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क़लमकार: दारू की दुकानों का किराना वालों से कॉम्पिटिशन क्यों कर रहे हैं घनी मूंछों वाले नेता जी

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December 19, 2020

बेवक़ूफ़ी वाली बातों में छिपा है गंम्भीर ब्लॉग

दारू की दुकानों का किराना वालों से कॉम्पिटिशन क्यों कर रहे हैं घनी मूंछों वाले नेता जी




कोरोना को लेकर ग़लत फ़हमी न फैलाये: हो गया तो सोच खुजली वाले श्वानों में हो जाएगी तब्दील




बेवक़ूफ़ी वाली बातों में छिपा है गंम्भीर ब्लॉग




सुरेन्द्र चतुर्वेदी




भयंकर सर्दी पड़ रही है। तापमान सम्भागीय राजनेताओं के चरित्र की तरह बराबर गिरे जा रहा है ।पुष्कर के आसपास तो अजमेर के कांग्रेसियों के इरादों जैसी बर्फ जमी नज़र आ रही है। माहौल प्रशासनिक व्यवस्थाओं की तरह ठिठुरा हुआ है।





रात्रि कर्फ्यू के समय को लेकर लंबी घनी मूछों वाले नेताजी सवाल उठा रहे हैं ।कह रहे हैं कि जब दारू की दुकानों का समय रात्रि 7:45 बजे तक का है तो आम बाजार 7 बजे ही क्यों बंद करवाए जाते हैं





वे असल में क्या चाहते हैं मेरे समझ में नहीं आ रहा!! नेता जी मोहन लाल शर्मा दारू की दुकानें 7 बजे बंद करवाना चाहते हैं या किराने की दुकानें 7:45 बजे तक खुलवाना चाह रहे हैं समझ नहीं आ रहा ! दारू की दुकानों से वे किराने वालों का कंपटीशन क्यों करना चाहते हैं





इतनी सर्दी पड़ रही है कि सिर्फ और सिर्फ़ दारूबाज़ ही इस सर्दी का मुकाबला कर सकते हैं ।आम आदमी की औक़ात कहां जो 7 बजे बाद किराने की दुकानों पर जाकर माथा फोड़ी करें ।इसके लिए तो दिन ही काफ़ी होता है।अतिरिक्त 45 मिनट के ओवर में वे क्या तीर मार लेंगे





दूसरी तरफ 7 बजे बाद तो दारू बाज़ों और पेवड़ों को याद आती है कि उन्हें दारू भी खरीदनी है ! दारू के साथ नमकीन भी ज़रूरी होती है जो आजकल वाइन स्टोर पर ही आसानी से उपलब्ध हो जाती है। ऐसे में दारू बाजों को नमकीन के लिए भी दुकानों की ज़रूरत नहीं पड़ती।





शर्मा जी !! आप तो दारू पीते नहीं ! पीते भी हों तो मुझे जानकारी नहीं! इसलिए आप नहीं जानते कि 7 बजे बाद का समय दारु बाज़ों के लिए कितना कीमती होता है 7 बजे से 8 बजे के बीच दारूबाजों की अंतरात्मा साधु संतों की अपेक्षा ज्यादा जीवंत हो उठती है।





मोहनलाल जी प्लीज ! दारू वालों से पंगा मत लीजिए! उनकी दुकानों का समय कम मत करवाइए ! उनकी आत्मा को चोटिल करने का अपराध मत कीजिये!





अजमेर शहर में बढ़ती सर्दी के कारण दारू बाजों को अंदरूनी सेनेटाईज़िंग की बेहद ज़रूरत होती है। शहर की आबादी के 60% लोग दारु बाज़ है ।उनकी सुविधा के लिए दुकानें सही समय तक खुली रहनी चाहिए। वाइन स्टोर एक तरह से दारु बाज़ों के मेडिकल स्टोर हैं। जिस तरह मेडिकल स्टोरों से लोगों को अलग-अलग बीमारियों की दवाएं मिलती हैं, उसी तरह दारू बाज़ों को वाइन स्टोर्स पर हर रोग की एक ही दवा मिलती है ।दारु पीने वालों के सारे रोग इस एक ही अनमोल अल्कोहल के हवाले हो जाते हैं।





सरकार ने रात्रि कर्फ्यू की जो व्यवस्था दी है वह कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए दी है ।सरकार शायद सोचती है कि कोरोना रात्रि में ही तेजी से फैल सकता है ।दिन में उसका मूड ठीक रहता होगा ।





सरकार शायद सोचती है कि जब शादियों में भीड़ इकट्ठी होती है तो ही कोरोना उन पर वार करता है मगर जब वह चुनाव, रैली , आम सभा ,विरोध प्रदर्शनों में होती है तो कोरोना उन पर हमला नहीं करता। कोरोना शायद सूट बूट और शानदार महंगे परिधानों को देखकर ही आकर्षित होता है। भिखारियों और मजदूरों पर वह दया भाव बनाए रखता है।





आज देश में किसान आंदोलन अपने चरम पर है ।दिल्ली की सभी सीमाओं पर किसान बड़ी संख्या में पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। मास्क की पाबंदी उन पर लागू नहीं होती।अगर होती तो इतना जुर्माना राशि मिलती कि सरकार के खजाने भर जाते।वहां ना साबुन से नियमित हाथ धोए जा रहे हैं ,ना कोई डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है ।अमिताभ बच्चन जो टेलीफोन पर अनाप शनाप बोलते हैं वह वहां कहीं दिखाई नहीं देता। वहां भरत मिलाप के दृश्य खुले आम देखे जा सकते हैं।वहां कोरोना की हिम्मत नहीं हो रही कि वह किसी के हाथ लगाए ।





भारत की धारा 144 , रात्रि कर्फ़्यू वहां पहुंचते ही नहीं! दूर से ही सलाम कर लेते हैं! वहां दारू की सप्लाई पूरी रात हो सकती है ! किराने का सामान हर समय उपलब्ध है ! यह अजमेर के नेता जी को शायद नहीं मालूम ! बस आम जनता के बाजारों में कर्फ्यू का असर ही नेताजी देख रहे हैं।





कोरोना की रफ्तार कम होने के आंकड़े दिखाकर क्या सरकार ये उम्मीद करती है कि लोग कोरोना से बचने की कोशिश करेंगे ? कोरोना का डर लोगों के दिल से अब निकल चुका है ।लोग जान गए हैं कि रिकवरी रेट 95% से भी अधिक हो गई है। अब कोरोना से डरने की क्या ज़रूरत है ।हो भी गया तो ठीक हो कर आ जाएंगे ।





यह एक भ्रामक स्थिति का दौर है ।लोग इतने नादान हैं कि यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कोरोना से मुकाबला करके जीतना आसान है, मगर बची हुई जिंदगी जीना ज़िन्दा लाशों जैसी हो जाती है। शायद उस से भी बदतर ।आदमी के शरीर का हर हिस्सा चौथाई रह जाता है। उम्र भी।





वैक्सीन को लेकर लोग अभी भी गंभीर नहीं।वे सोचते हैं कि जब 9 महीनों में कोरोना उनका कोई बाल टेड़ा नहीं कर पाया तो उन्हें वैक्सीन लगाने की आगे भी क्या जरूरत पड़ेगी? जैसे अभी काढ़े के आसरे जिंदा हैं वैसे ही आगे भी वे इसी तरह काढ़ा पी कर जिंदा रह जाएंगे।





मित्रों!! कोरोना के आंकड़ों पर मत जाइए !! रात्रि कर्फ्यू के समय पर सवाल मत उठाइए !! अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता की वजह से बाहुबली मत बनिए!! कोरोना से पार पाना आसान नहीं !! कभी भी ,कोई भी , कहीं भी आपको प्रसाद दे जाएगा और आप अपनी खुजली वाले कुत्ते जैसी सोच को देखते रह जाएंगे।





सर्दी बढ़ रही है ।कोरोना के लिए यही समय सबसे आसान समय है। जरा चुके कि गई जान ! अब तू चाहे तो मान या न मान !


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