For News (24x7) : 9829070307
RNI NO : RAJBIL/2013/50688
Visitors - 111448284
Horizon Hind facebook Horizon Hind Twitter Horizon Hind Youtube Horizon Hind Instagram Horizon Hind Linkedin
Breaking News
Ajmer Breaking News: वोट चोर गद्दी छोड़ हस्ताक्षर अभियान को जन जन तक पहुंचाएं, कांग्रेस जनों के साथ ही आमजन के हस्ताक्षर भी कराएं:- धर्मेंद्र राठौड़ |  Ajmer Breaking News: आर.एम.के.एम. द्वारा तीन दिवसीय ‘‘ थैरेपेटिक इंटरवेंशन’’ प्रशिक्षण सम्पन्न |  Ajmer Breaking News: दीपावली व धनतेरस के त्यौहार को लेकर अजमेर शहर के बाजारों में बढ़ती भीड़ को देखते हुए यातायात पुलिस ने विशेष व्यवस्था की है। |  Ajmer Breaking News: पूर्णाहुति से पहले भड़क उठी आग, यज्ञ मंडप में मची अफरा-तफरी, लाखों का सामान जलकर खाक |  Ajmer Breaking News: प्रोफेसर(डॉ) अरुणेन्द्र को पीएचडी की उपाधि  |  Ajmer Breaking News: अजमेर दरगाह पर मशहूर सन्त प्रेमानंद महाराज के जल्द सेहत्याब होने की दुआ  |  Ajmer Breaking News: स्वदेशी अब केवल एक नारा नहीं, यह आत्मनिर्भर भारत की जीवंत भावना है - मंत्री श्री रावत |  Ajmer Breaking News: अजमेर जिले की साक्षी पुत्री प्रेम चन्द खटनावलिया एवं हेमलता, ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा-2023 (RAS) में अपने पहले ही प्रयास में 556 वीं रैक हासिल की |  Ajmer Breaking News: आपकी पूँजी,आपका अधिकार अभियान से जनता को मिलेगा अपनी पूँजी पर अधिकार : भागीरथ चौधरी |  Ajmer Breaking News: श्री पुष्कर मेला - 2025, संभागीय आयुक्त ने तैयारियों को लेकर ली समीक्षा बैठक, सफल आयोजन के लिए अधिकारियों को दिए निर्देश | 

क़लमकार: जयशंकर प्रसाद और मुंशी प्रेमचंद

Post Views 441

November 9, 2021

चित्र-- मृत्यु से दो दिन पहले का, प्रेमचंद जी की सेवा करती शिवरानी देवी। जमाना (ऊर्दू) अक्टूबर १९३६ कानपुर  मे प्रकाशित।

प्रेमचंद जी का शव पड़ा हुआ था। उस निर्जीव शरीर को गोद में चिपटाये भाभी शिवरानी आकाश का भी हृदय दहला देने वाला करुण क्रन्दन कर रही थीं। श्मशान जाने के लिये नगर के सैंकडों संभ्रान्त साहित्यिक उतावले हो रहे थे। कुछ अपने दु:ख का वेग नही सम्भाल पा रहे थे। कुछ को और भी बहुत से काम थे। उन्हें जल्दी थी इस काम से निबट जाने की और कुछ ने मुझे बतलाया था कि वह रास्ते से ही अलग हो जायेंगे, श्मशान तक न जा सकेंगे।दूसरी ओर भाभी शिवरानी शव को किसी को छूने नहीं दे रही थीं। सबने प्रसाद जी से कहा -- आप ही समझायें।वे आगे बढ़े। भाभी से बोले -- अब इन्हें जाने दीजिये।वे क्रोध पूर्वक चीख़ उठीं --आप कवि हो सकते हैं पर स्त्री का हृदय नहीं जान सकते। मैंने इनके लिये अपना वैधव्य खंडित किया था। इनसे इसलिये नहीं शादी की थी कि मुझे दुबारा विधवा बना कर चले जायें। आप हट जाइये। प्रसाद जी के कोमल हृदय को वेदना तथा नारी की पीड़ा ने जैसे दबोच लिया। उनका गला भर आया। नेत्रो मे आँसू छलछला उठे।मैं ही सामने खड़ा दिखाई पड़ा। मुझसे भर्रायी आवाज में बोले --  परिपूर्णा, तुम्हीं सम्भालो। भाभी चिल्लाती चीखती रहीं और मैंने अब यह प्रेमचंदजी नहीं हैं, मिट्टी है- कहकर मुर्दा उनकी गोद से छीन लिया।उस घटना के बाद मैंने प्रसाद जी को कभी हँसते नहीं देखा। उनके शरीर में क्षय घुस चुका था।जब चिता की लपट उन्हे समेटने लगी, सब लोग इधर उधर की बातें भी कर रहे थे। प्रेमचन्द जी के सम्बन्ध में कलप रहे थे। पर एक व्यक्ति मौन, मूक, एकटक चिता की ओर देखता रहा। प्रेमचंद जी का शव उठाने के समय ऐसी घटना हो गई थी उसके साथ कि उसका मन रो रहा था और शायद वह देख रहा था -- छ: महीने के बाद अपनी चिता भी... वह थे श्री जयशंकर प्रसाद।

(बीती य़ादें- परिपूर्णानन्द वर्मा) 


© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved