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#मधुकर कहिन: चिकित्सकों के कंधे पर बंदूक रख बंगाल को बदनाम करने से बेहतर होगा

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June 14, 2019

2120 #मधुकर कहिन 
चिकित्सकों के कंधे पर बंदूक रख बंगाल को बदनाम करने से बेहतर होगा , चिकित्सकों के बचाव हेतु सख्त कानून लाये केंद्र सरकार।

Horizon Hind | हिंदी न्यूज़ 

यह  जानते हुए की चिकित्सक एक इंसान ही है फिर भी , एक डॉक्टर से इतनी उम्मीद होती है मरीज और उसके परिजनों के मन में ,कि बस पूछो मत । जैसे वही है जो मरीज़ की मौत और ज़िंदगी के बीच खड़ा है। बात सही भी है । यदि डॉक्टर न होते तो लाखों-करोड़ों लोग पता नहीं कितनी जानलेवा बीमारियों के शिकार होकर जान से हाथ धो बैठें। जब भी कोई  मौत से जूझते हुए मरीज को अस्पताल लेकर पहुंचता है । तो बड़ी उम्मीद होती है कि डॉक्टर साहब आएंगे और सब ठीक कर देंगे। फिर वह  हंसी खुशी वापस अपने  घर जाएगा। सब ठीक हो जाता है तो अक्सर लोग डॉक्टरों के पांव छूते हुए दिखाई देते हैं। जीवन भर उस चिकित्सक को अपने परिवार का हिस्सा मानकर अपने निजी आयोजनों में आमंत्रित करते हैं । पैसे के अलावा एक सफल डॉक्टर के पास यह रिश्ते ही होते हैं ,जो उसकी पूंजी होते हैं । परंतु उसके विपरीत यदि किसी मरीज की इलाज के दौरान मृत्यु हो जाती है । तो वही परिजन उस चिकित्सक को यमराज का मुखौटा पहनाकर क्यूँ बदनाम करना शुरू कर देता है ? यह बात समझ के बाहर है। ऐसा नहीं होना चाहिए । 

जहां तक जो बंगाल में जो हो रहा है वह एक चिकित्सक की पिटाई से उपजा विवाद नहीं है। अपितु इस विवाद की आड़ में कुछ और भी है । जो प्रत्यक्ष दिखाई नहीं दे रहा है।कम से कम चिकित्सक जैसे बुद्धिजीवी वर्ग को इस पर विचार ज़रूर करना चाहिए। घटनाक्रम जो है वह तो दिख ही रहा है। लेकिन कुछ संभावनाओं से मूँह नहीं मोड़ा जा सकता।आइये घटनाक्रम ज़रा गौर से देखतें हैं कैसे ?
2 दिन पहले कोलकाता के एनआरएस सरकारी चिकित्सालय में मोहम्मद शाहिद को उसके परिजनों ने भर्ती कराया । चिकित्सकों ने पूरा प्रयास करके मोहम्मद शाहिद की जान बचाना की कोशिश भी की । परंतु अफसोस ऐसा हो ना सका । गुस्से में आकर मोहम्मद शाहिद के परिवार की भीड़ ने अस्पताल में जमा होकर उस चिकित्सक के साथ बदसलूकी शुरू कर दी। प्रतिरोध करने पर उस चिकित्सक का सर फोड़ दिया । यह बात आग की तरह फैल गई। और कलकत्ता भर के मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर हड़ताल पर बैठ गए। हड़ताल शुरू हुई और धीरे-धीरे 5 करोड़ की आबादी के कोलकाता में चिकित्सकीय अव्यवस्था फैल गई । और चिकित्सा सेवाएं बाधित होने लगी। जिसको देखकर स्वाभाविक है एक मुख्यमंत्री को चिंता होगी। जिस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने समझाइश के मंतव्य से अपने प्रयास शुरू किए। संभव है कि फिर किसी ने मैडम के कान में फूंक भर दी होगी की - मैडम मृतक तो मुस्लिम समुदाय से है।जो अपनी पार्टी का बहुत अच्छा वोटर होता है। अपन को चिकित्सक वर्ग से थोड़ी सख्ती का रुख दिखाना चाहिए। यह सोचकर शायद मुख्यमंत्री महोदया के अंदर का राजनेता जाग गया और अपने वोटर को खुश करने के लिए ममता ने आदतन ज़रूरत से ज्यादा सख्त बयान देना शुरू कर दिया।
अब भाई !!! राजनेता सिर्फ ममता बनर्जी के अंदर थोड़ी ना बैठा है। राजनेता देश के उन सांसदों के अंदर भी बैठा है जो अभी ताजा ताजा भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत कर बंगाल आए हैं। जब अपने फन में माहिर इन लोगों के अंदर का नेता जाग गया तो उन्होंने इस बात को और हवा दे दी। दिल्ली में बैठे अपने शीर्ष नेतृत्व को खबर पहुंचा दी की मुद्दा गरम है भैया !!! हथोड़ा मार दो । दिल्ली में पार्टी के भीतर बैठे चिकित्सक नेता गाड़ी लेकर पहुंच गए AIIMS।  वहां जाकर अपने लोगों से बात करके इसे राष्ट्रीय मुद्दा  बनाने का प्रयास किया । जिस के फलस्वरूप यह आग पूरे देश के डॉक्टरों के आंदोलन के रूप में सामने आ रही है । 
जिस तरह का आंदोलन चल रहा है यह आंदोलन पीड़ित डॉक्टर को न्याय दिलाने तक तो वाजिब है।और ज़रूरी भी है। परंतु आंदोलन को भाजपा के नेताओं द्वारा चिकित्सकों के कंधे पर रख कर देशव्यापी बनाने से इसमें राजनीति की बूआने लगी है। पिछले कुछ दिनों में आये बयानों से राजनेताओं की मानसिकता भी सामने आ गयी है । जिसमें भाजपा के कई नेता कह चुके हैं कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए। कोई पूछे उनसे की क्यों भाई !!! किस लिए ? 
 माना कि एक चिकित्सक के साथ बहुत गलत हुआ है। आखिर चिकित्सक भी तो एक इंसान ही है भाई !!!  कोई भगवान नहीं है ? उस से उम्मीद एक हद तक ही लगाई जानी चाहिए। कोई जान बूझ कर तो अपने मरीज़ की हत्या नहीं करेगा । मैं व्यक्तिगत तौर से चिकित्सकों के इस आंदोलन के पक्ष में हूँ। परंतु इस आंदोलन का जिस तरह से नेताओं द्वारा  देश व्यापी राजनैतिक इस्तेमाल किया जा रहा है । वह अनुचित है।
 बंगाल ऐसा प्रदेश नहीं है। जहां बुद्धिजीवियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार हो जाये और बात बंगाल में न संभल पाए। बंगाल की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा खुद बुद्धिजीवी वर्ग से है। आप कोलकाता जाएंगे तो संभव है आपको ऐसे लोग भी मिल जाए जो टैक्सी चला रहे हैं ,और जिनकी शैक्षणिक योग्यता पीएचडी हो। यह बिहार या यूपी नहीं है जहां बात बिगड़े और संभल न पाए। बंगाल का ऐसा माहौल बिगाड़ना कहीं न कहीं सत्ता हथियाने की इच्छा रखने वाले तत्वों के हस्तक्षेप से ही संभव है। जो कि वहाँ बैठकर आग में घी डाल रहें हैं। 

कभी सुना है कि बंगाल में दुष्कर्म हो गया या फिर बलात्कार हुआ हो दिल्ली की तरह । कभी नहीं सुना होगा क्योंकि वहां आज़ादी और उदारता का माहौल है। जिसमें कोलकाता तो वो बिंदास जगह है जहां पर आप यदि आप किसी बार में चले जाएंगे , तो आपको सम्भ्रांत महिलाओं का झुंड उसी बार में पुरुषों की बराबरी में बैठा हुआ व्हिस्की की चुस्कियां लेता हुआ दिखाई देगा। कोई पान की दुकान जिस पर खड़ी होकर महिलाएं धूम्रपान करती नजर आए तो भी कोई बड़ी बात नहीं है । यहीं अगर राजस्थान में होगा तो लोग जेब से मोबाइल निकाल कर वीडियो बनाने लगेंगे। जबकि बंगाल में व्याप्त उदार दृष्टिकोण से यह सब आम बात है । जिससे लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। इस तरह के उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि बंगाल पाश्चात्य सोच का पढ़ा-लिखा और शांत प्रदेश है। फिर भी ऐसे प्रदेश में अचानक ऐसा बदलाव किस कारण से  दिखाई दे रहा है? ज़रा सोचिए !!! ऐसा उदार प्रदेश का बुद्धिजीवी वर्ग एकदम से ऐसा अराजक क्यूँ हो गया है ? वह भी इतना की एक अस्पताल में मोहमद शाहिद नामक इंसान की इलाज के दौरान मौत हो जाने पर भीड़ एक डॉक्टर को बुरी तरह से पीटती है । और आंदोलन राष्ट्रव्यापी रूप ले लेता है। मेरे ख्याल में देश के समझदार नागरिक और चिकित्सक वर्ग को भी यह समझने में देर नहीं लगनी चाहिए कि ये क्या है ?
जिस तरह की तस्वीर खींची या खिंचवाई जा रही है उसके पीछे काम करने वाले लोग संभव है कोई और उल्लू सीधा कर रहे है। यह सब सत्ता हथियाने हेतु गंदा खेल है जो चिकित्सकों की रक्षा और स्वाभिमान बनाये रखने की आड़ में, चिकित्सकों  के कंधे पर बंदूक रखकर केंद्र द्वारा खेला जा रहा है। ताकि आने वाले समय में बंगाल को बदनाम कर वहां की सत्ता हथयाई जा सके। यह सब खेल तमाशा करने के बजाए यदि केंद्र सरकार चिकित्सकों के हित में कोई मजबूत कानून लाये तो बेहतर होगा। जिस से की चिकित्सक वर्ग को ऐसे माहौल में पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए।


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