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अजमेर न्यूज़: सोमनाथ ज्योर्तिलिंग मंदिर से पूर्ण होती है हर मनोकामना

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July 15, 2017

सोमनाथ ज्योर्तिलिंग मंदिर से पूर्ण होती है हर मनोकामना 

सावन के पवित्र महीने की शरुआत हो चुकी है। हॉरइजन हिंद न्यूज आपको भारत भूमि के उन 12 ज्योर्तिलिंगों के बारे में बताने जा रहा है। जहां से लोगों को सुख शान्ति और समद्धि का वरदान मिलता है। परिवार और जीवन से कलह दूर होते है। भक्त का जीवन वैभवशाली बनता है और समाज में उसे सम्मान प्राप्त होता है। आइए आपको इस कड़ी में पहले ज्योतिर्लिंग यानि सोमनाथ ज्योर्तिलिंग के महत्व को बताते हैं। 
शिव पुराण के अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। 
पुराणो में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना से सम्बंधित कथा कहती है कि जब प्रजापति दक्ष ने अपनी सभी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। पत्नी के रूप में दक्ष कन्याओं को प्राप्त कर चन्द्रमा बहुत शोभित हुए और दक्षकन्याएँ भी अपने स्वामी के रूप में चन्द्रमा को प्राप्त कर शोभायमान हो उठी। चन्द्रमा की उन सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय थी, जिसको वे विशेष आदर तथा प्रेम करते थे। उनका इतना प्रेम अन्य पत्नियों से नहीं था। चन्द्रमा की अपनी तरफ उदासीनता और उपेक्षा का देखकर रोहिणी के अलावा बाकी दक्ष पुत्रियां बहुत दुखी हुई।  वे सभी अपने पिता दक्ष की शरण में गई और उनसे अपने कष्टों का वर्णन किया।

अपनी पुत्रियों की व्यथा और चन्द्रमा के दुर्व्यवहार को सुनकर दक्ष भी बड़े दु:खी हुए। उन्होंने चन्द्रमा से भेंट की और शान्तिपूर्वक कहा- ‘कलानिधे! तुमने निर्मल व पवित्र कुल में जन्म लिया है, फिर भी तुम अपनी पत्नियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हो। तुम्हारे आश्रय में रहने वाली जितनी भी स्त्रियाँ हैं, उनके प्रति तुम्हारे मन में सौतेला व्यवहार क्यों है? तुम किसी को अधिक प्यार करते हो और किसी को कम प्यार देते हो, ऐसा क्यों करते हो? ऐसा दुर्व्यवहार तुम्हें नहीं करना चाहिए। प्रजापति दक्ष ने अपने दामाद चन्द्रमा को प्रेमपूर्वक समझाया और ऐसा सोचा कि चन्द्रमा में सुधार हो जाएगा। उसके बाद प्रजापति दक्ष वापस चले गये।

चन्द्रमा ने अपने ससुर प्रजापति दक्ष की बात नहीं मानी। दुबारा समाचार प्राप्त कर प्रजापति दक्ष बड़े दु:खी हुए। वे पुन: चन्द्रमा के पास आए और उन्हें फिर से समझाया। चन्द्रमा ने फिर से बात नहीं मानी तो प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय रोग का श्राप दिया। 
दक्ष द्वारा श्राप देने के साथ ही चन्द्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गये। उनके क्षीण होते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। सभी देवगण तथा ऋषिगण भी चिंतित हो गये। परेशान चन्द्रमा ने अपनी अस्वस्थता तथा उसके कारणों की सूचना इन्द्र आदि देवताओं तथा ऋषियों को दी। उसके बाद उनकी सहायता के लिए इन्द्र देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण ब्रह्माजी की शरण में गये। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि जो घटना हो गई है, उसे तो भुगतना ही है, क्योंकि दक्ष के निश्चय को पलटा नहीं जा सकता। उसके बाद ब्रह्माजी ने उन देवताओं को एक उत्तम उपाय बताया।

ब्रह्माजी ने कहा कि चन्द्रमा देवताओं के साथ कल्याणकारक शुभ क्षेत्र में चले जाए। वहाँ पर विधिपूर्वक शुभ मृत्युंजय-मंत्र का अनुष्ठान करते हुए श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके प्रतिदिन कठिन तपस्या करें। इनकी आराधना और तपस्या से जब भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो जाएँगे, तो वे इन्हें क्षय रोग से मुक्त कर देगें। पितामह ब्रह्माजी की आज्ञा को मानकर देवताओं और ऋषियों के संरक्षण में चन्द्रमा देवमण्डल सहित प्रभास क्षेत्र में पहुँच गये।

वहाँ चन्द्रदेव ने मृत्युंजय भगवान की अर्चना-वन्दना और अनुष्ठान प्रारम्भ किया। वे मृत्युंजय-मंत्र का जप तथा भगवान शिव की उपासना में तल्लीन हो गये। ब्रह्मा की ही आज्ञा के अनुसार चन्द्रमा ने छ: महीने तक निरन्तर तपस्या की और वृषभ ध्वज का पूजन किया। दस करोड़ मृत्यंजय-मंत्र का जप तथा
 ध्यान करते हुए चन्द्रमा स्थिरचित्त से वहाँ निरन्तर खड़े रहे। उनकी उत्कट तपस्या से भक्तवत्सल भगवान शंकर प्रसन्न हो गये। उन्होंने चन्द्रमा से कहा- ‘चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो। तुम जिसके लिए यह कठोर तप कर रहे हो, उस अपनी अभिलाषा को बताओ। मै तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हें उत्तम वर प्रदान करूँगा।’ चन्द्रमा ने प्रार्थना करते हुए विनयपूर्वक कहा- ‘देवेश्वर! आप मेरे सब अपराधों को क्षमा करें और मेरे शरीर के इस क्षयरोग को दूर कर दें।’

भगवान शिव ने कहा‘चन्द्रदेव! तुम्हारी कला प्रतिदिन एक पक्ष में क्षीण हुआ करेगी, जबकि दूसरे पक्ष में प्रतिदिन वह निरन्तर बढ़ती रहेगी। इस प्रकार तुम स्वस्थ और लोक-सम्मान के योग्य हो जाओगे। भगवान शिव का कृपा-प्रसाद प्राप्त कर चन्द्रदेव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने भक्तिभावपूर्वक शंकर की स्तुति की। ऐसी स्थिति में निराकार शिव उनकी दृढ़ भक्ति को देखकर साकार लिंग रूप में प्रकट हुए और संसार में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए।


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