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July 19, 2019
2142 #मधुकर कहिन
बड़े फन्ने खां बने फिरते हो .... इस मुहावरे का उदगम कहां से हुआ है ?
जानिए की आखिर फन्ने ख़ाँ कौन था जो मुहावरा बन गया...
नरेश राघानी
आज मित्र असलम खान ने , जो कि जेठाना निवासी हैं। मेरा कल का ब्लॉक बढ़कर एक बात पूछी। पहले तो उन्होंने फोन पर मुझे मेरे कल के लिखे हुए ब्लॉग के लिए साधुवाद प्रेषित किया । और साथ ही मुझसे पूछा कि - मधुकर जी !!! यह बताइए की पुरानी कहावत बड़े फन्ने खां बने फिरते हो का उदय आखिर कहां से हुआ है ? और आखिर फन्ने खां कौन था ? जिस पर मैंने थोड़ी देर काम किया और इसकी जड़ तक गया। जाने पर जो जानकारी मुझे मिली वह जानकारी आप सभी लोगों तक पहुंचाने में बहुत संतुष्टि महसूस करता हूँ। क्योंकि जब हम आम जिंदगी में यह मुहावरे और कहावतें अक्सर अपनी जुबां पर लाते हैं। तो यह बहुत जरूरी हो जाता है कि हमें कम से कम पता हो कि हम जो कह रहे हैं उसका उदगम कहां से हुआ है ? तो सवाल यह कि असल में फन्ने खां था कौन ? तो साहब !!! फन्ने खां चंगेज खां के दरबार का एक सिपाही था। जो उसकी सेना में भारत की तरफ रुख करते हुए अफगानिस्तान से शामिल हुआ। ये इतिहास 12वीं शताब्दी का है । फन्ने खां का काम क्रूर शासक चंगेज खान की सेवा करना था। फन्ने खां में एक खास बात थी कि उसे बड़ी-बड़ी बातें करना तो बहुत पसंद था ,लेकिन असलियत में वो युद्ध से अक्सर किनारा कर लेता था। एक दिन की बात है चंगेज खान और फन्ने खां दोनों सैर पर निकलते हैं। चंगेज खान को रास्ते में भूख लग जाती है। लेकिन साथ में खाने का कुछ सामान न होने की वजह से वे फन्ने खां को खाने का इंतजाम करने का आदेश दिया गया। फन्ने खां आदेश का पालन किया और एक जानवर का शिकार करके तुरंत शासक के सामने हाजिर कर दिया। उसकी इस बात से खुश होकर चंगेज, फन्ने को युद्ध की प्रमुख सेना में शामिल कर लेते हैं। फन्ने खां में एक खास बात थी की उसके हाथों में कई हाथियों का बल था। और वो नीम और पीपल जैसे बड़े वृक्षों को तलवार के एक ही वार में काट दिया करता था । यहीं नहीं उसकी एक तलवार का वार कई के सिर एक साथ काट देती थी । इसलिए आज भी बहादुर , ताकतवर और निडर लोगों को लोग फन्ने खां का खिताब देते है। और कहते हैं कि बड़े फन्ने खां बने फिरते हो।
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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