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April 26, 2021
जब से चेहरा देखा है दीवाने का,
याद हो गया है रस्ता वीराने का।
मन्दिर,मस्जिद गिरिजाघर गुरुद्वारे बन्द,
खुला हुआ है दरवाज़ा मयख़ाने का।
जहाँ न कोई जाता और न आता है,
मैं रस्ता हूँ उस घर के तहखाने का।
सुना रहा है वक़्त सुन रही दुनिया भी,
नहीं कोई किरदार है जिस अफ़साने का।
बांट लिया आपस में जिसे फ़क़ीरों ने,
आख़री वारिस हूँ मैं उसी ठिकाने का।
जिस पँछी ने जंगल से की ग़द्दारी,
सुना है वो मोहताज़ है दाने दाने का।
रहिमन ने सौंपा है हमको काम वही,
उलझे धागों को फिर से सुलझाने का।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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