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क़लमकार: हमें दुर्लभ प्रशासनिक गौंडावनों का सम्मान करना ही होगा

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October 28, 2020

चाहे वे आरुषि मलिक हों, डॉ समित शर्मा हों, शिव प्रकाश नकाते हों, कुं राष्ट्रदीप हों, प्रकाश राजपुरोहित हों या चिन्मयी गोपाल

भीलवाड़ा के जिला कलेक्टर शिव प्रकाश नकाते शहर के हालातों का जायज़ा लेने  साइकिल पर ही निकल पड़े। बिना सरकारी अमले के। बिना लाव लश्कर के।उन्होंने आम आदमी की तरह जनता की रोज़मर्रा से जुड़ी समस्याओं का जायज़ा लिया ।संबंधित विभागों के अधिकारियों की गर्दन नापी। उन्हें हडकाया ।सुधर जाने की चेतावनी दी । जोधपुर के संभागीय आयुक्त व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डॉ समित शर्मा ने पाली जिले के एक सरकारी स्कूल पहुंचकर आकस्मिक निरीक्षण किया ।निरीक्षण में 11 शिक्षक अनुपस्थित पाए गए । सब के विरुद्ध कार्रवाई लंबित है। अजमेर की संभागीय आयुक्त आरुषि मलिक शहर के अस्पतालों का दौरा कर रही हैं। अधिकारियों की बैठकें आयोजित कर जनता के लिए खुलने वाले रास्तों पर नज़र रखे हुए हैं। कुछ मामलों में विवाद भी उठा है। यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने उनको लेकर न केवल आक्रामक बयान दिए हैं बल्कि उनकी कार्यशैली को गैरकानूनी भी बताया है । अजमेर के जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित जिस तरह सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण करते रहे हैं और अस्पताल की अव्यवस्थाओं पर निगरानी कर रहे हैं।वह सुर्खियों में है। अजमेर के पुलिस कप्तान कुँवर राष्ट्रदीप सिंह अपने अजमेर के कार्यकाल में हमेशा जनता के साथ खड़े नज़र आते रहे हैं। जोधपुर के संभागीय आयुक्त शर्मा जो हमेशा अपने कार्यकाल में जनता के बीच महानायक बने रहे। उन्होंने भी कई मंत्रियों की गलत मंशा को ख़ारिज़ किया।औऱ सरकारी तौर पर उसका खामियाज़ा भी भुगता। यह सब काम करने वाले अधिकारियों की पीड़ा होती है। जब काम करते हैं तो कुछ कामचोर और अकर्मण्य लोगों के मुखोटे भी उतरते हैं ।जिनके मुखोटे उतर जाते हैं वे शोर शराबा भी करते हैं। संगठित भी होते हैं ।जवाबी कार्रवाई में अपने आप को पाक साफ साबित भी करना चाहते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। प्रशासनिक अधिकारी चिन्मयी गोपाल जब अजमेर नगर निगम में आयुक्त रहीं तो उन्होंने कई भ्रष्ट नेताओं व अधिकारियों की फीत उतारी ।भ्रष्टाचार के कई फाइलों का खुलासा किया। उनको आज तक भी बख्शा नहीं जा रहा। यह सब कर्मनिष्ठ अधिकारियों की नियति में होता है । डॉक्टर समित शर्मा ने पाली की सिणगारी स्कूल में आकस्मिक निरीक्षण किया और प्रधान अध्यापिका को शो कॉज नोटिस जारी किया। सोशल मीडिया पर उनकी जम कर तारीफ़ हुई मगर कई मूर्ख किस्म के लोगों ने उल्टे प्रधानाध्यापिका के गुणगान शुरू कर दिए । एक शिक्षक नेता ने तो मुझे ही पोस्ट भेज दी। इस पोस्ट में बताया गया कि प्रधानाध्यापिका जिसे नोटिस दिया गया है उन्होंने स्कूल में कई सराहनीय कार्य किए।स्कूल की दीवारों पर बेहतरीन कलाकारी करवाई।स्कूल की शान में चार चांद लगाए।पोस्ट में स्कूल की प्रधानाध्यापिका को बेहतरीन अधिकारी बताया गया। उस पोस्ट का जवाब देते हुए मैंने नेता जी को धन्यवाद दिया। प्रधान अध्यापिका जी की प्रशंसा की। उनके द्वारा किए गए कार्य को श्रेष्ठ बताया, मगर पोस्ट करने वाले शिक्षक नेता जी से ये पूछा कि डॉ समित शर्मा ने उन्हें जो नोटिस दिया है क्या वह उनकी ख़ूबियों के विरुद्ध दिया है या किसी ऐसे काम के लिए दिया है जो उन्हें करना चाहिए था और उन्होंने नहीं किया। उन्होंने प्रधानाध्यापिका द्वारा किए गए अच्छे कामों को बुरा नहीं बताया है। उन्होंने स्कूल की दीवारों पर जिस नायाब तरीके से सृजन किया है उसे तो गलत नहीं ठहराया है । प्रधान अध्यापिका को नोटिस स्कूल खुलने के बाद 11 अध्यापको के न पहुंचने और स्कूल में स्टाफ के साथ बैठ गप्पें मारने पर दिया है। उन्हें जो करना था वह नहीं करने पर दिया गया है ।अपनी जिम्मेदारियों का सही से निर्वहन नही करने पर दिया गया है।
कोई महान संत जिसने सारी जिंदगी जनकल्याण किये हों।  आध्यात्मिक कार्य किए हों और यदि वह एक बार किसी  पाप कर्म में पकड़ा जाता है तो उसके पुण्य कार्य की दुहाई देकर उसे बरी नहीं किया जा सकता या उसके विरूद्ध कार्रवाई करने वाले को गलत नहीं ठहराया जा सकता । दोस्तों !! हमारी आदत में यह बात आ चुकी है कि देश का  कोई भी अधिकारी काम नहीं करता! सब मौज़ मस्ती में लगे हुए हैं! सब भ्रष्ट तंत्र के हिस्से हैं! जनता का शोषण कर रहे हैं! हमें इस मानसिकता से थोड़ा अलग होकर सोचना होगा । हमें थोड़ा अपने अंदर भी झांक कर देखना होगा। मैंने हमेशा शिक्षकों की वाजिब समस्याओं पर खुलकर लिखा है। अधिकारियों की नीतियों और फैसलों का विरोध किया है, मगर कुछ कमियां ऐसी हैं जो हम में भी हैं। हमारे शिक्षकों में भी हैं ।शिक्षकों का दुरुपयोग किए जाने का मैं हमेशा विरोधी रहा हूँ।जो काम उनके लिए नहीं बने हैं और  उनसे कराए जाते हैं तो मैं उनका विरोध करता रहा हूँ मगर स्कूल में रह कर जो काम किए जाना शिक्षकों का नैतिक कर्तव्य हैं कम से कम वह तो उन्हें पूरा करें ।किसी शिक्षक की रेलवे स्टेशन पर ड्यूटी लगा दी जाती तो मैं उनका कड़ा विरोध जरूर करता। भीलवाड़ा के कलेक्टर साइकिल से निकलकर काले कारोबार से जुड़े लोगों से चौथ वसूली कर रहे होते तो मैं उनका विरोध करता। अजमेर की संभागीय आयुक्त आरूषी मलिक यदि गलत लोगों को प्रोत्साहित कर रही होतीं तो मैं उनका विरोध कर रहा होता। आप लोगों से भी कहता कि उनका विरोध करिए मगर जो अधिकारी अपने नैतिक दायरों में रहकर सरकार की मंशा के अनुरूप काम कर रहे हैं ,उन्हें अनावश्यक रूप से सोशल मीडिया पर लपेटना ठीक नहीं। मुझे पता है कि पिल्ले की पूँछ पर जब किसी का पैर पड़ जाता है तो वह काफी देर तक शोर मचाता है। स्वभाविक है , मगर जब उसे लगता है कि वह जिस जगह बैठा है वहां कोई और भी आकर उसकी पूँछ पर पैर रख सकता है तो वह धीरे से खिसक लेता है। बस ! मुझे यही कहना है कि ऐसे अधिकारी जिनकी नीयत साफ़ है उनको बेवजह घसीटने की कोशिश ना करें। इस धन लोलुप वक़्त के बीच ईमानदार अधिकारी  तो दुर्लभ गोडावण पक्षी हैं जिनकी प्रजाति का संरक्षण किया जाना चाहिए । हमें ऐसे दुर्लभ पक्षियों  का सम्मान करना ही पड़ेगा।इनको सामाजिक मान्यता देनी ही पड़ेगी।
                        


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