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क़लमकार: भास्कर ने कहा --मुस्कुराइए! कोविड वार्ड के 98 फ़ीसदी बिस्तर ख़ाली पड़े हैं

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December 23, 2020

पढ़ कर कोरोना को लगा कि उसे नपुंसक कह दिया गया है

भास्कर ने कहा --मुस्कुराइए! कोविड वार्ड के 98 फ़ीसदी बिस्तर ख़ाली पड़े हैं



पढ़ कर कोरोना को लगा कि उसे नपुंसक कह दिया गया है



दोस्तो!! ख़ाली पड़े बिस्तरों को भरने की कोशिश न करें: उनके लिए पत्रकार और राजनेता ही काफ़ी हैं



सुरेन्द्र चतुर्वेदी



मुस्कुराइए!! क्यों कि कोविड सेंटर के 98 प्रतिशत बिस्तर खाली पड़े हैं! दैनिक भास्कर के मुख पृष्ठ पर इस शीर्षक की पढ़कर लोग सोच रहे होंगे कि कोरोना जा चुका है ।मरीजों का ख़ाली पड़े बेड इंतज़ार कर रहे हैं।



शीर्षक पढ़कर कोरोना वायरस को चिंता हो गई होगी! उसे अपने पुरुषार्थ और पराक्रम पर शक़ होने लगा होगा ।



अभी तो वैक्सीन का भारत में लगना ही शुरू नहीं हुआ और वार्डों के बिस्तर ही खाली होने लग गए ।बेचारे को अपने नपुंसक होने का एहसास हो रहा होगा।



मारे डर के सरकार फ्लाइट रद्द कर रही हैं। कोरोना के बदले हुए मिजाज़ स्ट्रेन के डर से सरकार के हाथ पांव फूले हुए हैं। कोरोना के मरीजों का आंकड़ा भले ही धीमा पड़ा हो मगर संभावनाओं की आशंकाएं अभी भी पूरी तरह मजबूत नज़र आ रही है।




अस्पतालों के बिस्तर खाली पड़े हैं ,यह कहकर अख़बार क्या कहना चाह रहा है वह जाने !! मगर कोरोना को यह खबर बेहद अपमानजनक महसूस हो रही है। स्कूल और कॉलेज के क्लासरूम भी खाली पड़े हैं। रेल, वायु और परिवहन साधन भी फिलहाल तो खाली ही पड़े हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों के ऑफिस खाली पड़े हैं। लोग घरों से ही ऑनलाइन सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे में अस्पतालों के बिस्तरों का खाली पड़ा होना और उसके लिए मुस्कुराना ताज्जुब की बात है ।




अखबार ने कहा मुस्कुराइए तो लो मैं मुस्कुरा रहा हूँ।कोरोना से लोगों को बचाने के लिए कोरोना के खिलाफ मैंने देश में सबसे ज्यादा ब्लॉग लिखे हैं। यदि कोरोना में अपने पराए की पहचान होती तो सबसे पहले वह मुझे ठिकाने लगाता।




मैं अभी भी आप सब से कह रहा हूँ कि अखबारों की न्यूज़ और उनके हेडिंग पर मत जाइए। वार्ड के बिस्तर खाली पड़े हैं तो वे अख़बार वालों के लिए होंगे। हमारे लिए नहीं। वे हमारा इंतज़ार नहीं कर रहे जो हम उन्हें भरने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास करें।




उन्होंने मुस्कुराने को कहा है तो मुस्कुरा जरूर दीजिए मगर ध्यान रखिए कि यह मुस्कुराहट मास्क में छुपी होनी चाहिए, ताकि कोरोना वायरस देख ना पाए। कोरोना से बेखौफ होकर घूमने की ज़रूरत नहीं ।अभी मास्क ही असली वैक्सीन है ।




वैक्सीन अभी पहुंचा नहीं है।आ भी जाए तो जल्दबाज़ी मत करना।काढ़े से ही काम चलाते रहना। कोशिश करना ये पहले राजनेताओं के लगे ताकि पता चल सके कि वैक्सीन के आफ्टर इफेक्ट क्या होते हैं साइड इफेक्ट क्या होते हैं 




हरियाणा के मंत्री अनिल विज को आप देख ही चुके हैं ।वैक्सीन फ़िल्म के ट्रेलर( ट्राइल) में ही अस्पताल के खाली बेड पर पड़े हुए हैं ।




जब तक वैक्सीन मोदी जी पर सफल न हो जाए, मैं तो सोच रहा हूँ नीम गिलोय युक्त राधे फाउंडेशन के काढ़े से ही काम चला लूँ ।यदि लगवाने की भयंकर ज़रूरत आन ही पड़े तो तब लगवाऊँ जब मोदी जी और शाह जी इसे लगवा लें। जल्दबाजी में ऐसा ना हो कि अस्पतालों के खाली पड़े 98% बेड हम ही भर दें।




सुना है कि किसी मुल्क में तो वैक्सीन लगाने वाले लोगों में एचआईवी पॉजिटिव यानी एड्स के लक्षण आ गए। अखबार वालों को पहले वैक्सीन लगवाने दीजिए उनको एड्स यानी विज्ञापनों की बड़ी ज़रूरत होती है। उनमें आए बदलावों का परीक्षण हो जाए फिर हम भी लगवा लेंगे ।




यहां एक वाकया याद आया।शायद चुटकला है। एक अखबार वाले की टांग दुर्घटना में कट गई। वापस जोड़ी गई तो चिकित्सकों को हड्डी के एक टुकड़े की ज़रूरत पड़ी जो अखबार वाले के पैर में नज़र नहीं आ रहा था , शायद घटनास्थल पर रह गया होगा । जल्दबाजी में एक कुत्ते के पैर की हड्डी का टुकड़ा लगा दिया गया। अखबार वाला ठीक हो गया। कुछ महीनों बाद उसके घरवालों से डॉक्टर ने पूछा कि मरीज़ के क्या हाल-चाल हैं। उसकी पत्नी ने बताया कि बाकी तो सब ठीक है बस टॉयलेट जाते समय एक टाँग ऊँची कर लेते हैं। बाकी भी कई बातें पत्नी ने डॉक्टरों को बताई मगर मैं यहां बताना उचित नहीं समझता ।




चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा ने कल अजमेर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उसमें उन्होंने कुछ ऐसी उपलब्धियों का जिक्र कर दिया जो वास्तव में हासिल ही नहीं हुईं। जैसे नेहरू अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट जो कागजों में ही जिंदा है। ऑक्सीजन प्लांट को उन्होंने अस्पताल में काम करता हुआ बता दिया ,अब अखबार वाले उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं।




मैं डॉक्टर रघु शर्मा के बयान के पक्ष में विचार रखता हूं। पहली बात तो जब कोरोना वार्ड के 98% बेड खाली पड़े हैं तो नए ऑक्सीजन प्लांट की ज़रूरत ही क्या है? दूसरी बात ये कि जो प्लांट चल रहे हैं वे ही धींगा मस्ती के काम में आ रहे हैं। भरे हुए सिलेंडर काम ही नहीं आ रहे।




अस्पताल में आठ महीनों से ऑपरेशन होने बंद हैं ।क्या अब ऑक्सीजन सिलेंडर ओपीडी में काम आएंगे?



अख़बार वाले पता नहीं क्यों इतने नकारात्मक होते हैं जो चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा पर ही सवाल उठा दिए? अरे डॉक्टर रघु शर्मा को तो जो जानकारी अधिकारियों ने दी वहीं उन्होंने परोस दी। उन्हें थोड़ी ना पता है कि लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट क्या होता है



नसीराबाद के सरकारी असपताल में तो 2 साल पहले ही प्लांट आया हुआ रखा है। वहीं अब तक नहीं चालू नहीं हुआ अब नए प्लांट को चालू करने का क्या औचित्य ।



मित्रो!!!



अख़बार वालों की तरफ मत देखो।मोदी जी की तरफ देखो। वो तो कह चुके हैं ना जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।


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