For News (24x7) : 9829070307
RNI NO : RAJBIL/2013/50688
Visitors - 102263058
Horizon Hind facebook Horizon Hind Twitter Horizon Hind Youtube Horizon Hind Instagram Horizon Hind Linkedin
Breaking News
Ajmer Breaking News: हनुमान जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में पुष्कर क्षेत्र के सनातन धर्मप्रेमियों की ओर से शनिवार को नगर में विराट हिंदू भगवा यात्रा निकाली गयी। |  Ajmer Breaking News: पुष्कर के सुनसान रेतीले धोरों में थार जीप द्वारा बदस्तूर जारी मौत के खेल में शनिवार को मासूम बच्चों सहित करीब 12 लोगों की जान पर बन आई। |  Ajmer Breaking News: पूरे देश सहित अजमेर में भी मनाया गया हनुमान जन्मोत्सव, बड़ी संख्या में मंदिरों में पहुंचे भक्तों ने प्रसाद अर्पित कर मांगी मनोकामनाएं, |  Ajmer Breaking News: अजमेर उत्तर में समाप्त होगी जलभराव की समस्या, योजना पर कार्य जारी- श्री देवनानी |  Ajmer Breaking News: 101 सरस छाछ की थैलियों का वितरण |  Ajmer Breaking News: हनुमान जन्मोत्सव की पूर्व संध्या 11 अप्रैल को बजरंग चोहराह पर शाम 5 बजे 7 बजे तक युवा कांग्रेस द्वारा भव्य व विशाल हनुमान चालीसा और भगवा दुपट्टा वितरण किया गया |  Ajmer Breaking News: हरिभाऊ उपाध्याय नगर में सड़क निर्माण से मिलेगी हजारों लोगों को राहत- श्री देवनानी |  Ajmer Breaking News: महात्मा ज्योतिबा फुले की 198वीं जयंती के अवसर पर अजमेर क्लब चौराहा स्थित ज्योतिबा फूले सर्किल पर सुबह से शुरू हुआ पुष्पांजलि का दौर रात तक रहा जारी,  |  Ajmer Breaking News: प्रदेश में ही तैयार किया जाना चाहिए, गीर गाय का सेक्स सॉर्टेड  सिमन- चौधरी  |  Ajmer Breaking News: जैन समाज के पंच कल्याणक महोत्सव में पुख्ता होंगी प्रशासन व पुलिस की व्यवस्था-श्री  देवनानी | 
madhukarkhin

#मधुकर कहिन: मिलता है करनी का फल , आज नहीं तो निश्चित कल

Post Views 1041

July 11, 2019

कलयुग में एक राजा था । जिसके *बड़े भाई* के हाथ में किसी जमाने में पूरे *आर्यव्रत की धर्म पताका* हुआ करती थी । और पूरा आर्यव्रत उनका बहुत सम्मान करता था । बड़े भाई की मृत्यु के बाद *आर्यव्रत का समस्त कार्यभार राजा के हिस्से में आ गया।* राजा का स्वभाव भी बहुत अच्छा था । इस वजह से उसने खूब ख्याति अर्जित की। लोगों को राजा के सानिध्य में बड़ी सुरक्षा महसूस होती थी। परंतु वह राजा भी आखिर था तो एक इंसान ही। कोई भगवान तो था नहीं । *उस राजा  में भी एक इंसानी ऐब था । बिल्कुल बाकी सब इंसानों की ही तरह।* वह यह कि वह *अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता था और किसी भी खूबसूरत स्त्री को देख आकर्षित हो जाता था।* 
उसी राज्य की व्यवस्था में न्याय का अधिकार एक *ज्ञान गुरु* को था। जिसे *राज्य द्वारा शक्तियां प्राप्त थी कि वह पूरे राज्य भर में किसी भी विवाद की परिस्थिति में दोनों पक्षों को बिठाकर आमने-सामने फैसला करने का अधिकारी था।* जिसमें राज्य परिषद की उसको सहमति प्राप्त थी। इस शक्ति की वजह से वह चाहे तो *राजा को भी दंड दे सकता था।* उस ज्ञान गुरु के पास यह राजकीय दंड व्यवस्था चलाने हेतु *शिष्यों की टोली थी।* जो कि समय-समय पर गुरु जी को नियम और दंड संहिता की विवेचना करने में मदद किया करती थी। *शिष्यों में एक शिष्य ऐसा था जो कि गुरु जी का बहुत प्रिय था। वह अक्सर उस शिष्य से कहा करते थे कि -  1 दिन तुम मेरी जगह लेकर राज्य की दंड व्यवस्था संभालोगे। और मेरे पद पर आसीन होंगे।* *कुछ वर्षों बाद संयोग से उस गुरु जी  ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और आराम से अपनी कुटिया में जाकर बैठ गए। *फिर गुरुजी के त्यागपत्र देने के बाद राज्य की दंड व्यवस्था भी उनके सबसे प्रिय शिष्य को सौंप दी गयी।* 
इसी कारण लोग गुरु जी के पास आकर अक्सर विवादों में हस्तक्षेप कर समाधान ढूंढने आया करते थे। अब **जब शिष्य ही दंडाधिकारी बन गया और गुरु आम लोगों का सलाहकार**तो कोई भी , जब जब भी किसी आपात दंड परिस्थिति में अथवा विवाद में फँसता *तो वह तुरंत गुरु के पास पहुंचता और शिष्य के दरबार में जाने से पहले ही अपने पक्ष में फैसला करने हेतु मुद्राएं देकर व्यवस्था कर लेता।* 
इन सब बातों से बेखबर राजा की उम्र तकरीबन 60 साल हो चुकी थी । परंतु इस *60 साल की उम्र में भी राजा ने अपना रसिया स्वभाव छोड़ा नहीं था ।* एक दिन अपने एक मित्र की पुत्री पर राजा की नजर पड़ी। तो राजा ने उस *पुत्री समान बालिका को राज सम्मान दिलाने के प्रलोभन देकर अपने राज महल पर बुलाया। जहाँ राजा भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाया और उसने उस पुत्री समान बालिका के साथ रमण करने की तीव्र उत्कंठा के चलते उसे छूने का प्रयास किया।* परंतु वह बालिका समय पर समझदारी करते हुए वहां से *भाग खड़ी हुई* । घर आकर बालिका ने अपने माता पिता से सब कुछ कहा और उसके पिता ने अपने इष्ट मित्रों से सलाह की। बदनामी और राजा के डर से पिता घबरा गया और उसने निर्णय किया की इस बात को यहीं समाप्त कर देना उचित होगा। परंतु *राजा को अपने अंतर्मन का भय ही खाये जा रहा था। उसे लगा कि अब उसकी बहुत ज्यादा बदनामी हो जाएगी , तो  राजा ने दरबार लगाकर लोगों के बीच अपनी पुत्री समान उस बालिका को दुश्चरित्र घोषित करने का प्रयास किया।* जो कि उस बालिका और उसके परिजनों से बर्दाश्त नहीं हुआ। यह जानकर वह बालिका अपने पिता सहित सीधा *राज्य के दंडाधिकारी के पास जाकर राजा के खिलाफ शिकायत करने लगे।* जैसे ही शिकायत दर्ज हुई तो पूरे राज्य भर में कोहराम मच गया। हर कोई राजा के इस कुकृत्य के बारे में बात करने लगा। कुछ लोगों ने तो इस मुद्दे को लेकर राजगद्दी तक से राजा को उतारने की बात कह डाली।  *शिकायत दर्ज होते ही दंडाधिकारी ने राजा को अपने दरबार में  पेशी के लिए बुला भेजा।* जब राजा ने देखा कि पानी सर के ऊपर से जा रहा है , तो राजा *आखेट के बहाने नगर छोड़कर कुछ दिन के लिए बाहर चला गया* , और माहौल शांत होने का इंतजार करने लगा । इसी के दौरान राजा को *गुरु जी यानी कि  पूर्व दंडाधिकारी की याद आई जो कि ऐसे वक़्त में राजा की मदद कर सकता था। क्योंकि वर्तमान दण्डाधिकारी गुरु जी का  शिष्य था। राजा ने तुरंत गुरुजी से संपर्क साधा और उसे सब कुछ बताया। गुरुजी ने कहा कि राजन मुझे वैसे तो यकीन नहीं होता कि इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । परंतु फिर भी क्योंकि तुम राजा हो मैं तुम्हारी मदद तभी करूँगा जब तुम मुझे 20 लाख सोने की मुहरें दोगे* ।  राजा ने हाँ भर दी और गुरु जी से  आग्रह किया कि *आपका शिष्य जो वर्तमान में  दंडाधिकारी के पद पर विराजमान है। उसने मुझ पर यह आरोप लगने के बाद अपने दरबार में बुलावा भेजा है। आप कृपया उससे बात कर ले,  कि वह मुझे इस मुसीबत से निकाल दे और फिलहाल मुझे दोष मुक्त कर दे मैं आपकी 20 लाख मुद्राएं आप तक पहुंचा दूंगा । जिस पर पूर्व गुरुजी ने अपने शिष्य को संपर्क में लिया। और उससे राजा की प्राण रक्षा करने की बात कही । नगर दंडाधिकारी तुरंत अपने गुरु की इस बात को मान गया।* परंतु उसने कहा कि मैं इतनी जल्दी राजा को इस मामले में राहत नहीं दे सकता। जनता विद्रोह पर उतर आएगी। *फिर भी बात तय हो गयी की थोड़ी बहुत नाटक नौटंकी करके राजा को इस मुसीबत से निकालना है । बस फिर क्या था ? राजा इतना घृणित कृत्य करके भी इस गुरु चेले की जोड़ी की वजह से उस बालिका के साथ किए हुए दुर्व्यवहार के आरोप से फिलहाल मुक्त हो गया ।* 
 *माँ कसम यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है ।और इसका किसी भी जीवित या मृत आत्मा से कोई लेना देना नहीं है ।* कहानी मात्र यही दर्शाती है , कि *कलयुग में जिसकी चलती है उसकी माफ हर गलती है ।* चाहे वह कितना भी गलत काम कर ले, *यह सड़ा हुआ सिस्टम धन ,पहुंच और प्रलोभन नामक तीन हथियारों से कितनी भी मुखर सच की आवाज को पूरे दम से कुचल देता है। इस घटिया सिस्टम के बल पर चाहे कोई कितना भी जीत कर इठला ले । परंतु ईश्वर के दरबार में यह चालाकी भी घोर पाप है । जिस पाप का दंड राजा को भुगतना ही होगा।* 

 *राजा के गुरु स्वामी आशाराम ने कहा था कि -* 

 *मिलता है करनी का फल ,आज नहीं तो निश्चित कल ...*

जय श्री कृष्ण


© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved