाया कि कुछ लालची चिकित्सक कमीशन खोरी के चक्कर में गरीब लोगों के सरकारी हितों को चांदी काटने की बदनीयती में लगा रहे हैं तो उन्होंने खुलेआम इस कुकृत्य का विरोध किया। राजकीय अस्पताल में ओपीडी में मरीजों को देखने के बजाय और वहां पर सर्जरी करने की बजाय, सरकार से डेढ़ से दो लाख की मोटी तनख्वाह हर माह लेने के बावजूद पैसे की अमिट भूख के चलते अनेक डॉक्टरो ने अपने निजी अस्पताल खोल लिए हैं और घर पर ही भर्ती सुविधा हेतु बेड लगा लिए हैं।
अस्पताल में रोगियों द्वारा शिकायत करने पर उन्होंने जिला कलेक्टर को जांच के निर्देश दिए और एसडीएम एवम CMHO दौसा की जांच में यह बात सामने भी आ गई। जिस डॉक्टर को फटकार पड़ी उसके निजी अस्पताल में उपचार से एक अभागी प्रसूता की तो मृत्यु भी हो गई।
कुछ सरकारी डॉक्टर ने तो अपने घर के अंदर ही अपनी पत्नी, बेटी, भाई, मामी, मां आदि के नाम से दवा की दुकानें खोल रखी है, जिन पर बाजार से ₹10 में खरीदी हुई दवा को (उन पर 10 गुना ज्यादा लिखी हुई एमआरपी पर) ₹100 में मुनाफा कमाने के लिए रोगियों को बेचा जा रहा है, इनमें से आधी से ज्यादा दवाओं की जरूरत तो मरीजों को होती भी नहीं फिर भी गलत तरीके से पैसा कमाने के लिए अनजान मरीजों का ऐसा शोषण किया जा रहा है। यह सब तथ्य औषधि नियंत्रक अधिकारियों की जांच में प्रमाणित भी पाए गए हैं ।
जनता के साथ यह धोखाधड़ी और लूटमार नहीं तो क्या है ? जो दवाइयां अस्पताल में फ्री में उपलब्ध है उन्हें व वे जांचे अस्पताल में हो सकती हैं उन्हें कमीशन के चक्कर में बाहर निजी प्रयोगशालाओं में करवाने को उन्होंने रोकना चाहा। ऐसे डॉक्टरों को उन्होंने आड़े हाथों लिया, तो अपने आचरण में सुधार लाने की जगह उन्होंने पलट कर व्यवस्थाओं में सुधार का प्रयास करने वाले इस अधिकारी पर ही हमला बोल दिया। उनके भ्रष्ट आचरणों पर अंकुश रखने की बात आखिर खुलेआम क्यों कह दी गई चोर चोरी करे और जब करता हुआ पकड़ा जाए तो पुलिस वालों को उसे पकड़ना नहीं चाहिए ,बल्कि अलग से बुलाकर उनके हाथ पैर जोड़कर चोरी ना करने पर प्रवचन देना चाहिए। उनकी काली आत्मा को गंगाजल से नहलाना चाहिए। ये भी इसी युग मे हो सकता है।
शर्मा के विरुद्ध हाल ही में सेवारत चिकित्सक संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने ज्ञापन भेजा है जिसमें उन्होंने दौसा के डॉक्टरों को भला बुरा कहने को आत्म सम्मान पर चोट करना बताया है ।
उनके इस कृत्य को मुहावरे की भाषा में कहा जाए तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ही कहा जाएगा। एक और मुहावरा यहां इस्तेमाल करना चाहूंगा । जब कुत्ते की पूंछ पर पैर पड़ जाता है तो उसका चिल्लाना लाजमी होता है।
यह अध्यक्ष जी वही हैं जो मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के लागू किये जाने पर भी अपने निजी स्वार्थ के कारण सरकार के विरुद्ध सक्रिय हुए थे, कई दिनों तक हड़ताल करवाई थी और उससे कई जानें तक चली गई थी। मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या मरीजों को लूटने और अपने ख़ज़ाने भरने के लिए राज्य के सभी डॉक्टरों को खुला छोड़ देना चाहिए
बेसहारा और गरीब लोग अपना इलाज़ कराने बहुमंज़िला पांच सितारा सुविधाओं वाले निजी अस्पतालों में नहीं जा सकते । उनकी औकात नहीं होती। वे तो सरकारी अस्पतालों में लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने की मजबूरी से ग्रस्त होते हैं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हों या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , उन्होंने गरीबों और बेसहारा लोगों के लिए निशुल्क इलाज़ और निशुल्क जांच कराए जाने की योजनाएं चला रखी हैं। क्या इन योजनाओं को फेल करने में उतरे कुछ बदनीयत डॉक्टरों को अपने निजी खातों में चांदी की सिल्लियां भरने के लिए खुला छोड़ देना चाहिए
मुझे तो समझ में नहीं आता कि अरिसदा के अध्यक्ष जैसे पत्थर दिल डॉक्टरों का आत्म सम्मान तब कहां चला जाता है जब उनके डॉ अस्पतालों में होने वाली जांच भी बाहर निजी प्रयोगशालाओं में सिर्फ मोटा कमीशन कमाने के लिए भेज देते हैं । वे जब अपने घरों के बाहर ही मेडिकल स्टोर्स खोल लेते हैं ।
दौसा में भ्रष्ट डॉक्टर्स क्या क्या कर रहे हैं उसकी एक रिपोर्ट मेरे मित्र राजेश टंडन ने मुझे भेजी है। वे यूँ भी अजमेर के वरिष्ठ डॉक्टरों के गलत कारनामों के विरुद्ध पिछले कई दिनों से एक अभियान छेड़े हुए हैं ।क्या उन्हें भी खामोश होकर बैठ जाना चाहिए
सरकारी अधिकारियों की कुछ सीमाएँ तय हैं ,इसलिए वे अपने हक़ में आवाज़ सार्वजनिक रूप से नहीं उठा सकते। तो क्या उनकी इस मजबूरी का लाभ ये झूठे यूनियनबाज़ उठा सकते है क्या सच्ची और लोकहित की आवाज़ को दबाया जा सकता है
राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग ने भी दौसा अस्पताल की अनियमितताओं के प्रकरण में संज्ञान लिया है और अपने आदेश में लिखा है कि किस प्रकार भोली भाली जनता को कुछ पढ़े-लिखे चिकित्सक अपना निवाला बना रहे हैं व सरकारी कर्मचारी होते हुए भी अवैध कारोबार कर रहे हैं। क्या स्वयंभू अध्यक्ष जी इस टिप्पणी को भी आत्मसम्मान पर चोट मानते हैं
कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके कुछ सिक्के खोटे हैं और वह परखने वाले को दोष दे रहे हैं। शायद उन्हें अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है और डॉक्टर्स में अपनी गिरती हुई लोकप्रियता को कायम रखने व अपना अध्यक्ष पद बचाए रखने के लिए जो प्रवचन वह व्यवस्था में सुधार करने वालो को दे रहे हैं, बेहतर होता की थोथा विरोध करने के स्थान पर वह स्वयं चिकित्सा सेवा जैसे पवित्र पेशे की गरिमा बनाए रखने के लिए, पथ से भटक गए अपने कुछ साथियों को सही सलाह मशवरा दे, जिनकी काली करतूतों की वजह से पूरा मेडिकल प्रोफेशन बदनाम होता है। यूनियन बाजी से, मुंह लाल कर मैसेज वायरल करने से, हड़ताल कराकर मरीजों को परेशान करने से और उनकी जाने लेने से कोई भी आपका सम्मान नहीं करेगा, सही सम्मान और दिल से सम्मान लोग तब करेंगे जब सभी सेवारत चिकित्सक ईमानदारी से अपने चिकित्सक धर्म का निर्वहन करेंगे। और मरीजों की दुआएं भी मिलेंगी।
कहीं ऐसा ना हो कि गलत बातों पर पर्दा डालने के लिए व भ्रष्ट आचरण की तरफदारी के लिए मुंह लाल करने पर जनता आपका मुंह काला कर दे। यह पब्लिक है यह सब जानती है।
इतिहास साक्षी है कि जब भी सही और गलत में युद्ध होता है तो अंत में जीत सच्चाई और अच्छाई की ही होती है
हे प्रभु, इन्हें सद्बुद्धि देना शायद ये नहीं जानते यह क्या कर रहे हैं......!
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