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December 15, 2020
अशोक गहलोत की सत्ता के दो साल 17 दिसंबर को
क्या सात माह से अपने आवास में आत्म क़ैद गहलोत बाहर आ कर गिनाएंगे उपलब्धियां
क्या फरवरी माह में उनको थमाई जाएगी केंद्रीय सत्ता
गांधी परिवार को ज़रूरत है अपने वंश के अंतिम ग़ुलाम की
अटकलों का बाज़ार गर्म
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कार्यकाल का शिशु 17 दिसंबर को पूरे 2 साल का हो जाएगा। इस बार कोरोना के कारण सरकार शायद वर्षगांठ नहीं मनाएगी। दो साल पहले अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने अपने-अपने पदों की शपथ ली थी ।गहलोत की पिछले दो सालों में सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने अपने निकटवर्ती विरोधी सचिन पायलट को रास्ते का पत्थर समझ कर हटा दिया ।
अशोक गहलोत के बारे में आपको शायद पता ही होगा कि वे पिछले सात माह से अपने आवास में ही आत्म कैद हैं। इतने लंबे समय से वे बाहर आकर राज्य के किसी भी सरकारी या सामाजिक कार्यक्रम में भाग नहीं ले रहे ।सचिन पायलट और उनकी बाड़े बंदी के बाद जब उन्होंने सचिन पायलट को पटकी दे दी तब से वे अपने आवास पर ही रहकर सरकार चला रहे हैं ।गहलोत का आवास ही मुख्यमंत्री कार्यालय बना हुआ है।
बताया जाता है कि अशोक गहलोत आवास पर आने वाले लोगों से बड़ी सोच समझ और सतर्कता से मुलाकात कर रहे हैं ।ज़रूरत पड़ने पर ही मिलते हैं ।वजह उनका स्वास्थ्य बताया जा रहा है ।कहा जा रहा है कि वे अस्वस्थ हैं।
एक अटकल यह लगाई जा रही है कि वे कोरोना के संक्रमण से डरे हुए हैं। जब सचिन पायलट, रघु शर्मा और उनके कई मंत्री इस संक्रमण से दो-दो हाथ कर चुके हों तब गहलोत का अतिरिक्त सुरक्षा कवच पहनना उचित ही है ।
उधर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि वे अब थक चुके हैं ।अब आराम करना चाहते हैं ।बहुत कुछ कर लिया। इधर अशोक गहलोत कमलनाथ से ठीक विपरीत मानसिकता से कार्यरत हैं। उनका स्वास्थ्य एकदम गड़बड़ाया हुआ है मगर वे अभी तक भी थके हुए नहीं हैं। आराम नहीं करना चाहते ।सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी करने को वे अभी भी तैयार हैं।
सरकारी कर्मचारी होते तो अब तक उनका रिटायरमेंट हो चुका होता। सरकार में हैं इसलिए जीवन पर्यंत सरकार चला सकते हैं। राजनीति में कई राजनेता तो ऐसे भी हैं जो मरने के बाद भी सत्ता में रहना पसंद करते हैं। सत्ता का शहद है ही इतना मीठा।
कांग्रेस के महान क्रांतिकारी नेता और अशोक गहलोत के रक्षा कवच आली जनाब अहमद पटेल पिछले दिनों अल्लाह को प्यारे हो गए। जितना अहमद पटेल ने गहलोत की सत्ता को बचाने में सहयोग दिया उतना कोई दे नहीं सकता था। एक तरह से वे गहलोत के कांग्रेस में गॉडफादर थे, मगर जब उनका इंतकाल हुआ तो गहलोत उनके यहां शोक व्यक्त करने तक भी न जा सके। मुझे बताया गया कि पिछले दिनों उनके निकटवर्ती रिश्तेदारों की मृत्यु पर भी वे उनके दुख में शामिल होने नहीं जा सके।
हमें मानवीय आधार पर गहलोत की विवशता को समझना चाहिए। यदि गहलोत अंतिम संस्कारों में शामिल नहीं हो पा रहे तो इसका यह मतलब नहीं लिया जाना चाहिए कि वे अपनों की मौत से दुखी नहीं हैं।दुखी तो बहुत हैं मगर उनका स्वास्थ्य इतना खराब है कि वे चाहकर भी नहीं जा पा रहे।
दिल्ली गया था मैं पिछले दिनों। कई दिग्गज नेताओं से मिलना हुआ। उनकी बातों को सुनकर ही मैं अटकल लगा रहा हूँ कि अशोक गहलोत का स्वास्थ आगामी फरवरी तक पूरी तरह ठीक हो जाएगा ।यदि अटकल सही निकली तो यह अटकल भी सामने आएगी कि गहलोत को राज्य के मुख्यमंत्री पद से बेहतर अवसर कांग्रेस पार्टी देना चाहेगी ।उनसे कहा जाएगा कि आप अहमद पटेल का रिक्त पड़ा कार्यभार संभाल लें। कांग्रेस की रीड की हड्डी कमजोर होती जा रही है इसे आप मजबूत करें।
सचिन पायलट इन्ही अटकलों के सहारे पार्टी के प्रति अपनी निश्चल आस्था दिखाए जा रहे हैं ।इसी अटकल में वे अपना भविष्य सुरक्षित मान रहे हैं ।उन्हें लग रहा है कि गहलोत को दिल्ली में सम्मान मिल जाएगा और उन्हें राजस्थान में ।
इस अटकल के बीच एक और अटकल चल रही है। जो लोग गहलोत को नज़दीक से जानते हैं ,उनका मानना है कि गहलोत अपने मुख्यमंत्री पद को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।चाहे कुछ भी हो जाए।वे हाईकमान को दो टूक शब्दों में कह देंगे कि उन्हें केंद्रीय संगठन का बड़े से बड़ा पद स्वीकार नहीं ।वे मुख्यमंत्री बने रहने में ही संतुष्ट हैं।
इधर दिल्ली की अटकलें ये हैं कि गहलोत पर कांग्रेस संभालने के लिए भयंकर दबाव डाला जा रहा है। गांधी परिवार को अहमद पटेल के बाद गहलोत में ही अपना वफ़ादार हीरा नज़र आ रहा है ।वफादारी में उनका नंबर पहला है ।
ऐसे वक्त में जब गांधी परिवार की अस्मिता दांव पर लगी हुई हो ! भाजपा देश में कांग्रेस शून्य राजनीति की कल्पना करने में लगी हो ! देश भर के चुनाव में जब कांग्रेस को काफी करारी हार का सामना करना पड़ रहा हो!! सोनिया ,राहुल और प्रियंका मिलकर भी कांग्रेस पार्टी का संचालन नहीं कर पा रहे हों! तब अशोक गहलोत पर उनकी नज़रें टिकना वाजिब ही है ।वे इस बुरे समय में यदि गांधी परिवार के साथ खड़े नहीं हुए तो कांग्रेस पर और लोगों का कब्जा हो जाएगा ।और यह तय है कि वह न तो सोनिया की प्रभुसत्ता को स्वीकार करेंगे ना राहुल के निर्देशों की।
जहां तक मेरी अटकल का सवाल है मैं तो यही कहूंगा कि गुलाम वंश के अंतिम बादशाह कोई भी रहे हों मगर अशोक गहलोत तो गांधी वंश के अंतिम गुलाम सिद्ध नहीं होंगे।
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