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July 12, 2019
2136 #मधुकर कहिन
*एडमिशन सीज़न आते ही क्यूँ शुरू हो जाते हैं निजी स्कूलों के बाहर प्रदर्शन ??*
*बिगड़ती एडमिशन व्यवस्था के चलते सरकारी स्कूल भी वसूलने लगे विकास शुल्क*
नरेश राघानी
*अगर आपको अचानक अजमेर की शिक्षा नीति का विरोध करते हुए या बढ़ती हुई फीस का विरोध करते हुए , नेताओं की खबरें इन दिनों ज्यादा पढ़ने को मिल जाए , तो बिल्कुल भी हैरान मत होइएगा।* यह जुलाई के महीने है भाई !! और *31 जुलाई से पहले अजमेर का हर वो व्यक्ति जो किसी न किसी रूप में, छोटी बड़ी ,आम खास, इधर उधर की , और न जाने किधर किधर की नेतागिरी कर रहा होता है। वह आपको विशेष तौर पर निजी स्कूलों की कार्यशैली, बढ़ती हुई फीस, वगैरह वगैरह के बारे में विरोध प्रदर्शन करता हुआ सड़क पर दिखाई देगा।*
अब आप पूछेंगे कि - *ऐसा क्यों मधुकर जी ?*
तो भैया !!! ऐसा इसलिए होगा क्योंकि *हर साल जुलाई के माह में ही लगभग इसी समय सभी स्कूलों में नए एडमिशन होते हैं ।* बड़ी निजी स्कूलों में विशेषकर एडमिशन पाने वालों की लाइन लगी रहती है। *जितनी बड़ी लाइन उतना बड़ा सरदर्द मां बाप के लिए।* जिनके ऐडमिशन आराम से हो जाते हैं उनके हो जाते हैं । *फिर बाकी पीड़ित लोग दाएं बाएं ,अगल-बगल ,ऊपर नीचे की पहुंच लगाने छोटी मोटी नेतागिरी करने वाले वार्ड स्तर के नेताओं से लेकर, एमएलए अथवा उच्च प्रशासनिक अधिकारियों तक कि पहुंच लगवाने में जुट जाते हैं।* फिर जिसकी पहुंच लग जाती है उसका एडमिशन हो जाता है। और जैसे ही *किसी नेता की नहीं चल पाती है। वह हाथ पांव धोकर उस स्कूल के पीछे पड़ जाता है। कभी सड़क पर टायर जलाकर, कभी नारेबाजी या ज्ञापन इत्यादि देकर।* सो भैया !!! यह *धंधा* है । जो कि अपने बच्चे का एडमिशन न करवा पाने वाले पीड़ित माँ बाप की मोटी *धनराशि लेकर जेब काटने* और अपनी नेतागिरी की धौंस दिखाकर स्कूल वालों से *मुफ्त एडमिशन सीट छीनने* की तर्ज पर चलता है। *मैं कई ऐसे ज्यादा सयाने नेताओं से भी परिचित हूं , जो जुलाई माह के आने से पहले ही निजी स्कूलों के बाहर प्रदर्शन करके उन स्कूल के प्रशासकों को धमकाने में व्यस्त हो जाते हैं। ताकि दो एक प्रदर्शन कर लेने के बाद , उनकी धमकी और धौंस पूरी तरह से उस स्कूल प्रशासन के दिमाग पर छा जाए । और डर के मारे पांच दस ऐडमिशन उस नेता के फोन आने पर हो जाएं।* और यह अक्सर हो भी जाता है। यह मानिए कि यह सीजन नेताओं के एडमिशन के दम पर पैसे कमाने का सीजन है ।
इस धंधे के चक्कर में अक्सर जो वाकई पीड़ित पक्ष होता है वह मेरा जाता है। जो कि किसी भी स्कूल की छोटी बड़ी कमियों की वजह से वाकई बहुत परेशान होता हैं। वह भी जब अपना वाजिब विरोध दर्ज करवाता है, तो उसको भी एक बार तो उसी नज़र से ही देखा जाता है। अब *सावित्री स्कूल को ही देख लीजिए ... सरकार के हाथ में चले जाने के बाद भी, वहां के प्रशासक आज कल नए एडमिशन से 1100 रुपये की राशि अनिवार्य रूप से विद्यालय विकास शुल्क के नाम से जबरन वसूल रहे है। जबकि सावित्री में अपने बच्चे को पढ़ाने वाले व्यक्ति कोई बहुत विराट धन्ना सेठ तो होगा नहीं। फिर सरकार द्वारा संचालय स्कूल में विकास का पैसा भी अगर अभिभावक ही देंगे तो सरकार क्या फालतू बैठकर कांदा काटेगी? निजी स्कूलों में तो पैसे लेकर एडमिशन करने का रोग पुरातन काल से ही है। जबकि उन्हें भी कुछ प्रतिशत सीटें अनिवार्य रूप से निर्धन परिवारों के लिए आरक्षित रख भरनी होती है। परंतु अब सरकारी स्कूलों में भी इस तरह का अनिवार्य शोषण होना शुरू हो गया है। जो बेहद चिंताजनक है। एक तो वैसे ही इस देश में प्राथमिक शिक्षा का ढांचा तबाही के कगार पर है । उस पर नेताओं और निजी स्कूलों की यह दुकानदारी की आदत अब सरकारी स्कूलों तक में पहुंच कर , जैसे कोढ़ में खुजली का काम कर रही है।*
खैर !!! निजी स्कूल और नेता तो दोनों कभी सुधरने वाले हैं नहीं। लेकिन सरकारी स्कूलों का इस तरह से अभिभावकों से *जबरन विकास शुल्क वसूलना बहुत शर्मनाक है। जिस पर शिक्षा विभाग की नजर जरूर पढ़नी चाहिए । ताकि कड़ी मेहनत कर, सीमित संसाधनों में भी अपने बच्चों को शिक्षा मुहैया करवाने वाले अभिभावकों के साथ न्याय हो सके।*
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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