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October 25, 2018
एक है *डॉ लाल थदानी* । आज सुबह ही अनिता भदेल के साथ साथ आचार संहिता का उल्लंघन करने हेतु थमाए गए कारण बताओ नोटिस को लेकर लगभग हर अखबार की सुर्खियां बने हुए हैं। आपको बता दें डॉ लाल *थदानी स्वास्थ्य महकमे के बहुत पुराने और वरिष्ठ अधिकारी हैं। यह बात और है कि स्वास्थ्य विभाग उनको वरिष्ठ मानने से लगातार बार बार हर बार इनकार करता रहा है ।* और *आये दिन थदानी के साथ कोई न कोई ज्यादती करता रहता है* । जिसके पीछे लाल थदानी की सामाजिक सक्रियता सबसे बड़ा कारण है। गौरतलब बात यह है कि *लाल थदानी अजमेर उत्तर से विधायक व राजस्थान सरकार में रहे मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी के बहुत करीबी लोगों में से गिने जाते थे । जिनको मोटवानी ने राजस्थान सिंधी साहित्य अकादमी का अध्यक्ष भी बनाया था* ।
सिंधी समाज में आज तक यदि किसी ने सामाजिक क्षेत्र में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखी है, तो वह है डॉ लाल थदानी। *आप लोग यह सोच रहे होंगे कि मैं आपको डॉक्टर लाल थदानी का बायोडाटा बताने क्यों बैठ गया हूँ ? इसके पीछे एक सरकारी अधिकारी के अधिकारों के हनन और उसके तिरस्कार की ऐसी दर्दनाक कहानी है जिसे सब को मालूम होना अब बहुत ज़रूरी लग रहा है* । अपने अस्तित्व की लड़ाई विभाग के उच्चाधिकारियों की गलतियों के खिलाफ न्यायालय तक जारी रखे हुए डॉ लाल को सरकार न तो डॉ लाल की वरीयता अनुसार सम्मानजनक ज़िम्मेदारी देने को तैयार है , और न ही डॉ लाल की बात विभागीय स्तर पर सुनने के लिए। ऐसे में डॉ लाल के पास *न्यायालय की शरण में* जाने और *सिंधी समाज के प्रभावशाली लोगों से मदद मांगने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बच गया है* । वही डॉ लाल ने पिछले दिनों किया भी। जिस पर किस्मत खराब होने पर *ऊँट पर बैठे को कुत्ता काट लेने वाली कहावत सच होती दिखाई दे रही है* । डॉ लाल अपने समाज के लोगों के पास अपनी व्यथा कहने गए थे और वहां शिकार हो गए राजनीति के। सुनाई दिया है कि विभागीय स्तर पर वर्षों से उनके धुर विरोधी और स्वास्थ्य महकमे के एक उच्च अधिकारी वी के माथुर ने खुद ही किसी से कह कर शिकायत डलवाई है । जिस पर डॉ लाल को आचार संहिता के उलंघन का नोटीस थमा दिया गया है। अब बताइए यह भी कोई बात हुई भला यदि आदमी अपने ही समाज के लोगों के पास जाकर अपने लिए मदद ना मांगे तो कहां जाए ? अब कुछ कह नही सकते लेकिन सुनने में तो यह भी आया है कि डॉ लाल के प्रति इतना अटूट प्रेम श्री वी के माथुर का महज़ इस बात पर है कि स्व किशन मोटवानी के कार्यकाल में उन्ही की अनुशंसा से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डीबी गुप्ता द्वारा डॉ लाल को कुष्ठ रोग निवारण हेतु बनाई गई सरकारी योजना का काम वी के माथुर से छीन कर सौंप दिया गया था , और माथुर का स्थांतरण कहीं दूर दराज जगह पर कर दिया था। इसी बात की गांठ मन में बांधे माथुर के सालों से डॉ लाल के खिलाफ अपने प्रभाव का उपयोग कर ना ना प्रकार की अनुशासनात्मक कार्यवाहियाँ करते आ रहे हैं। अब भाई जितने मुंह उतनी बातें किस-किस का विश्वास करें किस-किस का नहीं लेकिन एक बात तो तय है कि जिस तरह से स्वास्थ्य महकमा और उसके जुड़े हुए सरकारी अधिकारी डॉक्टर लाल के पीछे पड़े हैं उससे साफ दिखाई देता है कि सरकार में काम कम और आपसी रंजिशें ज्यादा निकाली जा रही हैं ।
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