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March 27, 2021
अंधेरों में उजाला पढ़ रहा हूँ,
मुक़द्दर का ही लिक्खा पढ़ रहा हूँ।
पड़ा हूँ सामने ख़ुद के ही मुर्दा,
खुदी का मैं जनाज़ा पढ़ रहा हूँ।
कि जलकर रौशनी करनी है मुझको,
हवाओं का इरादा पढ़ रहा हूँ।
हरा कर लौट आया हूँ मैं तूफां,
सफ़ीना हूँ किनारा पढ़ रहा हूँ।
तुम्हें तो पढ़ चुका पढ़ना था जितना,
मैं ख़ुद को अब ज़ियादा पढ़ रहा हूँ।
लिखा है नाम जिसपे मौत ने ख़ुद,
वही अपना लिफ़ाफ़ा पढ़ रहा हूँ।
मैं इतनी देर से महबूब मेरे,
तुम्हारा ही इशारा पढ़ रहा हूँ।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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