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March 26, 2021
हमने नज़रें उठा के देखा था,
उसने नज़रें झुका के देखा था।
उसने रिश्ता बना के देखा था,
जिसको हमने निभा के देखा था।
अश्क़ आंखों के पड़ गए पीछे,
इक घड़ी मुस्कुरा के देखा था।
ख़र्च कर डाले उसने सारे ग़म,
दर्द हमने कमा के देखा था।
उसने दामन बचा के जो देखा,
हमने दामन जला के देखा था।
अक़्ल पर जो पड़ा था मुद्दत से,
वो ही पर्दा हटा के देख था।
जान जाने पे मेरी वो बोले,
हमने तो आज़मा के देखा था।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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