For News (24x7) : 9829070307
RNI NO : RAJBIL/2013/50688
Visitors - 108978702
Horizon Hind facebook Horizon Hind Twitter Horizon Hind Youtube Horizon Hind Instagram Horizon Hind Linkedin
Breaking News
Ajmer Breaking News: स्वास्तिक नगर में जलप्रलय से प्रभावित परिवारों को राहत देने में सरकार व प्रशासन कर रहा सिर्फ औपचारिकता |  Ajmer Breaking News: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एडीए ने सेवन वंडर्स को युद्ध स्तर पर तोड़ने की कार्रवाई की शुरू |  Ajmer Breaking News: एयरफोर्स में कार्यरत अजमेर की 26 वर्षीय पुलकित टांक की गोली लगने से हुई मृत्यु, एयरफोर्स ने ससम्मान  तिरंगे ध्वज के साथ गार्ड ऑफ ऑनर देकरदिवंगत पुलकित को दी अंतिम विदाई |  Ajmer Breaking News: संघ शताब्दी वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सभी शाखाओं में निकलेगा दिव्य पथ संचलन |  Ajmer Breaking News: राजगढ़ धाम पर धूमधाम से भरेगा छठ मेला, प्रशासनिक बैठक मे तहसीलदार नसीराबाद कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त |  Ajmer Breaking News: अजमेर शरीफ़ दरगाह से मुल्क के नए नायब सदर सीपी राधाकृष्णन को बधाई |  Ajmer Breaking News: कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की जयंती पर  संगोष्ठी का हुआ आयोजन, कर्नल बैंसला का संघर्ष और विचार समाज के लिए सदैव रहेंगे प्रेरणा स्रोत- श्री भड़ाना  |  Ajmer Breaking News: विधानसभा अध्यक्ष देवनानी बोराज तालाब जलभराव पीड़ितों को बांटेंगे राहत राशि |  Ajmer Breaking News: स्वदेशी अपनाकर 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाएं कैडेट- देवनानी, रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ वार्षिक प्रशिक्षण शिविर का समापन |  Ajmer Breaking News: नैनो उर्वरक उपयोग महाअभियान के अंतर्गत फसल विचार गोष्ठी का आयोजन , प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग करना होगा- भागीरथ चौधरी  | 

राष्ट्रीय न्यूज़: सरकारी बैंकिंग : ग्राहक का दृष्टिकोण, पूछा ही नहीं उस ने कभी हाल हमारा,बस यूँ ही गुज़र जाता है हर साल हमारा !

Post Views 31

September 5, 2025

बैंक कर्मचारियों की अनेक समस्याएं जिनमें थर्ड पार्टी प्रोडक्ट्स थोपना,अनरियलिस्टिक टारगेट और स्टाफ का असंतुलित वितरण हैं, जेनुइन हैं लेकिन ग्राहक के पर्सपेक्टिव पर कहीं भी संवेदनशीलता नजर नहीं आती।

सरकारी बैंकिंग : ग्राहक का दृष्टिकोण, पूछा ही नहीं उस ने कभी हाल हमारा,बस यूँ ही गुज़र जाता है हर साल हमारा !
वेद माथुर
कल मैंने बैंक कर्मचारियों की समस्याओं पर एक ब्लॉग लिखा तो सैकड़ों कर्मचारियों ने फेसबुक और व्हाट्सएप पर मुझे धन्यवाद दिया और प्रतिक्रिया व्यक्ति की। लेकिन साथ ही अनेक ग्राहकों ने यह भी कहा कि आप हमारे पर्सपेक्टिव से भी कुछ लिखिए। 
सबसे पहले मैं बैंक कर्मचारियों को उनकी नौकरी के कुछ सुखद पहलुओं के बारे में बताना चाहूंगा 
1.आज भी सरकारी बैंक की नौकरी एक सम्मानित नौकरी है, यह बात अलग है कि सोशल मीडिया पर हम खुद ही ऐसी इमेज बनाने में लगे हैं कि यह बेकार नौकरी है। 
करोड़ों रुपए बैंक बैलेंस वाली पावरफुल वर्कमैन यूनियन और ऑफिसर्स एसोसिएशन के चलते हर कर्मचारी एक सुरक्षित छाते के नीचे काम करता है।
2.1978 में जब मैंने बैंक ज्वाइन किया था तो अधिकांश बैंक शाखाएं अनाज मंडी में एक काले अंधेरे हाल में हुआ करती थी, आजकल कुछ७ अपवादों को छोड़कर सभी ब्रांच एयरकंडीशंड हैं।
3.बैंक कर्मचारियों को कम ब्याज दर पर और सरल शर्तों पर बहुत सारे ऋण मिल जाते हैं जिससे वह अपना मकान बनाने, कार खरीदने और बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने जैसे कार्य आसानी से कर पाते हैं।
4.कोर बैंकिंग, सम्पूर्ण कंप्यूटरीकरण, MIS का कंप्यूटरीकरण, एटीएम, मोबाइल बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग तथा बैक ऑफिस के कारण शाखाओं पर उतना कार्यभार नहीं रहा है। जब बैंकों में सारा काम मैन्युअल था तो कितनी समस्याएं आती थी इसका मौजूद कर्मचारी अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं।
5. मैं फेसबुक और सोशल मीडिया पर देखता हूं कि कर्मचारी निर्भीक होकर अपनी बात लिखते हैं। ट्विटर पर ऑफिस टाइम में भी बैंक कर्मी निर्भय होकर वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री को भला बुरा कहते हैं।
अभिव्यक्ति की ऐसी आजादी किसी अन्य सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में नहीं है।
6. प्राइवेट सेक्टर में ट्रांसफर कर्मचारी के लिए कोई मुद्दा नहीं होता जबकि बैंकों में होम पोस्टिंग (एक ही शहर में होने पर अपने घर की निकटस्थ शाखा में) हर कर्मचारी के लिए दुनिया का सबसे बड़ा मुद्दा होता है।
यहां सवाल यह है कि बैंक ने कर्मचारियों को उनकी सुविधा के लिए नौकरी दी है या उनके लिए क्या सुविधाजनक है, इसके अनुसार बैंक प्रबंधन को आचरण करना चाहिए?
यह लिस्ट बहुत लंबी है इसलिए अभी इसे समाप्त कर रहा हूं।
+++
ग्राहक की दृष्टि से देखूं तो सूर्य विहार गुड़गांव में अपने निवास के दौरान मुझे दर्जनों रिटायर्ड सीनियर अफसर मिलते थे और सब की एक ही शिकायत थी कि हमें शाखा में अच्छी सर्विस मिलना तो दूर, कर्मचारी यह जानते हुए भी कि हम इसी बैंक से बड़े पद से रिटायर हुए हैं हमें झिड़क देते हैं।
 यदि आप रिटायर्ड बैंक कर्मियों में एक सर्वे करें तो कम से कम 95% रिटायर्ड कर्मचारी बैंक की सेवाओं से असंतुष्ट है। संतुष्ट कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग वह है जो कस्बे या छोटे शहरों में है, जहां मानवीय संबंधों को समुचित महत्व दिया जाता है। 
सच यह भी है कि एक रिटायर्ड जनरल मैनेजर, ऑथर (बैंक ऑफ पोलमपुर), लेखक और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर होने के बावजूद मैं पीएनबी की शाखों में जाने से डरता हूं क्योंकि मुझे नहीं लगता कि Gen  G के युवा कर्मचारी मुझे लाइन में जाकर खड़ा होने के लिए ना कह दें।(हालांकि तर्क की दृष्टि से किसी रिटायर्ड जनरल मैनेजर को लाइन में खड़ा करना गलत नहीं है।) 
 तो ग्राहकों की कुछ समस्याओं का हम उल्लेख करना चाहेंगे 
1. ग्राहकों का मानना है कि सरकारी बैंकों में कर्मचारियों की मानसिकता सरकारी कर्मचारी की रहती है जबकि प्राइवेट बैंक में उन्हें स्वागत करने वाला व्यवहार मिलता है।
मैं ग्राहकों के इस फीडबैक से इसलिए सहमत हूं कि प्रोबेशनरी ऑफिसर्स के इंटरव्यू में कई भोले उम्मीदवार स्पष्ट कह जाते थे कि हम बैंक में जॉब सिक्योरिटी के लिए आना चाहते हैं।  प्राइवेट सेक्टर में बहुत काम करना पड़ता है और जॉब सिक्योरिटी भी नहीं है।
जो लोग यह सोचकर सरकारी बैंक में आते हैं कि यहां राज्य सरकार जैसी मौज मिलेगी उनका कुंठा ग्रस्त होना स्वाभाविक है।
2.बैंक कर्मचारियों का यह कहना है कि उन पर टारगेट्स का भारी दबाव है जबकि शाखा के प्रभारी पदाधिकारी के अलावा शायद ही किसी अधिकारी या कर्मचारी को यह पता हो कि शाखा के अर्धवार्षिक और वार्षिक टारगेट क्या हैं? 
3. यदि किसी अधिकारी पर वाकई टारगेट्स का दबाव है तो यह उनके व्यवहार में रिफ्लेक्ट होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति फिक्स्ड डिपॉजिट करवाने जाता है अथवा लोन लेने जाता है तो उसका स्वागत उत्साह पूर्वक होना चाहिए। बैंक कर्मचारी मुझे क्षमा करें, मुझे ऐसा उत्साह कभी नजर नहीं आता।
4 .बैंकों में आम अधिकारी से लेकर बड़े-बड़े अफसर तक सभी की नजर अर्जुन की आंख की तरह आंकड़ों, पदोन्नति और अच्छी पोस्टिंग पर रहती है और रिटेल ग्राहक की सेवा और उसके प्रति संवेदनशीलता नजर नहीं आती।
1978  श्रीगंगानगर में स्वर्गीय एस  आर चड्ढा हमारे शाखा प्रबंधक थे। यदि शाखा में कोई गरीब किसान ₹5000 की फिक्स्ड डिपॉजिट करवाने आ जाता था तो भी वे इतने उत्साहित हो जाते थे, जैसे लाखों करोड़ों का डिपाजिट मिल गया हो। इसीलिए उन्हें गंगानगर जिले में 75 किलोमीटर के दायरे में भी गांव के लोग न केवल पहचानते थे वरन सम्मान करते थे।
आज बहुत से बैंक कर्मचोरियों को उनकी शाखा के बाहर का दुकानदार भी नहीं जानता।
5 .सरकारी बैंकों में वॉकिंग ग्राहक कितने आते हैं कि यदि उनके प्रति दोस्ताना व्यवहार किया जाए तो यह ग्राहक अपने मित्रों और रिश्तेदारों से इतना बिजनेस दिला देंगे टारगेट आसानी से पूरे हो जाएंगे 
मुझे एक शाखा में जाने का अवसर मिला मैंने महिला मैनेजर को अपना परिचय दिया लेकिन उनका रिस्पांस बड़ा ड्राई था आते-आते मैं उन्हें बताया कि मैं मैंने बैंकिंग पर एक किताब "बैंक ऑफ पोलमपुर" लिखी है, आप मेरी वेबसाइट पर जाकर उसके कुछ अंश पढ़िए। वह महिला मैनेजर सोशल मीडिया पर मेरे पोस्ट पढ़ती थी और इस आइडेंटिटी के बाद उन्होंने मुझे बैठाया और ससम्मान मेरा काम किया।
6.कई बार कर्मचारी कनेक्टिविटी नहीं आने स्टाफ कम होने अथवा बैक ऑफिस से लोन स्वीकृत होने में दिले होने पर कर्मचारियों से पर ग्राहक से ऐसी बात करते हैं जैसे यह बैंक का नहीं ग्राहक का दोष हो ग्राहक को इस बात से क्या मतलब है कि आपके यहां कनेक्टिविटी नहीं आ रही है तो आप आदर और विनम्रता से बात समझाएंगे तो वह समझ जाएगा। 
7.आज के कंप्यूटर के युग में यह बहुत आसान है कि आप इस बात का विश्लेषण करें कि किस कर्मचारी के पास कितना काम है। क्या हमारे सर्कल हेड इस तरह का विश्लेषण करते हैं ?
यह लिस्ट भी लंबी है लेकिन मैं एक बात से इसे खत्म करना चाहूंगा कि मेरे एक मित्र जनरल मैनेजर कह रहे थे कि उनकी शाखा की मैनेजर उनका फोन नहीं उठाती! उन्होंने सर्कल  हेड से इसकी शिकायत की तो सर्किल हेड ने शाखा प्रबंधक को जमकर डांट लगाई लेकिन आजकल जब सर्किल हेड को महीनों में कभी कभार फोन करते हैं तो वह खुद भी उनका फोन नहीं उठाता। 
कुल मिलाकर बैंक कर्मचारियों की अनेक समस्याएं जिनमें सबसे प्रमुख थर्ड पार्टी प्रोडक्ट्स थोपना, अनरियलिस्टिक टारगेट और स्टाफ का असंतुलित वितरण हैं, जेनुइन हैं लेकिन ग्राहक के पर्सपेक्टिव पर कहीं भी संवेदनशीलता नजर नहीं आती।
यदि सर्किल हेड बिना शाखा प्रबंधक को साथ लिए बाजार में घूमे और अपनी शाखों का फीडबैक लेने तो उन्हें वस्तु स्थिति का पता लग जाएगा। 
इस सारी स्टोरी का सारांश यह है कि कर्मचारी ग्राहकों के ग्राहकों की समस्याओं और बिजनेस बढ़ाने के प्रति संवेदनशील होने के बजाय खुद को लेकर ज्यादा आत्म केंद्रित हैं।
बैंक के अंदर मैंने देखा है कि हर स्तर का कर्मचारी अपने नीचे वाले लोगों, अपने साथ वाले लोगों और अपने सीनियर्स की परफॉर्मेंस को "रिव्यू" करता रहता है पर वह खुद क्या करता है यह नहीं सोचता !
 डिस्क्लेमर : अपवाद स्वरूप बैंकों में आज भी बहुत सारे लोग समर्पित कार्यकर्ता हैं।
वेद माथुर


© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved