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October 31, 2018
*#मधुकर कहिन*
*अपनी ही पार्टी के विरुद्ध काम करने वाले स्वार्थी राजनेताओं से भला क्या उम्मीद की जाए ?*
नरेश राघानी
कल परिवार के साथ पुरानी मंडी गया। घरवालों की इच्छा थी कि आज घर पर खाना खाने की बजाए पुरानी मंडी के चाट बाजार में चल कर गोलगप्पे और चाट खायेंगें। सो शाम को काम खत्म करके वही पहुंच गए। चाट के ठेले पर खड़ा होकर टिकिया चाट का आनंद लेने लगे । अचानक मन में आया कि देखें लोग क्या सोचते हैं शहर की राजनीति और नेताओं के विषय में । सो पूछ लिया ठेले वाले से *की भाई किसको वोट देते आये हो आज तक ? और कौन जीत रहा है चुनाव चुनाव इस बार ?* इस पर उसने जो उत्तर दिया वह दिल दहलाने वाला था। वह बोला *साहेब !!! मैं कौन होता हूँ यह निर्णय करने वाला की कौन किस्से बेहतर है ? कमबख़्त मुझे तो चाहे कोई भी राजा बन जाये यहां पर गोलगप्पे और चाट ही बेचनी है। क्या फर्क पड़ेगा मुझे कांग्रेस जीते या बीजेपी ? कोई बचाने नहीं आता जब अतिक्रमण हटाओ दस्ता आता है। मुझे जब यहां से हटा देता है उस दिन अपने बच्चों के सामने शर्मिंदा होता हूँ । यह कहकर कि आज पैसे कम आये। बीवी बीमार रहती है सरकारी अस्पतालों में भी मुफ्त दवाएं या तो मिलती नहीं, या फिर इतनी बड़ी लाइन होती है कि खड़े खड़े आधा दिन बीत जाता है। उस आधे दिन की वजह से फिर काम पर न जाने की वजह से उस दिन पैसे कम आते है* । अभी मैं उस से बात कर ही रहा था कि एक और साहब मेरी ही तरह चाट का आनंद लेते हुए बोले - भाई साहब !!! हाल तो वाकई ऐसा ही है हर तरफ। *फिर अजमेरवासी क्यूँ वोट दें अजमेर में भाजपा को जिसके दो दो मंत्री शहर में होते हुए भी 6 दिन बाद पानी आता है। या फिर क्यूँ वोट दें कांग्रेस को ? जिसके कारुकर्ता खुद अपने ही नेताओं के फैसलों पर उंगलियाँ उठाते है और आपस में ही लड़ते झगड़ते रहते हैं। कांग्रेस आलाकमान किसी को भी भेज दे अजमेर में चुनाव लड़ने यहाँ के कांग्रेसियों को बस किसी न किसी बहाने उसका विरोध करने की आदत पड़ गयी है। जिनसे अपना घर नहीं संभालता वो आम आदमी का क्या भला कर पाएंगे ? देखिए न !!! अजमेर की लगभग हर सीट पर कीतने लोग कांग्रेस में टिकट मांग रहे हैं , मिलेगा तो एक ही को । उसके बाद बाकी सारे के सारे बजाए काम करने के उस बेचारे को हराने में लग जाएंगे। ऐसे स्वार्थी और घटिया सोच वाले नेताओं से किस बात की उम्मीद करें ?* हर चुनाव में केवल चुनाव से कुछ रोज पहले आकर शक्ल दिखाने वाले यह नेता गण , चुनाव हेतु हुए मतदान से एक रात पहले आते हैं। किसी को दारू का प्रलोभन देंगे तो किसी को धोती का , किसी को साड़ी का तो किसी को पैसे का । इस तरह से दंद फंद कर के चुनाव जीतने वाले लोगों के हाथ में हम हमारा भविष्य सौप रहे हैं । यही अपने आप में एक गलत फैसला है । परंतु *हमारे हाथ में है भी क्या ? सही और गलत में चुनना फिर भी आसान है । मगर दो गलत लोगों में से कम गलत को चुनना ज्यादा मुश्किल काम है । नोटा दबाकर भी यदि कुछ होता है तो फिर जो लोग आएंगे । उसमें कौनसे सही लोग आ जाएंगे ?इससे तो बेहतर है कि हम वोट देने ही न जाएं* ।
सुनकर बहुत आघात लगा परंतु जो उन महाशय ने कहा वह सब कुछ सही भी तो है I सब सुनकर मैं सोच में पड़ गया। और यह सोच कर बहुत दुखः हुआ कि शहर का आम आदमी कितना निराश है इस सिस्टम से। राजनैतिक पार्टियां सब्ज़बाग़ दिखा कर राज में आती हैं । और फिर सबकुछ भूल जाती हैं। यह शिकायत तो चलो युगों पुरानी है । लगभग सभी के मुंह से कई बार सुनी है । परंतु *आम आदमी का इस विषय पर भी जनप्रतिनिधियों के चाल चरित्र का आकलन करना - की खुद अपनी पार्टी के आलाकमान और नेताओं के फैसलों के खिलाफ जाकर अपनी ही पार्टी के विरुद्ध काम करने वाले राजनीतिक लोगों से भला क्या उम्मीद की जाए ? यह मैंने ज़िन्दगी में पहली बार सुना है* । यह दर्शाता है की अजमेर की जनता सबकुछ देख समझ रही है । यह विषय है *राजनैतिक दलों के लिए गहन विचार का । केवल जीत के घोड़े पर बैठने की ललक में अपना चरित्र खो बैठने वालों को अब आम आदमी स्वीकार नहीं करेगा।आने वाले समय में राज में बैठे को काम करना पड़ेगा और विपक्ष में बैठे को गरिमाओं का ध्यान रखना होगा और यह समझना होगा कि उनकी हरकतों से आम आदमी उनके चाल चरित्र का अंदाज़ा लगा रही है* ।
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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