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June 5, 2019
2116 # मधुकर कहिन
राजस्थान में हार की जिम्मेदारी को लेकर आखिर अशोक गहलोत के पीछे क्यूँ पड़ा है हाईकमान ?
क्या राष्ट्रवाद की लहर के चलते खुद चुनाव नहीं हारे राहुल गांधी ?
नरेश राघानी
गत लोकसभा चुनाव में सारे देश में कांग्रेस की करारी हार होने के बाद , कांग्रेस संगठन में ऊपर से लेकर नीचे तक जिसे देखो जिम्मेदारी जिम्मेदारी खेलता हुआ नजर आ रहा है। विषेष तौर से राजस्थान में यह हार दरअसल संगठन की कमज़ोरी और प्रदेश कांग्रेस के ओवर कॉन्फिडेंस का नतीजा है। एक तरफ यह ओवर कॉन्फिडेंस उस पर , राष्ट्रवाद की लहर !!! यह सब भाजपा के लिए सोने पर सुहागा जैसा साबित हुआ है।
हालांकि कांग्रेस पूरे देश में निपट सी गयी है। लेकिन राजस्थान कांग्रेस की हार को लेकर कांग्रेस के भीतर जरूरत से ज्यादा ही तमाशा चल रहा है। जो कि कांग्रेस के लिए घातक साबित होने जा रहा है। आपको इस जरूरत से ज्यादा तमाशे का कारण बताए क्या है ? इसका सबसे बड़ा कारण है सचिन पायलट और कांग्रेस की कुर्बानी की कीमत पर भी उनकी मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा।
5 साल पहले जब पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, तब से यह देखा जा रहा है कि पायलट समर्थकों ने उन्हें जबरदस्ती राजस्थान का होने वाला मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। जिसके चलते पायलट ने भी अपनी बिसात मुख्यमंत्री बनने के हिसाब से ही बिछाना शुरू कर दी थी। जिसका संगठन पर दुष्प्रभाव पड़ा। जिसकी वजह से पुराने और अनुभवी लोगों कि कांग्रेस जो कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की छत्रछाया में चला करती थी, बिल्कुल उठा कर किनारे लगा दी गयी। इस अनुभवी पीढ़ी ने पायलट काल में पूरे प्रदेश भर के संगठन में सबसे ज्यादा अपमान और परेशानी का सामना किया है। बावजूद इसके इस पीढ़ी को समेट कर कांग्रेस के पक्ष में खड़ा रखने में अशोक गहलोत ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका पिछले सालों में निभाई है।वहीं पायलट द्वारा संगठन में चाहे अपने गुट को ताक़त देकर सही काम किया गया था। इस अजब संयोग की वजह से हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस राजस्थान प्रदेश में जीत दर्ज करवा पाई है। परंतु इसका सेहरा पायलट समर्थकों ने गहलोत को दरकिनार करने की असफल कोशिश करते हुए केवल सचिन पायलट के सर पर बांध दिया। जिससे पायलट की उम्मीदों को पर लग गए। जबकि यथार्थ का धरातल यह है कि यदि अशोक गहलोत की जबरदस्त सक्रिय भूमिका प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान नहीं होती, तो शायद राजस्थान में सरकार आ ही नहीं सकती थी। फिर भी पायलट समर्थकों ने शोर मचा मचा कर आलाकमान की आंखों पर पट्टी बांध दी। लेकिन जैसे ही अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री घोषित किया गया, तो पायलट समर्थकों ने राजस्थान में अराजकता की पराकाष्ठा लांघ दी। फिर सचिन को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। तब ही कांग्रेस आलाकमान यदि प्रदेश अध्यक्ष किसी और को बना देती तो अब तक शायद कांग्रेस फिर मैदान में ढंग से उतर जाती। और शायद लोकसभा में इतनी बुरी हार नहीं होती। लेकिन नहीं साहब !!! राहुल की आंखों के तारे को खुश रखने के लिए कांग्रेस की ही आंखें ही फोड़ दी गईं । और दोनों पदों पर पायलट राहुल कृपा से बने रहे। पायलट ने न कोई बड़ा बदलाव किया, न नए लोगों को जोड़ा। बस घूम घूम कर पार्टी की स्थिति छोड़ कर अपनी स्थिति मजबूत करने में लग गए। ताकि लोकसभा के नतीजे आने के बाद जिम्मेदारी गहलोत पर डाल कर खुद आलाकमान की नज़र में चमक जाएं।
अपने तो यह समझ के बाहर है कि आखिर एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा क्या इतनी महत्वपूर्ण हो गई है कि पूरी पार्टी को एक प्रदेश में दाव पर लगा दिया जाए ? राजस्थान में भी बिल्कुल वैसा ही माहौल पायलट समर्थकों द्वारा बनाने की नाकाम कोशिश की जा रही है , जैसी कि राहुल गांधी का दिल्ली में प्रधानमंत्री बनने हेतु की गई थी। जिसका हश्र भी बिल्कुल वही होने वाला है जैसा केंद्र में हुआ है। राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाल हठ के पीछे कांग्रेस की जो आज देश भर में हालत हो गयी है बिल्कुल वैसी ही हालत राजस्थान में पायलट के हठ की वजह से इस लोकसभा चुनाव में हुई है। लेकिन कोई भी सच खुलकर बोलना नहीं चाहता। क्योंकि जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ही सच बोलने पर आलाकमान द्वारा जीभ पर हथौड़ी मार दी जा रही है । तो कौन सच बोलने की हिम्मत करे ? सीना तानकर वैभव गहलोत की जीत की गारंटी देने वाले सचिन पायलट पूरे राजस्थान की न सही कम से कम वैभव की हार की ज़िम्मेदारी तो ले ही सकते हैं। इसमें क्या तकलीफ है ? परंतु अब यह वाकई गंभीर जांच का विषय है कि यह गारंटी उन्होंने सच्चे मन से दी भी थी या नहीं ? चलिये जोधपुर की न सही कम से कम अजमेर , टोंक, दौसा जैसी पायलट प्रेमियों से भरी पड़ी सीटों की जांच तो होना बनता ही है। जहां प्रदेश अध्यक्ष की जड़ें सबसे गहरी नज़र आती हैं।
ख़ैर !!! राहुल गांधी को भी अब बजाए इन फालतू के प्रपंचों के न सिर्फ राजस्थान बल्कि देश भर में , कांग्रेस संगठन के सभी प्रदेश अध्यक्षों की छुट्टी कर देनी चाहिए ताकि नए सिरे से काम शुरू किया जा सके। वर्ना ऐसे ठीकरा फोड़ो प्रतियोगिता आयोजित करने से तो बाकी बचा सब कुछ भी लुट जाएगा। बात अभी संभल जाए तो बढ़िया है नही तो जय श्री कृष्णा तो है ही।
जय श्री कृष्णा
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